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UCC पर अभी कोई फैसला नहीं, जनजातीय लोगों को विशेष अधिकार मिलते रहेंगे – समीर उराँव

समीर उरांव ने कहा कि जनजातीय आबादी को समान नागरिक संहिता के आलोचकों द्वारा गुमराह नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इस मामले पर परामर्श चल रहा है और इस मुद्दे पर अभी तक सार्वजनिक तौर पर कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है.

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों सहित भारत के विभिन्न हिस्सों के आदिवासी समुदायों के विरोध से बीजेपी के आदिवासी नेता और आदिवासी इलाकों में काम करने वाले संगठन बचाव की मुद्रा में हैं.

देश में UCC की बहस के बीच भाजपा के सांसद और पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष समीर उरांव ने सोमवार को विश्वास जताया कि समुदाय को विशेष अधिकार मिलते रहेंगे.

भाजपा नेता को यह कहना पड़ा है कि जनजातीय समुदाय और जनजातीय क्षेत्रों को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची और उनके रीति-रिवाजों से संबंधित नियमों के तहत विशेष अधिकार प्राप्त हैं.

जनजातियों को विशेषाधिकार देना जरूरी समझा गया था, क्योंकि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना था.

बीजेपी के आदिवासी नेता को यह भी कहना पड़ा है कि जनजातीय आबादी को समान नागरिक संहिता के मामले पर परामर्श चल रहा है और इस मुद्दे पर अभी तक सार्वजनिक तौर पर कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है.

यूसीसी पर RSS से जुड़ी संस्था का लॉ कमीशन को सुझाव

यूसीसी को लेकर चल रही बहस के बीच हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने संसदीय समिति के अध्यक्ष सुशील मोदी के उस सुझाव का स्वागत किया है जिसमें आदिवासियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया गया है.

एक बयान में संगठन ने विधि आयोग से कहा कि वह जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट न सौंपे. संगठन ने आग्रह किया कि आयोग पहले अपने प्रमुख सदस्यों और संगठनों से आदिवासी समुदायों की प्रथागत प्रथाओं और परंपराओं को समझने को कहे.

आरएसएस संगठन ने अनुसूचित जनजातियों और उनके संगठनों के सदस्यों से आग्रह किया कि अगर उन्हें प्रस्तावित यूसीसी के संबंध में उनकी कोई चिंता है तो वे सोशल मीडिया पर चर्चाओं से “गुमराह” होने के बजाय वह इस मुद्दे पर विधि आयोग के सामने अपने विचार रखें.

कानून पर एक संसदीय पैनल के अध्यक्ष, भाजपा सांसद सुशील मोदी ने हाल ही में एक बैठक के दौरान पूर्वोत्तर सहित आदिवासियों को किसी भी संभावित यूसीसी के दायरे से बाहर रखने की वकालत की थी.

वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने एक बयान में कहा कि अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से बाहर रखने में हम संसदीय समिति के प्रमुख सुशील कुमार मोदी की भूमिका का स्वागत करते हैं.

सिंह ने कहा कि इन दिनों यूसीसी को लेकर खासकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा चल रही है, जिससे आम लोग भ्रमित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज भी इससे अछूता नहीं है. निहित स्वार्थ वाले कुछ लोग आदिवासी समाज को भी गुमराह कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासी समाज, विशेषकर उनके सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और शिक्षित वर्ग को सचेत करना चाहता है कि वे किसी के बहकावे में न आएं.

सत्येंद्र सिंह ने आगे कहा कि अभी यह भी साफ नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है. अगर आदिवासी समाज के लोगों और उनके संगठन को लगता है कि इसके (यूसीसी) कारण उनकी प्रथागत प्रथाओं और प्रणालियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तो उन्हें सीधे विधि आयोग के समक्ष अपनी चिंताओं को उठाना चाहिए. आप 14 जुलाई तक अपने विचार विधि आयोग को ऑनलाइन प्रस्तुत कर सकते हैं.

सिंह ने कहा कि विधि आयोग सभी हितधारकों से परामर्श के बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा और उसके बाद ही सरकार संसद में विधेयक लाएगी. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई बिल आने पर कल्याण आश्रम भी अपना सुझाव या फीडबैक देगा.

कल्याण आश्रम विधि आयोग से यह भी अनुरोध किया है कि वह देश के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों का दौरा करें और आदिवासियों के प्रमुख लोगों और संगठनों के साथ चर्चा करके उनके समाज के माध्यमिक प्रणाली, विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर उनके विचारों को गहराई से समझने का प्रयास करें और आयोग को जल्दबाजी में अपनी रिपोर्ट ना दे.

यूसीसी को लेकर आदिवासी समुदायों का डर

समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के परामर्श के बीच कुछ जनजातीय समूहों ने मांग की है कि उन्हें कानून से बाहर रखा जाए. पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों, जहां जनजातीय आबादी बहुसंख्यक है, ने भी इसका विरोध किया है.

दरअसल, देश के कई आदिवासी संगठन इस आशंका में हैं कि अगर यह कानून लागू हुआ तो उनके रीति-रिवाजों पर इसका असर पड़ेगा. आदिवासी संगठनों का मानना है कि यूसीसी के कारण आदिवासियों की पहचान ख़तरे में पड़ जाएगी.

वहीं हाल ही में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में नगालैंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उन्हें यूसीसी सहित अन्य मुद्दों पर अपनी चिंताओं से अवगत कराया.

समान नागरिक संहिता लंबे समय से भाजपा के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था.

समान नागरिक संहिता क्या है?

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का सीधा अर्थ एक देश-एक कानून है. इसका मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून.

अभी शादी, तलाक, गोद लेने के नियम, उत्तराधिकारी, संपत्तियों से जुड़े मामलों के लिए सभी धर्मों में अलग-अलग कानून हैं. लेकिन अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे.

RSS की ज़मीन हिल गई

जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में यूसीसी लागू करने की बहस को छेड़ा है, आदिवासी समुदायों में बीजेपी के प्रति आशंका का माहौल बना है.

आदिवासी इलाक़ों में लंबे समय से काम करने वाले RSS के संगठनों की ज़मीन आदिवासी इलाक़ों में हिल गई है. इसलिए RSS से जुड़े संगठनों और बीजेपी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा ने पार्टी पर दबाव बनाया है कि इस बहस को फ़िलहाल टाल दिया जाए.

क्योंकि इस साल तीन राज्यों यानि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधान सभा चुनाव हैं. अगर आदिवासी बीजेपी या संघ परिवार से नाराज़ होते हैं तो फिर पार्टी का सत्ता में आना नामुमकिन हो सकता है.

(Photo: Twitter/@SameerOraon16)

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