पिनाराई विजयन जी, यह पहली बार है जब मैं किसी मुख्यमंत्री को पत्र लिख रहा हूँ. लेकिन यह ख़त मैं पोस्ट नहीं कर रहा हूँ बल्कि प्रकाशित कर रहा हूँ. इसका कारण यह है कि मैं एक पत्रकार हूँ और मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं नेताओं से कानाफूसी ना करूँ, बल्कि जो भी बात हो खुलेआम होनी चाहिए.
वैसे पत्रकार होने का मेरा दावा अपनी जगह पर, मुझे नहीं लगता कि कोई मुख्यमंत्री मुझे इस लायक़ समझता भी है कि वो मेरे साथ कानाफूसी करे. विजयन जी, मैं यह ख़त एक शिकायत दर्ज करने के लिए लिख रहा हूँ.
इससे पहले की मैं शिकायत आपके सामने रखूँ, आपको बताना चाहता हूँ कि केरल की तरक़्क़ी से प्रभावित लोगों में से मैं भी एक हूँ. इस राज्य ने शिक्षा और स्वास्थ्य में शुरुआत से ही जो निवेश किया, उसके परिणाम नज़र आ रहे हैं.
केरल राज्य मानव विकास सूचकांक के मापदंडों पर अगर बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है तो वहाँ की सरकारों, राजनीतिक दलों, संगठनों और लोगों को इसका श्रेय जाता है.
आपने जिस तरह से कोविड महामारी में धैर्य और समझदारी से काम किया उसकी तारीफ़ तो दुनिया भर में हुई है. आपकी सरकार ने हाल ही में लाइफ़ नाम की योजना के तहत लाखों लोगों को पक्के मकान दिए हैं.
ऐसी ना जाने कितनी बातें हैं जिनका गुणगान किया जा सकता है. आपकी सरकार के काम की तारीफ़ अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी हुई है. इसके अलावा आप की सरकार के विज्ञापन भी अब तो राष्ट्रीय मीडिया में नज़र आ जाते हैं.
मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है. अगर कोई सरकार अच्छा काम कर रही है तो उसका प्रचार करने का सरकार को पूरा हक़ है. लेकिन जिस क्षेत्र में सरकार उतना अच्छा काम नहीं कर पा रही है, क्या वहाँ की सूचनाओं को दबा दिया जाना चाहिए.
वह भी उस वर्ग से जुड़ी हुई सूचनाएँ या रिपोर्ट जो तबका वंचित तबकों में भी सबसे नीचे के पायदान पर है. मैं केरल के आदिवासियों और उससे जुड़े आपके प्रशासन के एक ताज़ा आदेश की बात कर रहा हूँ.
आपकी सरकार में अनुसूचित जनजाति विकास विभाग ने 12 मई, 2022 को एक आदेश निकाला है. इस आदेश के अनुसार कोई भी ग़ैर आदिवासी बिना प्रशासन की अनुमति के किसी आदिवासी बस्ती में प्रवेश नहीं कर सकता है.
यह आदेश इतना व्यापक है जो रिसर्च, इंटर्नशिप, फ़ील्ड सर्वे या फिर वीडियोग्राफ़ी सब पर पाबंदी लगाता है. वैसे तो आपके दफ़्तर में उस आदेश की कॉपी ज़रूर होगी, लेकिन फिर भी उस आदेश की कुछ मोटी बातें यहाँ भी लिख देता हूँ –
- आदिवासी बस्तियों में प्रवेश से 14 दिन पहले संबंधित अधिकारियों से अनुमति लेनी होगी
- अनुमति के बिना रिसर्च, इंटर्नशिप, फील्ड सर्वे, किसी तरह का कैंप, फिल्म की शूटिंग या वीडियोग्राफी नहीं हो सकती है
- रिसर्च या इंटर्नशिप के लिए ज़्यादा से ज़्यादा एक महीने की अनुमति मिलेगी
- अधिकारी तय करेंगे कि लोग किस आदिवासी बस्ती में जा सकते हैं
- अनुसंधान, क्षेत्र सर्वेक्षण, इंटर्नशिप, फिल्म शूटिंग, वीडियोग्राफी की अनुमति निदेशालय से मिलेगी
- तीन दिन तक के मेडिकल और सोशल शिविर को आयोजित करने की अनुमति दी जाएगी
- तीन दिन से ज़्यादा के कैंपों की अनुमति निदेशालय से मिलेगी
- आदिवासी बस्तियों में रात में ठहरने की इजाज़त किसी को नहीं दी जाएगी
- रिसर्च या क्षेत्र सर्वेक्षण की रिपोर्ट की कॉपी निदेशालय को देना ज़रूरी
- उल्लंघन करने वाली व्यक्ति को दोबारा यात्रा करने की अनुमति नहीं मिलेगी
- ‘वामपंथी उग्रवाद’ प्रभावित क्षेत्रों के लिए पुलिस विभाग की ख़ास अनुमति की ज़रूरत
आपकी सरकार के अनुसूचित जनजाति विभाग के मंत्री राधाकृष्णन ने इस आदेश को सही ठहराने के कई तर्क दिए हैं. उनका कहना है कि आदिवासियों को बाहरी लोगों के शोषण से बचाने के लिए यह आदेश जारी किया गया है.
इसके अलावा एक और तर्क उन्होंने दिया है, वो कहते हैं कि कई आदिवासी समुदाय बेहद ख़राब हालातों में जंगलों में रह रहे हैं. इनमें से कुछ बाढ़ग्रस्त इलाक़ों में भी बसे हैं.
सरकार उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर बसाना चाहती है. लेकिन ये आदिवासी जंगल नहीं छोड़ना चाहते हैं. राधाकृष्णन आगे कहते हैं कि इन इलाक़ों में माओवादियों का असर बढ़ रहा है, इसलिए ये आदिवासी जंगल के बाहर नहीं आना चाहते हैं.
विजयन जी, मैं आदिवासी मामलों पर एक्सपर्ट तो नहीं हूँ, लेकिन पिछले 6 साल से आदिवासियों के बीच घूम रहा हूँ. मैंने आपके मंत्री के बयान में कुछ लॉजिक ढूँढने की कोशिश की है.
लेकिन अफ़सोस की इस बयान में मुझे सब तर्क अटपटे लगे. इससे पहले कि मैं अपनी बात ख़त्म करूँ आप नीचे की तस्वीर देखिए. यह तस्वीर आंध्र प्रदेश के आरकु घाटी की है.
इस तस्वीर में आपकी पार्टी की पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ‘गिरिजन संघम’ यानि आपकी पार्टी के आदिवासी मोर्चा की रैली का नेतृत्व कर रही हैं. मेरी यात्राओं के दौरान कई राज्यों में आदिवासी इलाक़ों में आपके पार्टी के कई कार्यकर्ताओं और नेताओं से मेरी मुलाक़ात होती रही है.
अब ज़रा सोचिए कि अगर कल को आंध्र प्रदेश या तेलंगाना सरकार या फिर छत्तीसगढ़ या मध्य प्रदेश और ओडिशा कोई भी राज्य इस तरह के आदेश जारी कर दें तो क्या होगा?
क्या आपके संगठन आदिवासी इलाक़ों में काम कर पाएँगे. पिनाराई विजयन जी, यह आदेश अटपटा और काफ़ी हद तक दमनकारी भी है. क्या आप कोई ऐसा आदेश ला सकते हैं कि गाँव के लोग शहर नहीं जाएँगे, क्योंकि वहाँ पर उनके शोषण का ख़तरा रहता है.
अगर नहीं ला सकते हैं तो फिर आदिवासी गाँवों में बाहर के लोगों का प्रवेश कैसे बंद कर सकते हैं?
मुझे उम्मीद है कि आप मेरी बात को समझेंगे और इस ऑर्डर को तुरंत रद्द करने का आदेश जारी करेंगे. आप यह जितना जल्दी करेंगे, मैं भी भारत की टीम उतनी ही जल्दी केरल के सफ़र पर निकल पड़ेगी.
धन्यवाद
श्याम सुंदर
नई दिल्ली
जोहार साथियों वहां के सरकार पगला गया है आखिर वहां का सरकार ऐसा फरमान कैसे जारी कर सकता है या बिल्कुल सरासर गलत है आदिवासी समुदाय के बीच में यदि लोग आना जाना नहीं करेंगे तो फिर उनका जीविका साधन कैसे चलेगा और यादि सरकार का कोई भी योजना उस गांव के लिए आयेगा तो फिर सरकार किस तरह से काम करा पाएंगे यह भी तो सबसे बड़ा मुद्दा