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ओडिशा सरकार सावधानी से करें जनजातियों की पहचान – NCST

शिक्षा के मोर्चे पर भी एनसीएसटी टीम ने आवासीय विद्यालयों में अमानवीय परिस्थितियों में रहने वाले छात्रों के मुद्दे को उठाया. उन्होंने कहा कि आयोग ने राज्य सरकार को पेसा नियम बनाने का सुझाव दिया है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) ने सोमवार को कहा कि ओडिशा सरकार (Odisha Government) को सावधानीपूर्वक जनजातीय समुदायों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें एक मजबूत तंत्र ढांचे के भीतर परिभाषित करना चाहिए.

अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) की सूची में 160 से अधिक समुदायों को शामिल करने की ओडिशा सरकार की सिफारिश पर बोलते हुए एनसीएसटी के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने कहा कि देश में आदिवासी समुदायों के रूप में पहचाने जाने की मांग का चलन बढ़ रहा है.

चौहान ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, “हमने राज्य सरकारों से समग्र प्रभाव अध्ययन करने और किसी भी समुदाय को शामिल करने का सुझाव देने से पहले सभी जिम्मेदारियों के साथ योग्यता का आकलन करने के लिए कहा है. किसी भी गलत समावेशन से मौजूदा समुदायों के साथ न्याय करने के बजाय अन्याय होगा.”

यह सुझाव देते हुए कि ‘शक्तिशाली’ समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में सूचीबद्ध होने से रोकने के लिए राज्य को दकियानुसी सोच अपनाना चाहिए. उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार ने जनजातीय विकास के लिए एक अलग विभाग बनाया है क्योंकि अनुसूचित जनजाति राज्य की आबादी का 23 प्रतिशत है.

इसके अलावा आयोग ने पाया कि आदिवासी क्षेत्रों में लोगों के जीवन के लिए बेहद जरूरी पानी, सड़क, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, पीएसयू में नौकरी के खराब अवसर, बेहद खराब टेलीफोन कनेक्टिविटी और अनुसूचित जनजाति के लिए अन्य सरकारी सेवाओं का अभाव है.

एनसीएसटी अध्यक्ष ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के विकास के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) का डायवर्जन राज्य की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है. डीएमएफ को उपेक्षित क्षेत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्यादातर आदिवासी आबादी खनन से प्रभावित है लेकिन न तो आदिवासियों और न ही डीएमएफ से जुड़े अधिकारियों को इसके प्रावधानों की जानकारी है.

NCST ने राज्य सरकार से एक महीने के भीतर राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में जिला खनिज फाउंडेशन के फंड के डायवर्जन पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है.

चौहान ने कहा कि डीएमएफ फंड के बारे में आदिवासी लोगों में जागरूकता की कमी के कारण उनकी उपेक्षा की जा रही है.

अनुसूचित जनजाति घटक (STC) फंड्स का भी यही हाल है. हर्ष चौहान ने परियोजना प्रभावित आदिवासियों के पुनर्वास में लंबे समय से हो रही देरी और अलग-अलग परियोजनाओं के चलते विस्थापित हुए आदिवासियों के मुआवजे के प्रावधान में देरी होने की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि भले ही आदिवासियों के लिए कई योजनाएं लागू की जा रही हैं लेकिन उनका लाभ उनतक नहीं पहुंच रहा है.

शिक्षा के मोर्चे पर भी एनसीएसटी टीम ने आवासीय विद्यालयों में अमानवीय परिस्थितियों में रहने वाले छात्रों के मुद्दे को उठाया. साथ ही उन्होंने राज्य में पेसा अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए पेसा नियम बनाने का सुझाव दिया है.

पिछले कुछ महीनों में एनसीएसटी की टीमों ने अनुसूचित जनजाति लोगों के निवास क्षेत्रों का दौरा किया और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास की जांच की, पैनल ने इस दौरान ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के लिए सरकारी योजनाओं और फंड की समीक्षा की.

उन्होंने बाद में मुख्य सचिव प्रदीप कुमार जेना से मुलाकात की और राज्य सरकार से एक महीने के भीतर एनसीएसटी द्वारा बताए गए मुद्दों पर अपनी रिपोर्ट देने को कहा है.

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