रूपा तिर्की की मां पद्मावती उरांव ने साहिबगंज डीएसपी प्रमोद मिश्रा के खिलाफ एसटी/एससी थाने में शिकायत दर्ज करायी है. इसमें आरोप लगाया गया है कि डीएसपी ने उनकी बेटी की मौत के बाद सोशल मीडिया में एक ऑडियो वायरल किया है. जिसमें डीएसपी किसी दूसरे शख्स को फोन कर उनकी मृत बेटी को गाली-गलौज कर रहे हैं.
पद्मावती की ओर से दिए गए आवेदन में डीएसपी को बिना किसी देरी के गिरफ्तार करने की मांग की गई है.
पद्मावती ने आरोप लगाया है कि बीते 3 मई को रूपा की संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई थी. जिसे साहिबगंज पुलिस ने आत्महत्या घोषित कर दिया था. इसके बाद परिवार वाले लगातार सीबीआई जांच की मांग करने लगे.
वहीं दूसरी तरफ झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआई द्वारा जांच की जा रही रूपा तिर्की आत्महत्या मामले को सब डिवीजन न्यायिक मजिस्ट्रेट शिखा अग्रवाल की धनबाद विशेष अदालत में ट्रांसफर करने का आदेश दिया है.
मामले से जुड़े दस्तावेजों को साहिबगंज कोर्ट से धनबाद ट्रांसफर करने के बाद ट्रायल शुरू होने की संभावना है.
साहिबगंज महिला थाने की प्रभारी 26 साल की रूपा तिर्की 3 मई को अपने सरकारी आवास पर फंदे से लटकी मिली और पर मृत पाई गई थीं.
झारखंड पुलिस की जांच के अनुसार, तिर्की के दोस्त और सहयोगी, सब-इंस्पेक्टर शिव कुमार कनौजिया के कथित रूप से परेशान करने की वजह से उन्होंने आत्महत्या की थी. कनौजिया को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया. जिसके बाद कनौजिया को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 9 मई को गिरफ्तार किया गया था.
पिछले दो तीन महीने से राजनीतिक कारणों से मीडिया की सुर्खियों में बने इस मामले को साहिबगंज में सीबीआई अदालत के अभाव में धनबाद की विशेष अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया है.
रूपा तिर्की के पिता दयानंद उरांव ने दावा किया कि उनकी बेटी की मौत आत्महत्या से नहीं बल्कि साजिश के तहत की गई है.
अपनी बेटी की मौत की सीबीआई जांच की मांग को लेकर जून में झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले दयानंद उरांव ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा और और दाहू यादव के निर्देश पर उनके कुछ सहयोगियों ने उन्हें परेशान किया. क्योंकि उसने तिर्की के द्वारा निपटाए जा रहे कुछ मामलों को प्रबंधित करने के उनके अनुरोध को नहीं सुना.
अलग-अलग आदिवासी अधिकार संगठनों के साथ-साथ विपक्षी बीजेपी ने इस मुद्दे को उठाया और सरकार को मामले की न्यायिक जांच की घोषणा करने के लिए मजबूर किया और एक रिटायर्ड हाईकोर्ट के जज की सरकार द्वारा एक सदस्यीय आयोग का गठन किया गया.
सरकार के कदम से असंतुष्ट उरांव ने मामले की सीबीआई जांच की मांग जारी रखी और न्यायिक जांच के सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी.
जस्टिस एसके द्विवेदी की कोर्ट बेंच ने आखिरकार मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया जिसके बाद सीबीआई की पटना टीम ने एफआईआर दर्ज कर मामले को अपने हाथ में ले लिया.