तेलंगाना में बुधवार को 12 आदिवासी महिलाओं ने जेल से छूटते ही कहा है कि वो फिर वही करेंगी, जिसके लिए उन्हें पुलिस ने जेल में डाला था. उन्होंने कहा कि किसी भी सूरत में उनका परिवार अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेगा.
ये आदिवासी औरतें कहती हैं कि सरकार जिसे वन विभाग की ज़मीन कहती है उस पर आदिवासी कई पुश्तों से खेती कर रहे हैं.
तेलंगाना पुलिस ने इन 12 आदिवासी औरतों को ग़िरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था. इन औरतों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रखने का हुक्म हुआ था.
प्रशासन की तरफ़ से इन आदिवासी औरतों पर ज़मीन क़ब्ज़ा करने का मुक़दमा दायर किया गया है. इन औरतों पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से जंगल की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास किया है.
वाइल्डलाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 (Wildlife Protection Act 1972) के तहत इन आदिवासी औरतों पर मुकदमा कायम किया गया है. अगर इस क़ानून के तहत इन औरतों पर आरोप साबित हो जाता है तो उन्हें 6 साल की सज़ा हो सकती है.
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वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इन औरतों ने जबरन जंगल की ज़मीन को साफ़ किया. इस ज़मीन पर ये औरतें खेती करना चाहती थीं. वन विभाग का कहना है कि पहले आदिवासी पुरूष ज़मीन क़ब्ज़ा करते थे.
कई आदमी गिरफ्तार भी हुए जो बाद में ज़मानत पर छूट गए थे. लेकिन हाल-फिलहाल में देखा गया है कि औरतें को ज़मीन क़ब्ज़ा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
यह बताया गया है कि जिन औरतों को जेल भेजा गया है उन्होंने जंगल में घुस कर कम से कम 2-3 हेक्टेयर भूमि को साफ़ कर के खेती लायक़ बना लिया था. अधिकारियों का कहना है कि जनाराम जंगल का यह भाग टाइगर रिज़र्व के तहत आता है.
जंगल के इस हिस्से की सैटेलाइट तस्वीरें बताती हैं कि यहाँ पर पहले खेती नहीं होती रही है. लेकिन आदिवासियों का दावा अलग है.
डांडेंपल्ली ब्लॉक के कोयपोचागुडा आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकारी ग़लत सूचना दे रहे हैं. उनका दावा है कि वो कई बरस से इस जंगल में पोडु खेती करते रहे हैं.
तेलंगाना में पोडु भूमि के मसले पर वन विभाग, पुलिस और आदिवासियों में संघर्ष की ख़बरें मिलती रहती हैं. आदिवासी कहते हैं कि जंगल में वो बरसों से खेती करते रहे हैं.
लेकिन सरकार के अधिकारी आदिवासियों के इन दावों को मानते नहीं हैं. इसकी वजह से इन इलाक़ों में लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है.
जोहार मैं झारखंड बोकारो जिला से मैं बोल रहा हूं या मैसेज पढ़ करके मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है आखिर आदिवासियों को क्यों टारगेट किया जाता है क्योंकि आदिवासी समुदाय जल जंगल और जमीन का खुद ही मालिक है तो फिर जंगल कब्जा किस आधार से किया क्योंकि आदिवासी खुद ही जल और जंगल का मालिक है तो फिर उनको गलत साबित करना या कहां तक का नया संगत है ऐसे भी पूरा भारत में आदिवासियों को किसी ना किसी तरह से परेशान किया ही जाता है संविधान को ताक में रखकर के आदिवासियों के के साथ आए दिन ऐसी घटना होते रहते हैं मेरा झारखंड में भी इसी तरह का हाल है