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आदिवासी हितों की चिंता ख़ारिज, वन संरक्षण में बदलाव को संसदीय समिति की हरी झंडी

संसदी की संयुक्त समिति ने वन संरक्षण कानून 1980 से जुड़े संशोधन बिल को जस का तस approve कर दिया है. यानि कि कमेटी ने इस बिल में किसी तरह के बदलाव का सुझाव नहीं दिया है. इस संबंध में दर्ज की गई आपत्तियों को कमेटी ने पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है. यह उम्मीद की जा रही है कि मानसून सत्र में कमेटी अपनी रिपोर्ट संसद में पेश कर देगी. यह उम्मदी की जा सकती है कि एक बार कमेटी की रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद सरकार इस बिल पर आगे बढ़ेगी.

संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार वन संरक्षण कानून 1980 में संशोधन के लिए प्रस्तावित बिल का clause by clause विश्लेषण किया गया.

इस क्रम में भारत सरकार के कम से कम 10 मंत्रालायों से सुझाव या जानकारी मांगी गई. इसके अलावा छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों से विशेषज्ञों, व्यक्तियों और सार्वजनिक संस्थाओं से भी आपत्ति या राय मांगी गई थी. 

यह बताया जा रहा है कि इतनी गहन पड़ताल के बाद कमेटी ने यह पाया है कि इस बिल से जुड़ी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और आदिवासी कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की चिंता आधारहीन है.

हांलाकि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी वन संरक्षण कानून 1980 में प्रस्तावित संशोधनों को आदिवासी हितों के लिए घातक बताया था.

लेकिन कमेटी को ऐसी किसी आशंका को कोई आधार नहीं मिला है. कमेटी में शामिल कुछ सांसदों ने इस बिल के प्रवाधानों पर आपत्ति ज़रूर दर्ज कराई है. लेकिन कमेटी की आखरी रिपोर्ट इस बिल को अनुमोदन देती है.

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