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BAP की नज़र राज्यों में आदिवासियों के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों पर

भारत आदिवासी पार्टी ने देश भर में 30 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. बांसवाड़ा में BAP ने इंडिया ब्लॉक के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ा.

“एक तीर, एक कमान, सारे आदिवासी एक समान”….राजकुमार रोत की रैली के समापन को देखने के लिए इकट्ठा हुए हजारों लोगों ने ये नारा लगाया.

चिलचिलाती गर्मी के बीच बांसवाड़ा लोकसभा सीट (जहां पिछले शुक्रवार को मतदान हुआ) से अपने युवा नेता और उम्मीदवार का समर्थन करते हुए भीड़ का उत्साह तेज़ हो गया क्योंकि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक घटना से कहीं अधिक “यह एक क्रांति है.”

भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के संस्थापक और दो बार के विधायक राजकुमार रोत ने घोषणा की, “यह चुनाव हमारे संविधान और आदिवासी अधिकारों की रक्षा के बारे में है.”

आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना, भील प्रदेश राज्य का दर्जा, आरक्षण की वकालत करना, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक अवसरों तक उनकी पहुंच बढ़ाना बीएपी का मुख्य चुनाव एजेंडा है.

वहीं सोशल मीडिया यूजर्स ने BAP के जन्मस्थान पर रैली की सफलता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. स्मार्टफोन से लैस तीन-चौथाई समर्थकों में युवा और किशोर शामिल थे. ये उत्साही उपस्थित लोग जल्द ही प्रसारक बन गए और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर इस माहौल को लाइव साझा कर रहे थे.

एक समर्थक ने कहा कि यहां इंटरनेट का इस्तेमाल एक विलासिता बनी हुई है. क्या यही विकास दिखता है? हम बीएपी का समर्थन करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल रूप से प्रसारित होने में असमर्थ हमारी आवाज़ हमारे प्रतिनिधियों के माध्यम से दिल्ली में सुनी जाए.

बीएपी ने देश भर में 30 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. बांसवाड़ा में BAP ने इंडिया ब्लॉक के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ा.

दरअसल, शुरुआती हिचकिचाहट के बावजूद बांसवाड़ा में कांग्रेस विधायकों ने बीएपी के बढ़ते प्रभाव के बीच उसके साथ गठबंधन किया.

डूंगरपुर में स्थानीय कांग्रेस समर्थक प्रदीप मीना ने कहा कि बीएपी के बढ़ते प्रभाव के कारण कांग्रेस विधायक अगले विधानसभा चुनाव में अपनी सीटें खोने की आशंका से डरे हुए हैं. उन्होंने इस गठबंधन का विरोध नहीं किया क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि कांग्रेस बांसवाड़ा में कुछ सीटें बरकरार रखे.

वर्तमान में बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आठ विधान सभा सीटों में से चार पर भाजपा, तीन पर कांग्रेस और एक पर बीएपी का कब्जा है.

वैसे राजकुमार रोत को गठबंधन से लाभ ही हुआ है. क्योंकि बीएपी और कांग्रेस के बीच देर से हुए गठजोड़ के चलते कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद सीता डामोर अपना नामांकन वापस नहीं ले रहे थे. ऐसे में कांग्रेस ने डामोर को पार्टी से निकाल दिया और बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर बीएपी के रोत को उम्मीदवार बनाया.

गठबंधन सहयोगियों के मुताबिक, डामोर का नाम वापस नहीं लेने के पीछे का कारण भाजपा के उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीय थे. ऐसे में मालवीय के साथ उनके कथित संबंधों के कारण कांग्रेस ने उन्हें निलंबित कर दिया.

मालवीय 2021 से 2023 तक अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री थे. मालवीय चुनाव से तुरंत पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए हैं.

इसके अलावा इंडिया ब्लॉक समर्थकों ने दो अन्य स्वतंत्र उम्मीदवारों के नाम राजकुमार ही होने पर चिंता व्यक्त की, जिससे चुनावी परिदृश्य मुश्किलें आ गई हैं.

अमरपुरा के राजेंद्र पारगी ने कहा कि भाजपा इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए हमशक्लों को तैनात करने और एक ही नाम वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने सहित विभिन्न रणनीति का सहारा ले रही है.

हालांकि, इस मुश्किल को दूर करने के लिए BAP ने सैकड़ों समूहों का आयोजन किया, जिनमें प्रत्येक गांव के पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे, जिन्हें मतदाताओं को शिक्षित करने का काम सौंपा गया था.

उनका मिशन यह स्पष्ट करना था कि राजकुमार नाम के चार उम्मीदवार चुनाव में हैं और मतदाताओं को वोटिंग मशीन पर चौथे स्थान पर स्थित हॉकी और बॉल प्रतीक की जांच करना सुनिश्चित करना चाहिए.

अफजल रजाक, एक समर्पित बीएपी समर्थक, जिन्होंने हरियाणा के मेवात से बांसवाड़ा तक लगभग 800 किमी की यात्रा की है, उन्होंने समझाया, “बीएपी की ताकत सोशल मीडिया के इस्तेमाल, स्वयंसेवी समूहों की जबरदस्त उपस्थिति और पहली बार मतदाताओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित और सशक्त बनाने के रणनीतिक दृष्टिकोण में निहित है.”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समुदाय के लिए निस्वार्थ सेवा के प्रति BAP की निरंतर प्रतिबद्धता हर दिन बढ़ रही है.

रोत ने अपनी बांसवाड़ा रैली में कथित तौर पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और आदिवासियों को “शहरी नक्सली” करार देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की.

राजकुमार रोत ने 2013 में एसबीपी गवर्नमेंट कॉलेज के दिनों के दौरान राजनीति में प्रवेश किया और 2018 में गुजरात स्थित भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) की सीट पर विधायक चुने गए. दिसंबर 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उन्होंने छह साल पुरानी बीटीपी से नाता तोड़ लिया और बीएपी की स्थापना की.

तब से BAP ने तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाया है और 12 से अधिक राज्यों तक पहुंच गया है. राजस्थान में तीन और मध्य प्रदेश में एक विधायक की मौजूदगी के साथ पार्टी का तेजी से आगे बढ़ना राजनीतिक परिदृश्य में एक मजबूत ताकत के रूप में इसके प्रभाव को दिखाता है.

2023 में राजस्थान में अपने शुरुआती राजनीतिक अभियान में BAP ने न सीर्फ तीन सीटों पर जीत हासिल की बल्कि उसके चार उम्मीदवार उपविजेता स्थिति में भी थे. चोरासी में रोत की ऐतिहासिक जीत शानदार रही, उन्होंने 69,166 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, जो राज्य में दूसरा सबसे बड़ा अंतर है.

वहीं 543 लोकसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित होने के कारण रोत अपनी उपस्थिति का विस्तार करना चाहते हैं और इसके लिए प्रतिबद्ध हैं.

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