भारत ने सोमवार को देश की राष्ट्रपति के रूप में पहली आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू का अभिषेक बड़े गर्व से किया. लेकिन दूसरी ओर आदिवासी छात्राओं को उनके मासिक धर्म (Menstrual cycle) के चलते उनके शिक्षकों द्वारा एक समारोह में पौधे लगाने से रोक दिया गया था. ये घटना है महाराष्ट्र के नासिक ज़िले की.
देवगांव आदिवासी स्कूल, त्र्यंबकेश्वर में आदिवासी छात्रों को उनके शिक्षकों द्वारा स्कूल के वृक्षारोपण कार्यक्रम में भाग लेने से रोका गया क्योंकि लड़कियों को मासिक धर्म हो रहा था. इन छात्राओं से कहा गया था कि अगर मासिक धर्म वाली लड़कियां पौधे लगाती हैं तो वे विकसित नहीं होंगे और जीवित नहीं रहेंगे. इसलिए उन्हें कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनना चाहिए.
उन्हें यह भी बताया गया कि पिछले साल कुछ लड़कियों ने मासिक धर्म के दौरान पौधे लगाए थे लेकिन उन पौधों का विकास ठीक से नहीं हुआ था. इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि मासिक धर्म वाली लड़कियों को कभी भी लगाए गए पौधों के करीब नहीं जाना चाहिए.
जिसके बाद इन लड़कियों ने इस घटना को अपने माता-पिता के साथ साझा किया और बाद में उन्होंने आदिवासी विकास विभाग में शिकायत दर्ज कराई और उन्हें अपमानित करने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
आदिवासी लड़कियों ने कहा कि मासिक धर्म के दौरान उनके शिक्षक हमेशा उन्हें अपमानित करते हैं.
एक आदिवासी लड़की ने कहा, “उन्होंने हमें कक्षा में और सार्वजनिक रूप से हमेशा एक विशेष अपमानजनक नाम से बुलाकर अपमान किया. जब हमें पौधे लगाने से रोका गया तो हमने शिक्षकों से इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण पूछा, लेकिन उन्होंने बताया कि यह एक मिथक है और हमें इस पर विश्वास करना चाहिए. लेकिन शिक्षकों ने हमारे दृष्टिकोण को समझने के बजाय हमें धमकाया और चुप रहने को कहा. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि अगर हम बोलते हैं, तो वे हमें बोर्ड परीक्षा में भी बैठने नहीं देंगे.”
महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रूपाली चाकणकर ने इस घटना का संज्ञान लिया और आदिवासी विकास विभाग से जांच करने और एक रिपोर्ट जमा करने को कहा है.
उन्होंने कहा, “हमें महाराष्ट्र जैसे राज्य में इस शर्मनाक घटना की निंदा करनी चाहिए. शिक्षकों का व्यवहार आपत्तिजनक है. शिक्षकों का काम अंधविश्वास को दूर करना है न कि छात्रों को अंधविश्वासी की ओर ढकेलना. पौधे लगाने से रोककर शिक्षकों ने उनका अपमान किया. तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिए और कार्रवाई की जाएगी.”
भारत में आज भी कई ऐसी जगह हैं जहां महिला को पीरियड्स या माहवारी होने के दौरान परिवार से बिल्कुल अलग रखा जाता है. महाराष्ट्र में भी ये चलन काफी देखने को मिलता है. लेकिन अगर स्कूलों में पढ़े-लिखे शिक्षक भी इस तरह के अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं तो लड़कियां कहां जाएंगी.
(प्रतिकात्मक तस्वीर)
ऐसे शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर देना चाहिए
मैं भी एक शिक्षक हूं छत्तीसगढ़ और ऐसी शर्मनाक घटना की निंदा करती हूं। आज देश की सर्वोच्च नागरिक के पद पर आसीन मुर्मू जी का सभी भारतवासी स्वागत कर रहे हैं।और विद्यार्थियों को अपमान शब्दों से संबोधित करना , नेक कार्यों के लिए रोका निंदनीय घटना है लड़कियों में महावारी आना महिला होने का प्रकृति का उपहार है, इसे सहृदय स्वीकार करना चाहिए और हमें अति गर्व है की मैं भी एक आदिवासी महिला हो।
Ye teacher nhi criminal h…