HomeAdivasi Dailyआदिवासी लड़के की स्कूल में मौत, लापरवाही का आरोप

आदिवासी लड़के की स्कूल में मौत, लापरवाही का आरोप

चिंटूरु के रामन्नापलेम के रहने वाले सोडे कार्तिक कंदुलुरु एकलव्य स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ते थे. कार्तिक को फेफड़ों से संबंधित और दूसरी बीमारियां थीं. माता-पिता का दावा है कि कार्तिक को सितंबर के आखिरी हफ़्ते में शरीर में दर्द और सूजन हुई, लेकिन उन्हें चार दिन बाद इसके बारे में सूचित किया गया. स्कूल ने माता-पिता से 30 सितंबर को कार्तिक को घर वापस ले जाने के लिए कहा.

आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी ज़िले के चिंटूरु में एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल में पढ़ने वाले 12 साल के एक आदिवासी लड़के की मौत के बाद तनाव फैल गया है. लड़के के माता-पिता ने स्कूल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया है.

घटना 8 अक्टूबर की है. लड़के के माता-पिता, सोडे नागराजू और अर्जम्मा, जो कोया आदिवासी समुदाय से हैं, ने आरोप लगाया है कि उनके बेटे की मौत स्कूल प्रशासन की लापरवाही और इलाज में देरी के चलते हुई है.

चिंटूरु के रामन्नापलेम के रहने वाले सोडे कार्तिक कंदुलुरु एकलव्य स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ते थे. द न्यूज़ मिनट के मुताबिक़ कार्तिक को फेफड़ों से संबंधित और दूसरी बीमारियां थीं. माता-पिता का दावा है कि कार्तिक को सितंबर के आखिरी हफ़्ते में शरीर में दर्द और सूजन हुई, लेकिन उन्हें चार दिन बाद इसके बारे में सूचित किया गया. स्कूल ने माता-पिता से 30 सितंबर को कार्तिक को घर वापस ले जाने के लिए कहा.

तेज़ बारिश और बाढ़ की वजह से कार्तिक को 30 सितंबर की देर रात ही चिंटूरू के अस्पताल में भर्ती कराया गया. स्कूल प्रशासन ने इसके भी दो दिन बाद एक स्टाफ़ अस्पताल भेजा, और 3 अक्टूबर को लड़के को रामपचोडावरम के एक अस्पताल में शिफ़्ट करवाया.

कार्तिक की मां, अरजम्मा का कहना है कि तेलंगाना में भद्राचलम ज़्यादा नज़दीक था, तो वो अपने बेटे को वहां के अस्पताल में भर्ती करना चाहते थे. लेकिन स्कूल के अधिकारियों ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया.

रामपचोडावरम में चार दिनों तक इलाज कराने के बाद, कार्तिक को 6 अक्टूबर को काकीनाडा के एक निजी अस्पताल में शिफ़्ट कर दिया गया. दो दिन बाद यानि 8 अक्टूबर को उसकी मौत हो गई.

अर्जम्मा कहती हैं, “स्कूल प्रबंधन और कर्मचारियों ने हमारे साथ भद्राचलम आने से इनकार कर दिया. इसके बजाय, उन्होंने हमें रामपचोडावरम जाने के लिए मजबूर किया, जो बहुत दूर है. अधिकारियों ने हमें आश्वासन दिया था कि कार्तिक को दूसरे अस्पताल में शिफ़्ट कर दिया जाएगा, लेकिन इसमें बार-बार देरी हुई.”

उसने एम्बुलेंस आने में देरी का भी आरोप लगाया और कहा कि परिवार ने उसे एक निजी अस्पताल में इसलिए भर्ती कराया क्योंकि कोई भी मदद का हाथ उनकी तरफ़ नहीं बढ़ा रहा था.

इलाक़े के आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता अब परिवार के लिए 10 लाख रुपये के मुआवज़े की मांग कर रहे हैं.

चिंटूरू के एकीकृत जनजातीय विकास प्राधिकरण (Integrated Tribal Development Agency) के परियोजना अधिकारी अकुला रमणा ने माना कि इलाक़े में स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी ढांचे की कमी है. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया है कि कार्तिक के माता-पिता द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की जाएगी. अगर लापरवाही के आरोप सही साबित हुए, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई की जाएगी.

इसके अलावा वह जल्द ही परिवार से मिलेंगे और सरकार को पत्र लिखकर उनके लिए मुख्यमंत्री राहत कोष (CMRF) से मुआवज़ा मांगेंगे.

(Photo Courtesy: The News Minute)

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