HomeAdivasi Dailyमंत्री का दावा- अट्पाड़ी जनजातियों को बनाया जाएगा आत्मनिर्भर

मंत्री का दावा- अट्पाड़ी जनजातियों को बनाया जाएगा आत्मनिर्भर

बैठक में सांसद वीके श्रीकंदन, विधायक एन शमसुदीन, जिला पंचायत अध्यक्ष के बीनुमोल, ओट्टापलम की उप-कलेक्टर शिखा सुरेंद्रन, जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ केपी रीथा सहित अन्य लोग शामिल हुए. लेकिन ज्यादातर आदिवासी मंत्री की घोषणाओं से उत्साहित नहीं हैं कि उन्हें दो साल में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा.

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मंत्री के राधाकृष्णन ने कहा कि सरकार दो साल में अट्पाड़ी के सभी आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक कार्य योजना लागू करेगी.

अट्पाड़ी में आदिवासी महिलाओं के कुपोषण और सिकल सेल एनीमिया के कारण जनजातीय शिशु मृत्यु में वृद्धि पर सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की समीक्षा बैठक का उद्घाटन करते हुए राधाकृष्णन ने कहा, “कोट्टाथारा में आदिवासी विशेषता अस्पताल में और अधिक सुविधाएं जोड़ी जाएंगी. डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को दूर किया जाएगा. आदिवासी कल्याण विभाग जरूरी धनराशि उपलब्ध कराएगा. बच्चों के लिए एक आईसीयू शुरू किया जाएगा.”

उन्होंने कहा, “आदिवासी आबादी को पौष्टिक भोजन प्रदान करने के लिए अब करीब 70 आदिवासी बस्तियों में लागू बाजरा ग्राम कार्यक्रम को सभी 192 आदिवासी बस्तियों तक बढ़ाया जाएगा.”

बैठक में सांसद वीके श्रीकंदन, विधायक एन शमसुदीन, जिला पंचायत अध्यक्ष के बीनुमोल, ओट्टापलम की उप-कलेक्टर शिखा सुरेंद्रन, जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ केपी रीथा सहित अन्य लोग शामिल हुए. लेकिन ज्यादातर आदिवासी मंत्री की घोषणाओं से उत्साहित नहीं हैं कि उन्हें दो साल में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा.

एक प्रमुख आदिवासी कार्यकर्ता केए रामू ने कहा, “सरकारें बार-बार असफल वादे करती रही हैं. वे उन बुनियादी मुद्दों को संबोधित नहीं कर रहे हैं जिनके कारण शिशु मृत्यु, कुपोषण, सिकल सेल एनीमिया आदि हो रहे हैं. सबसे अहम मुद्दा अट्पाड़ी में 10,000 एकड़ से अधिक आदिवासी भूमि का अलगाव है. एक बार जब उन्होंने बसने वालों के लिए अपनी उपजाऊ भूमि खो दी तो उन्होंने अपनी आजीविका भी खो दी. सरकार ने अलग की गई आदिवासी भूमि को बहाल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है.”

केए रामू ने आगे कहा, “सरकार वन अधिकार अधिनियम को लागू करने में भी विफल रही, जिससे आदिवासियों को उनकी खोई हुई कुछ जमीन वापस पाने में मदद मिलती. मई 2017 में पद संभालने के बाद पिछली एलडीएफ सरकार ने वादा किया था कि अट्पाड़ी में और कोई शिशु नहीं मरेगा. लेकिन यह अपने वादे में विफल रहे और आदिवासी शिशु मृत्यु में खतरनाक वृद्धि हुई है.”

जनजातीय एनजीओ ‘थंपू’ के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने कहा, “चिकित्सा बुनियादी सुविधाओं के विकास के बावजूद आदिवासी शिशुओं की मृत्यु और आदिवासी माताओं में कुपोषण अट्पाड़ी में एक बड़ी समस्या है.”

दरअसल इस हफ्तेभर में अट्पाड़ी के अनुसूचित जनजाति के तीन बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं एक महिला तुलसी बालकृष्णन जो सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित थीं की मृत्यु हो गई. दरअसल तुलसी बालाकृष्णन ने सोमवार को एक सिजेरियन सेक्शन के माध्यम से बच्चे को जन्म दिया लेकिन बच्चा मृत पैदा हुआ था.

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