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तेलंगाना: पोडू भूमि को लेकर आदिवासियों और सरकार के बीच संघर्ष को ख़त्म करना ज़रूरी

पोडू खेती, जिसमें फ़सल उगाने के लिए जंगल की ज़मीन को जलाकर साफ़ किया जाता है, आदिवासियों के लिए आजीविका का एक बड़ा साधन है. लेकिन वन विभाग पर्यावरण की रक्षा और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए इसका विरोध करता है.

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के तेलंगाना पहुंचने के साथ ही, आदिवासी बस्तियों में अशांति फैल जाती है. इसी मौसम में वन विभाग और आदिवासियों के बीच पोडू भूमि को लेकर झड़पें होती हैं.

यह झड़पें न सिर्फ़ तेलंगाना के इन अंदरूनी इलाक़ों की शांति भंग करती हैं, बल्कि दशकों से बने हुए इस मुद्दे को सुलझाने की सरकार की अनिच्छा भी बयान करती है.

इसी हफ़्ते आदिवासियों ने महबूबाबाद ज़िले में उन पुलिस और वन विभाग कर्मचारियों को खदेड़ा, जो उन्हें पोडू खेती की तैयारी करने से रोकने की कोशिश कर रहे थे.

यह आदिवासियों और सरकारी कर्मचारियों के बीच हिंसक झड़प का पहला मौक़ा नहीं था. कई ज़िलों में इस तरह की झड़प अब आम बात हो गई है.

कई ज़िलों में इस तरह की झड़प आम बात है

पोडू खेती, जिसमें फ़सल उगाने के लिए जंगल की ज़मीन को जलाकर साफ़ किया जाता है, आदिवासियों के लिए आजीविका का एक बड़ा साधन है. लेकिन वन विभाग पर्यावरण की रक्षा और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए इसका विरोध करता है.

अगर पोडू भूमि का स्पष्ट रूप से सीमांकन किया जाए, तो इस समस्या का समाधान हो सकता है. लेकिन ऐसा नहीं होने की वजह से हर साल आदिवासी और वन विभाग के अधिकारी एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते हैं.

वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत राज्य सरकार ने अब तक 6,31,850 एकड़ के दावों पर आधे से भी कम 3,03,970 एकड़ वन भूमि के लिए 94,774 पट्टे जारी किए हैं.

यानि 3 लाख एकड़ से ज्यादा ज़मीन पर अभी भी स्वामित्व की लड़ाई है, जो आदिवासियों और वन विभाग के बीच विवाद की जड़ बन गई है.

मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कई बार कहा है कि वह आदिवासी गांवों में प्रजा दरबार आयोजित करके समस्या का समाधान ढूंढेंगे. नागार्जुन सागर विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के हालिया प्रचार में भी उन्होंने यही वादा किया था. लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव

सरकार की हरिता हरम योजना की वजह से राज्य का फ़ॉरेस्ट कवर 66.66 लाख एकड़ हो गया है. यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 24% से ज़्यादा हिस्सा है. भले ही यह अच्छी ख़बर है, लेकिन मुख्यमंत्री को आदिवासियों की समस्या का भी समाधान ढूंढना ही होगा.

पोडू खेती के मुद्दे को सुलझाने के लिए क़दम बिना देर किए उठाने ही होंगे. उसके लिए छूटे हुए आदिवासियों को ज़मीन का पट्टा जारी करना होगा, और फिर बची हुई ज़मीन को जंगल घोषित करना होगा.

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