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गुजरात कांग्रेस के प्रमुख आदिवासी नेता अश्विन कोतवाल भाजपा में शामिल, कहा मोदी से हैं लंबे समय से प्रभावित

कोतवाल के इस्तीफे के साथ, विधानसभा में कांग्रेस की ताकत अब 63 हो गई है. सत्तारूढ़ खेमे के पास 111 विधायक हैं. सदन की 182 सीटों में से 27 अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हैं. कांग्रेस के पास अभी उनमें से 11 हैं.

गुजरात में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, विपक्षी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. पार्टी के एक प्रभावशाली आदिवासी विधायक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, और मंगलवार को सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए.

खेड़ब्रम्हा विधायक अश्विन कोतवाल ने विधानसभा अध्यक्ष नीमाबेन आचार्य को अपना इस्तीफा सौंप दिया और बाद में गुजरात भाजपा मुख्यालय ‘श्री कमलम’ में राज्य के पार्टी प्रमुख सी आर पाटिल की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हो गए.

कोतवाल के इस्तीफे के साथ, विधानसभा में कांग्रेस की ताकत अब 63 हो गई है. सत्तारूढ़ खेमे के पास 111 विधायक हैं. सदन की 182 सीटों में से 27 अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हैं. कांग्रेस के पास अभी उनमें से 11 हैं.

कोतवाल का इस्तीफ़ा ऐसे समय पर आया है, जब सत्तारूढ़ भाजपा कांग्रेस के वोट बैंक माने जाने वाले आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की पुरज़ोर कोशिश कर रही है.

परंपरागत रूप से, कांग्रेस पार्टी ही गुजरात के आदिवासी मतदाताओं की पहली पसंद रही है. लेकिन इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों ही आदिवासी समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.

भाजपा में शामिल होने के बाद कोतवाल ने मीडिया को बताया कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकास कार्यों’ से काफ़ी प्रभावित हैं. उन्होंने यह भी कहा कि 2007 में जब वह पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे, तब उन्होंने गांधीनगर में मोदी से मुलाकात की थी.

उन्होंने कहा, “तब से मैं भले ही कांग्रेस में रहा हूं, लेकिन मोदी मेरे दिल में बसे हुए हैं.”

अपने फ़ैसले के बारे में बात करते हुए अश्विन कोतवाल ने कहा, “मैं कांग्रेस के कामकाज से नाखुश था. पार्टी ने सिर्फ अपनी जेबें भरी हैं और आदिवासी लोगों के लिए कुछ नहीं किया है. दूसरी तरफ़, भाजपा के पास आदिवासियों के विकास के लिए एक अच्छा दृष्टिकोण है.”

कोतवाल ने यह भी कहा कि इलाक़े में गैर सरकारी संगठन आदिवासियों को गुमराह कर उनका शोषण कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने न तो किसी एनजीओ या अधिकारी का नाम लिया, और न ही अपनी पूर्व पार्टी के खिलाफ कोई ख़ास शिकायत की.

उधर, कांग्रेस का दावा है कि पिछले साल दिसंबर में वरिष्ठ आदिवासी विधायक सुखराम राठवा को विपक्ष का नेता (एलओपी) नियुक्त किए जाने के बाद से ही कोतवाल पार्टी से नाखुश थे. कोतवाल विपक्षी दल के चीफ़ व्हिप थे, और उन्हें सदन में पार्टी का नेता बनने की उम्मीद थी. न तो उन्हें वो पद मिला, बल्कि फरवरी में कोतवाल को हटाकर सीजे चावड़ा को चीफ़ व्हिप बना दिया गया.

कांग्रेस का यह भी दावा है कि भाजपा कोतवाल के ज़रिए आदिवासी समुदायों के बीच अपनी पहुंच बढ़ाना चाहती है.

भाजपा के नेताओं ने भी इस बात पर सहमति जताई कि कोतवाल को शामिल करने से पार्टी को दो तरह से मदद मिलेगी – आदिवासियों के बीच पार्टी की स्थिति मजबूत होगी, और इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त भी मिलेगी.

इस बीच, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के साथ गुजारत चुनाव के लिए गठबंधन किया है. वसावा 1990 से विधायक हैं और उनके बेटे महेश वसावा भी विधायक हैं.

जानकारों का मानना है कि कोतवाल के इस कदम से भाजपा को उत्तरी गुजरात में काफ़ी मदद मिलेगी. कोतवाल पिछले तीन कार्यकालों से खेड़ब्रह्म की सीट जीत रहे हैं, और इलाक़े में उनका काफ़ी प्रभाव है.

उत्तरी गुजरात में आदिवासी मतदाता अब तक कांग्रेस का साथ देते आए हैं. कोतवाल के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने से आदिवासियों का यह महत्वपूर्ण वोट बैंक सत्तारूढ़ पार्टी के पाले में आ सकता है.

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