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तेलंगाना में पोडु भूमि के मुद्दे पर फिर आदिवासी और वन विभाग आमने-सामने

वन अधिकारियों का कहना है कि कुछ जगहों पर वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, और एफ़आरए द्वारा निर्धारित 13 दिसंबर, 2005 की कट-ऑफ डेट के बाद भी आदिवासियों द्वारा यहां खेती की जाती रही है. दूसरी तरफ़ आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकारियों ने पोडु भूमि पर कब्ज़ा कर लिया है जिस पर वे 40 साल से ज़्यादा से खेती कर रहे हैं.

तेलंगाना के भद्राद्री-कोठागुडेम ज़िले के रामवरम वन रेंज की एक आदिवासी बस्ती के किसानों के एक समूह और वन विभाग के कर्मचारियों की एक टीम के बीच ‘पोडु  भूमि’ के मुद्दे पर विवाद के चलते तनाव की स्थिथ बनी हुई है.

घटना गुरुवार दोपहर की है जब रामवरम आरक्षित वन रेंज में स्थित गांव के पास वन विभाग कर्मचारियों द्वारा वृक्षारोपण अभियान के प्रयासों का कुछ आदिवासी किसानों ने विरोध किया.

स्थिति कुछ समय के लिए तनावपूर्ण बनी रही क्योंकि किसानों ने वन कर्मचारियों पर कई आदिवासी महिलाओं पर हमला करने, और उनकी पोडु  भूमि पर वृक्षारोपण का विरोध करने के लिए उनपर हमला करने का आरोप लगाया.

हालांकि, संबंधित वन अधिकारियों ने भूमि पर उनके दावों को खारिज कर दिया, और वन विभाग के कर्मचारियों के खिलाफ लगाए जा रहे आरोपों को निराधार बताया. आदिवासी किसानों और वन विभाग कर्मचारियों दोनों ने स्थानीय थाने में एक दूसरे के खिलाफ़ शिकायत दर्ज कराई है.

राज्य में पोडु  भूमि को लेकर आदिवासियों और सरकार के बीच टकराव की स्थिति लंबे समय से बनी हुई है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा है कि पोडु भूमि के मुद्दे को राज्य सरकार गंभीरता से ले रही है

इसी साल मार्च के महीने में तेलंगाना की जनजातीय कल्याण मंत्री सत्यवती राठोड ने विधानसभा में बताया था कि एफ़आरए, 2006 के लागू होने के बाद से दायर 6,31,850 एकड़ ज़मीन के लिए कुल दावों में से 3,03,970 एकड़ ज़मीन पर 94,774 पट्टे दिए गए हैं.

2018 के बाद से किए गए दावों पर मंत्री ने कहा कि 98,745 एकड़ के लिए 27,990 दावे किए गए थे. उनमें से 2,401 दावे योग्य पाए गए और उन्हें पट्टे दिए गए. अब 53,565 एकड़ के लिए 15,613 दावे लंबित हैं. 40,932 एकड़ ज़मीन के लिए बचे 9,976 दावों को ज़िला स्तर की समितियों ने खारिज कर दिया था.

पुराने आदिलाबाद ज़िले में पोडु  भूमि के मुद्दे को सुलझाने के लिए राज्य सरकार ने हाल ही में घोषणा की थी कि वन विभाग 13 दिसंबर, 2005 से पहले आदिवासियों द्वारा खेती की जा रही ज़मीन की जानकारी इकट्ठा कर रहा है. यह जानकारी पोडु  भूमि के मुद्दे को निपटाने के लिए गठित कैबिनेट उप-समिति को प्रस्तुत की जाएगी.

राज्य सरकार इस मुद्दे को जल्द से जल्द निपटाने के लिए आदिवासियों को पोडु भूमि के लिए पट्टा जारी करने पर गंभीरता से विचार कर रही है.

उत्नूर आईटीडीए के परियोजना अधिकारी भावेश मिश्रा ने डेक्कन क्रॉनिकल को बताया कि एफ़आरए के तहत पुराने आदिलाबाद ज़िला क्षेत्र में 13 दिसंबर, 2005 से पहले पोडु भूमि पर खेती करने वाले 35,000 आदिवासियों को पट्टा जारी किया गया था. इनमें से अकेले आदिलाबाद ज़िले में आदिवासियों को 17,000 पट्टे दिए गए.

साथ ही, निर्मल ज़िले में 5500 आदिवासियों को 6589 एकड़ ज़ीमन के लिए पट्टे जारी किए गए. कैबिनेट मंत्रियों की उप-समिति के जल्द ही केंद्र सरकार को अपनी सिफ़ारिशें सौंपने की उम्मीद है.

तेलंगाना सरकार केंद्र सरकार को उस पोडु भूमि की डीटेल्स देगी जहां आदिवासी लंबे समय से खेती कर रहे हैं. इसमें 13 दिसंबर, 2005 से पहले उनके द्वारा कितनी एकड़ खेती की गई थी, कितने दावे लंबित हैं, और कितने को खारिज कर दिया गया था, यह डीटेस्ट होंगे.

पोडु भूमि के मुद्दे को राज्य सरकार गंभीरता से ले रही है क्योंकि कई जगहों पर वन भूमि पर खेती को लेकर आदिवासी और वन अधिकारी आमने-सामने हैं.

वन अधिकारियों का कहना है कि कुछ जगहों पर वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, और एफ़आरए द्वारा निर्धारित 13 दिसंबर, 2005 की कट-ऑफ डेट के बाद भी आदिवासियों द्वारा यहां खेती की जाती रही है. आधिकारी मानते हैं कि आदिवासियों ने ऐसा इस उम्मीद में किया कि इस भूमि के लिए भी पट्टे मिल जाएंगे.

दूसरी तरफ़ आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकारियों ने पोडु भूमि पर कब्ज़ा कर लिया है जिस पर वे 40 साल से ज़्यादा से खेती कर रहे हैं. उन्होंने शिकायत की है कि हरिता हरम के तहत वन अधिकारी इन ज़मीनों पर पेड़ लगा रहे थे.

वन मंत्री और पोडु भूमि पर कैबिनेट उप-समिति के सदस्य, अल्लोला इंद्रकरन रेड्डी ने हाल ही में कहा था कि राज्य सरकार पोडु भूमि के मुद्दे को हल करने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है.

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