केरल (Tribes of kerala) के त्रिशुर ज़िले (Thrissur District) में एक बीमार गर्भवती आदिवासी महिला का आखिरकार कई ग्राम संगठनों और अधिकारियों के हस्ताक्षेप के बाद इलाज़ करवाया गया.
यह घटना मत्ताथुर गाँव की है. जहां एक गर्भवती आदिवासी महिला नंदिनी हीमोग्लोबिन की कमी से जूझ रही थी. लेकिन नंदिनी के परिवार वाले उसका इलाज़ करने के लिए सहमत नहीं थे.
इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक जनवरी के महीनें में बुखार के कारण नंदिनी पास के हेल्थ सेंटर गई थी.
लेकिन जब प्राथमिक केंद्र के डॉक्टरों को यह मालूम पड़ा की वो गर्भवती है तो उन्होंने उसको चलाकुडी के तालुक अस्पताल में जाने की सलाह दी. लेकिन वो अस्पताल नहीं गई और अपने घर बीमार हलात में लौट आई.
नंदिनी का घर कोनिवेचामापारा के गहरे जंगल में स्थित है. नंदिनी और उसका परिवार जंगल के चट्टान पर बने अस्थायी तंबू में रहते हैं. घने जंगलों में स्थित इस इलाके से सात किलोमीटर की दूरी पर एक सड़क मौजूद है.
जब नंदिनी और उसके पिता डॉक्टर के कई बार कहने पर तालुक अस्पताल गए तो डॉक्टर ने यह सलाह दी की हिमोग्लोबिन की कमी के कारण नंदिनी को इलाज़ की जरूरत है. लेकिन उनके पिता ने इलाज़ से साफ इनकार कर दिया.
इसी सिलसिले में मंगलवार को पंचायत सदस्य, चित्रा सूरज और हेल्थ सेंटर के सदस्य, नंदिनी और उसके परिवार से मिलने आए.
उनका मिलना सफल रहा. नंदिनी के पति ने इलाज़ में दिलचस्पी दिखाई और अधिकारियों का साथ दिया.
अब नंदिनी को 10 दिन के लिए तालुक अस्पताल में इलाज़ के लिए भेज दिया गया है.
इस मामले में यह समझने की जरूरत है की आदिवासी क्यों अक्सर बीमारी जानते हुए भी इलाज़ करवाने में संकोच दिखाते है.
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया की आदिवासी परिवार आज भी अपने जीवनयापन के लिए वन उपज पर निर्भर है.
उनकी कमाई इतनी नहीं होती है की वे अस्पताल में इलाज़ का खर्च उठा पाए. यह भी एक कारण हो सकता है, जिसकी वज़ह नंदिनी का परिवार इलाज़ में संकोच दिखा रहा था.
अस्पताल में होने वाले खर्चों से बचने के लिए कई बार आदिवासी परिवार घरेलू इलाज़ का रास्ता चुन लेते है. यह रास्ता कभी-कभी बीमार व्यक्ति ने लिए हानिकारक साबित होता है.
बहुत अच्छी जानकारी।