आमाटोला की अमील बाई और अन्तनी बाई जंगल से बांस की कोपल (Bamboo Shoot) लाई थीं. उन्होंने सबसे पहले बांस के सूखे पत्तों को हटाया, बिलकुल वैसे ही जैसे गन्ने से सूखे पत्ते हटाए जाते हैं.
लेकिन बांस के पत्ते सख़्त और उनके सिरे बेहद नुकीले होते हैं. इन दोनों ने मिल कर बांस के पत्ते अलग करने के बाद इन नरमों कोपलों को कतरना शुरू किया. कतरने के बाद इस चूल्हे पर चढ़ा दिया और इतना पानी डाला कि क़तरा हुआ बांस पानी में डूबा रहे.
इसके बाद आँच तेज़ कर दी गई. बांस की इस कतरन को क़रीब 20-25 मिनट तक उबाला गया. इसके बाद इसको उतार कर पानी निकाल दिया गया. कतरन को अच्छे से निचोड़ कर एक थाली में निकाल लिया गया.
इसके बाद कढ़ाई में एक छोटा चम्मच तेल डाला गया. उसमें पहले कटी प्याज़ और फिर कुटा हुआ लहसुन डाल दिया गया. लाल मिर्च और नमक उबाल कर रखे गए बांस की कतरन में डाल दिया गया.
इसके बाद बांस की कतरन को इस तरह से कढ़ाई में डाला गया कि नमक और मिर्च नीचे की तरफ़ चली जाए. क़रीब एक मिनट बाद इसे अच्छे से चलाया गया. अब क़रीब 15-20 मिनट तक इसको हल्की आँच में पकाना था.
अमील बाई के बेटे लक्ष्मण ने हमें बताया था कि उनकी माँ बहुत अच्छा गाती हैं. उन्हें गोंडी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही भाषाओं के गीत आते हैं. जब तक कढ़ाई में बांस की कतरन पक रही थी मैंने उनसे आग्रह किया कि वो हमें एक गीत सुनाएँ.
उन्होंने एक के बाद एक दो गीत सुनाए. दोनों ही गीतों को मैं समझ नहीं पाया क्योंकि मुझे गोंडी समझ नहीं आती है. लेकिन उनकी करारी आवाज़ में गाए गीतों ने समाँ बांध दिया. उन्होंने संक्षेप में इन गीतों के मतलब भी बताए.
मसलन एक गीत में वो मंडावी वंश, महुआ और आम के पेड़ का ज़िक्र करती हैं. वो बताती हैं कि महुआ की डाल को काट कर आँगन में एक जगह पर गाड़ दिया जाता है. इस डाल के चक्कर लगा कर ही लड़का लड़की फेरे लेते हैं और पति पत्नी हो जाते हैं.
उन्होंने बताया कि आम के पत्तों को जोड़ कर बांधा जाता है और शादी के घर में लगाया जाता है. यह शाम ऐसी थी कि जो लंबे समय तक मेरे मन में बसी रहेगी. अच्छा आपको यह बताना तो भूल ही गया कि छत्तीसगढ़ी में बांस को करील बोला जाता है.
करील भाजी बेहद स्वादिष्ट बनती है.