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आंध्र प्रदेश के मुरिया आदिवासी चाहकर भी कक्षा 10वीं से आगे क्यों नहीं पढ़ पाते?

आंध्र प्रदेश में 6600 मुरिया आदिवासी रहते हैं. इन आदिवासियों को अभी तक आंध्र प्रदेश सरकार ने एसटी सूची में शामिल नहीं किया है. ये आदिवासी हिंसा से बच कर भागे हैं लेकिन अब पहचान और ज़मीन की लड़ाई में उलझ गए हैं.

आंध्र प्रदेश (Tribes of Andhra Pradesh) के मुरिया आदिवासी (Muria Tribe) छात्राओं के लिए ‘ आदिवासी पहचान ’ (Tribal Identity) एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

मुरिया आदिवासी समुदाय के कुछ छात्र या छात्राएं ही कक्षा 10वीं तक पहुंच पाते हैं. लेकिन इसके बाद ये छात्र चाहकर भी उच्च शिक्षा (Tribal Education) प्राप्त नहीं कर पाते.

अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले (Alluri Sitaram Raju District) में रहने वाले 25 वर्षीय मड़कम राकेश बताते है कि 2015 में उन्होंने 10वीं कक्षा पास की थी. लेकिन वे उसके बाद उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए. क्योंकि उन्हें राज्य सरकार की तरफ से जातीय प्रमाण पत्र नहीं मिला.

उन्होंने यह भी कहा कि कम से कम उनके गाँव में 200 ऐसे आदिवासी छात्र और छात्राएं है. जो कक्षा 10वीं पास करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए. क्योंकि इन सभी के पास जातीय प्रमाण पत्र नहीं था. 

इन 200 स्कूली छात्र-छात्राओं में आधे से ज्यादा लड़कियां थी. जातीय प्रमाण पत्र कॉलेज और हॉस्टल में एडिमशन के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है.

चुक्कलपाडु बस्ती (Chukkalapadu hamlet) की रहने वाली आदिवासी राव्वा कोइंदे नर्सिंग की छात्रा है. वे एक प्राइवेट संस्थान से अपनी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है. कोइंदे अपने परिवार में इकलौती है, जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त का सौभाग्य मिला है.

कोइंदे ने कहा, “ क्या हम मुरिया भारत के आदिवासी नहीं हैं? हमारा अतीत हर कोई जानता है. अगर हमे कॉलेज में दाखिला लेते समय जाति प्रमाण पत्र या कोई छूट मिल जाए. तो हम भी अपना जीवन बेहतर कर सकते हैं. 

जातीय प्रमाण पत्र ना मिलने से सिर्फ शिक्षा में ही नहीं बल्कि मुरिया आदिवासियों के जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है.

यह लोग राज्य में मिलने वाले सरकारी योजना मसलन मुफ्त राशन, वृद्ध पेंशन और नरेगा कार्ड जैसे लाभ नहीं उठा पाते हैं. 

मुरिया आदिवासी को अभी तक आंध्र प्रदेश ने अपनी एसटी सूची में शामिल नहीं किया है. हालांकि यह छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल है. 

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क्यों नहीं मिल रही पहचान

आंध्र प्रदेश में जाति प्रमाणपत्र के इंतज़ार कर रहे आदिवासी दरअसल यहां पर विस्थापित हो कर पहुंचे हैं. 

मुरिया आदिवासी छत्तीसगढ़ राज्य के मूल निवासी है. सालों पहले नक्सलवाद खत्म करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ‘ सलवा जुडुम ’ नाम से एक हथियारबंद संगठन शुरू किया था.

इस संगठन और नक्सल संगठन के बीच काफ़ी ख़तरनाक संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में फंसे कई आदिवासी परिवारों को अपने गांव छोड़ कर पलायन करना पड़ा.  

2011 में सलवा जुडुम का मामला कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मिशन को गैर कानूनी बताया और इस पर रोक लगा दी.

सलवा जुडुम लागू होने के दौरान मुरिया आदिवासी छत्तीसगढ़ से विस्थापित होकर आंध्र प्रदेश की ओर चले गए. 

सलवा जुडुम खत्म होने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने इन्हें अपने गाँव लौटने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन छत्तीसगढ़ में घर और खेत होने के बावजूद भी यह नहीं लौटे. 

इनमें से कई आदिवासियों का कहना है कि अब भी उन्हें जान का ख़तरा है. यह ख़तरा उन्हें अब नक्सल संगठन से है. 

मुरिया आदिवासी सालों से आंध्र प्रदेश में रहे रहें हैं. आंध्र प्रदेश में करीब 6,600 मुरिया आदिवासी रहते हैं. 

आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता, वेंकटेश जाटवी ने बताया की कई गैर सरकारी संगठन की जांच के अनुसार राज्य में मुरिया आदिवासियों के 1621 घर है.  

स्कूलों की कमी

2010 से पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्कूल बनाने का आदेश दिया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने मुरिया आदिवासियों की बस्ती में अस्थायी स्कूल की व्यवस्था करवाई थी. 

लेकिन इसके बावजूद 54 आदिवासी बस्तियों में से 23 ऐसी बस्तियां है. जहां एक भी स्कूल मौजूद नहीं है. 

इन 23 बस्तियों के अलावा बाकि बस्तियों में 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए एकल शिक्षक स्कूल है. यानि इन स्कूलों में एक ही अध्यापक मौजूद है.

रोज़गार और स्वास्थ्य

मुरिया आदिवासियों के लिए पशुपालन रोज़गार का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है. 

पालतु जानवरों की सेहत उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी की घर के किसी भी सदस्य की है.

मुरिया आदिवासी समुदाय के 45 वर्षीय मुचाकी बुदरा बताते है कि वित्तीय समस्या के समय इन्हीं पालतु जानवरों को बेचकर गुज़ारा किया जाता है. 

इसके अलावा चुक्कलपाडु में रहने वाले कई मुरिया आदिवासी रोज सबुह 2 बजे उठकर महुआ के फूल एकत्रित करने जाते हैं.

मुरिया आदिवासियों की बस्ती में कभी- कभी एक सरकारी नर्स आती है. जो गाँव के लोगों के स्वास्थ्य की जांच करती है. 

इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को अपने साथ पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाती है.

स्वच्छ पानी मिलना है संघंर्ष

मुरिया आदिवासियों के लिए स्वच्छ पानी हमेशा से संघंर्ष रहा है. चिन्ना एडुगुराल्लापल्ली में 23 घर हैं जिनमें लगभग 100 आदिवासी रहते हैं. 

इसके अलावा यहां लगभग 200 गायें और भैंसें, 100 बकरियां हैं. यह सभी पीने के पानी के लिए एक ही बोरवेल पर निर्भर है. ये बोरवेल भी कोविड के बाद स्वैच्छिक संगठन द्वारा लगाया था.

गांव के एक निवासी मसिकी देवे ने कहा कि एक बोरवेल हमारे लिए काफी नहीं है.

यहां रहने वाले मुरिया आदिवासी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाए गए जल जीवन मिशन के बारे में नहीं जानते है.

जल जीवन मिशन केंद्रीय सरकार द्वारा 2019 में शुरू किया गया था. इस योजना के तहत यह वादा किया गया कि 2024 तक देश के हर एक ग्रामीण इलाकों में वॉटर पाइपलाइन पहुंचाई जाएगी.

आंध्र प्रदेश में रहने वाले अधिकतकर मुरिया आदिवासी बस्ती को अधिकारिक रूप से गाँव नहीं माना गया है. क्योंकि सरकार के अनुसार मुरिया आरक्षित वनों में गैर तरीकों से आकर बस गए है.

गाँव के वन अधिकारी ने बताया कि अगर कभी सरकार की तरफ से बोरवेल जैसी सुविधा लागू करने का आदेश आता भी है. तो उस पर महज़ विचार ही किया जाता है. 

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