मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव लगभग दो साल दूर हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 2018 के चुनाव में जिन कमियों की कीमत चुकानी पड़ी थी उन्हें दूर करने के लिए अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है. इस रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा राज्य के आदिवासियों और दलितों तक पहुंच बनाना है.
बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (ST) और अनुसूचित जाति (SC) का एक बड़ा वर्ग पार्टी का समर्थन नहीं करता है और इसकी बड़ी वजह उनके समुदाय का बीजेपी में प्रतिनिधित्व न के बराबर होना है.
2011 की जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में कुल जनसंख्या का 21.5 फीसदी आदिवासी हैं जो भारत में किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक है. इसमें 15.6 फीसदी अनुसूचित जाति शामिल हैं.
राज्य की 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2018 में बीजेपी ने मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में 16 सीटें जीतीं जबकि 2013 में 31 सीटें थीं. 2018 में बीजेपी ने एससी के लिए आरक्षित 35 सीटों में से 17 सीटें जीती थीं जबकि 2013 में 28 सीटें जीती थीं.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम एससी और एसटी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे और बीजेपी को एससी/एसटी की पार्टी बनाएंगे. एससी और एसटी आबादी के लिए पहले से ही कार्यक्रम शुरू किए जा चुके हैं.”
उन्होंने कहा कि फिलहाल हमें समुदाय से 30-35 फीसदी वोट मिलते हैं और लक्ष्य 75 फीसदी तक पहुंचने का है. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि लोग हमें समाज के सभी वर्गों के लिए एक पार्टी के रूप में देखें.
इसके लिए पार्टी एक बहु-आयामी रणनीति पर नजर गड़ाए हुए है. जो सरकारी कार्यक्रमों और पार्टी में संगठनात्मक परिवर्तन से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों को शुरू करने तक है.
राज्य के नेताओं को इस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है और उनके काम को पहचानने के लिए कार्यक्रमों के संचालन के लिए प्रतिष्ठित एससी/एसटी आंकड़ों की पहचान की जा रही है.
18 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जबलपुर का दौरा किया और आदिवासी नायकों को सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम में भाग लिया जहां उन्होंने उनके विकास के लिए भाजपा द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में भी बात की.
दिप्रिंट से बात करते हुए मध्य प्रदेश के बीजेपी प्रभारी पी. मुरलीधर राव ने कहा कि पार्टी का संगठन विस्तार और भविष्य का एकीकरण आदिवासी आबादी और अनुसूचित जातियों पर भी केंद्रित होगा. उन्होंने कहा कि हम इसे हासिल करने के लिए अभियान, कार्यक्रम और सभी कोशिश करेंगे.
बीजेपी 2018 के चुनाव में 109 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. 230 सदस्यीय एमपी विधानसभा में 114 सीटें जीतने वाली कांग्रेस से वो बस थोड़ा ही पीछे रही थी.
हालांकि यह मार्च 2020 में सरकार बनाने में सफल रही जब ज्योतिरादित्य सिंधिया जो अब एक केंद्रीय मंत्री हैं अपने 22 कांग्रेस विधायकों के साथ पार्टी में शामिल हो गए.
सूत्रों ने कहा कि बीजेपी 2003 से मध्य प्रदेश की सत्ता में काबिज है सिर्फ वो एक साल को छोड़कर जब कांग्रेस के कमलनाथ मुख्यमंत्री थे. लेकिन एससी और एसटी समुदायों के एक बड़े वर्ग ने अभी भी इसे अपना समर्थन नहीं दिया है.
सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने बीजेपी की राज्य कार्यसमिति की बैठक के दौरान आदिवासियों और दलितों के लिए आउटरीच कार्यक्रम शुरू करने के मुद्दे पर चर्चा हुई थी जिसमें कई नेताओं ने जोर देकर कहा था कि पार्टी को उन पर ध्यान देने की जरूरत है.
सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने राज्य में 35 निर्वाचन क्षेत्रों की भी पहचान की है जहां वह पिछले कई सालों से नहीं जीती है.
बीजेपी के एक दूसरे नेता ने कहा कि इसके लिए एक विशेष टीम का गठन किया जाएगा और यह पता लगाया जाएगा कि हम इन सीटों पर क्यों नहीं जीत पाए और क्या करने की जरूरत है.
बीजेपी के एक तीसरे नेता ने कहा कि बूथ से लेकर मंडल और जिला स्तर तक सभी स्थानीय सदस्यों को पिछले तीन चुनावों को देखते हुए पार्टी के वोट शेयर को कम से कम 10 फीसदी बढ़ाने का लक्ष्य दिया गया है.
नेता ने आगे कहा, “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों का एक बड़ा वर्ग हमारा समर्थन करता है लेकिन साथ ही कुछ ऐसे उपवर्ग हैं जिन तक हमें पहुंचने की जरूरत है. एक बार अगर हम ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं तो हम अगले चुनावों के लिए राजनीतिक रूप से बेहतर स्थिति में होंगे.”
माना जा रहा है कि बीजेपी इस बात को लेकर भी चिंतित है कि कई एससी और एसटी लगातार कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं. तीसरे नेता ने कहा, “हम एससी और एसटी समुदायों के सभी उपवर्गों तक पहुंचने के लिए विशेष योजनाएं बना रहे हैं. इससे हमें कांग्रेस का आधार कमजोर करने में भी मदद मिलेगी.”
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव भले ही करीब दो साल बाद है लेकिन राज्य की सत्तारुढ़ पार्टी और कांग्रेस अभी से आदिवासियों और दलितों का वोट साधने में लग गए हैं.
जहां एक तरफ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ भाषणों में राज्य में आदिवासियों के लिए कई घोषणाएं कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस उनके 15 साल के कार्यकाल की कमियों को उजागर करने में लगी है.
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान 15 साल से मुख्यमंत्री हैं. उनके शासन काल का रिकॉर्ड देखेंगे तो उनकी घोषणाओं और नीयत में बड़ा फ़र्क दिखाई देगा. क्योंकि आदिवासियों के ख़िलाफ अत्याचारों और शोषण के मामले में मध्य प्रदेश की रिपोर्ट शर्मनाक है.
प्रदेश बाल अपराध और आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में नंबर 1 है. प्रदेश में साल 2020 में आदिवासियों के उत्पीड़न मामले 20 फीसदी बढ़े हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2020 की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश में अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत 2,401 केस दर्ज हुए हैं. बीते 3 साल से प्रदेश इन अपराधों में पहले पायदान पर ही है.