मंगलवार, 19 दिसंबर को एमएसआरटीसी (MSRTC) की सुविधा महाराष्ट्र (Maharashtra) के नासिक (Nashik) में शुरू की गई.
ये बस सुविधा (Bus service for tribals )उन 15 हज़ार आदिवासी किसान (15000 tribal protesters) के लिए उपलब्ध करवाई गई, जो पहले अपनी मांग को पूरी करवाने के लिए मुंबई जा रहे थे.
लेकिन अब इन्हें सरकार द्वारा लिखित पत्र मिल चुका है और आदिवासियों ने वादे के अनुसार अपना ये मार्च रोक दिया है.
इनकी घर वापसी के लिए सरकार द्वारा बस का प्रबंध किया गया है. जिसके कारण एमएसआरटीसी को नासिक, मालेगांव और धुले के बीच बसों की संख्या को भी कम करना पड़ा.
इसी सिलसिले में राज्य के एमएसआरटीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “आदिवासी किसानों को ले जाने के लिए तैनात की गई बसें रात में 1 बजे से 2.30 बजे के बीच चलना शुरू हुई थी. इन बसों को यात्रा पूरी करने में सात घंटे का समय लगा था, इसलिए हम सुबह नासिक से विभिन्न स्थानों के लिए बसें उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं थे.”
क्या थी आदिवासियों के मार्च की वज़ह
आदिवासियों का ये मार्च 7 दिसंबर को शुरू हुआ था और करीब 12 दिनों तक चला.
मार्च के ज़रिए ये सभी आदिवासी केंद्र सरकार का ध्यान अपनी मांग की ओर आकर्षित करना चाहते थे. जिसके लिए ये सभी 15 हज़ार आदिवासी मुंबई जा रहे थे.
इन 12 दिनों में ये आदिवासी समूह उप-मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से भी मिले थे. इस मुलाकत के ज़रिए आदिवासियों ने अपनी मांग के बारे में उप-मुख्यमंत्री को बताया था. ये मुलाकत कुछ हद तक सफल भी रही थी.
वहीं मांग को रखते हुए सत्यशोधक शेतकारी सभा के सचिव किशोर धमाले ने कहा था, “जब तक सरकार हमें लिखित में आश्वासन नहीं देती, तब तक हम मार्च को बंद नहीं करेंगे.”
अब इन्हें लिखित पत्र प्राप्त हो चुका है और वादे के अनुसार इन्होंने अपना ये मार्च बंद कर दिया.
क्या है आदिवासियों की मांग
नासिक, नंदुरबार और धुले के आदिवासियों की कई मांगे है. जिसमें प्राथमिक तौर पर वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को ज़मीन सौंपना, वन भूमि में चरागाह क्षेत्र स्थापित करना, कृषि उपज के लिए उचित मूल्य तय करना, क्षेत्र के कई तालुकों को सूखा प्रभावित घोषित करना और सूखा प्रभावित खेत के प्रत्येक किसानों को 30 हज़ार रुपये का मुआवजा देना शामिल है.
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