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अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों के स्वदेशी नाम जल्द ही जुड़ेंगे ‘एसटी’ सूची में

तिराप, चांगलांग और लोंगडिंग ज़िलों में रहने वाले ये समुदायों के सामने न सिर्फ़ पहचान का संकट था, बल्कि आधिकारिक कामों में भी इन्हें काफ़ी असुविधा होती थी, क्योंकि उन्हें अलग-अलग समुदायों के रूप में मान्यता नहीं मिली थी.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक फ़ैसला लिया है, जिससे अरुणाचल प्रदेश के कई आदिवासी समुदाय काफ़ी खुश हैं. राज्य के कई दिवासी सुदाय जिन्हें या तो ग़लत नाम दिया गया था, या जिन्हें दूसरों के साथ अस्पष्ट रूप से जोड़ा गया था, उन्हें अब उनकी विशिष्ट पहचान जल्दी ही मिल सकती है.

कैबिनेट ने संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित करने को मंज़ूरी दे दी है.

इस संषोधन से कई जनजातियों के नाम अब आधिकारिक तौर पर बदले जाएंगे. खम्पटी आदिवासी समुदाय को ताई खामती के नाम से जाना जाएगा, तीन दूसरी जनजातियों – मिश्मी, इडु, तराओं – का विस्तार करके मिश्मी-कमान (मिजू मिश्मी), इडु (मिश्मी) और तराओं (दिगारू मिश्मी) को शामिल किया जाएगा.

इसके अलावा चार विशिष्ट जनजातियों के नाम होंगे- मोनपा, मेम्बा, सरतांग और सजोलॉन्ग (मिजी) -जिन्हें पहले सामूहिक रूप से मोम्बा कहा जाता था.

तांगसा, नोक्टे, तुत्सा और वांचो जनजातियां जिन्हें पहले अस्पष्ट रूप से “किसी भी नागा जनजाति” में शामिल किया जाता था, उनके नाम भी ठीक किए जाएंगे. अब वो अपने-अपने विशिष्ट नामों से ही जाने जाएंगे.

यह तस्वीर प्रतीकात्मक है. यह बुज़ुर्ग निशी समुदाय के हैं.

तिराप, चांगलांग और लोंगडिंग ज़िलों में रहने वाले ये समुदायों के सामने न सिर्फ़ पहचान का संकट था, बल्कि आधिकारिक कामों में भी इन्हें काफ़ी असुविधा होती थी, क्योंकि उन्हें अलग-अलग समुदायों के रूप में मान्यता नहीं मिली थी.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार राष्ट्रपति जनजातियों या जनजातीय समुदायों या उनके कुछ हिस्सों या समूहों को स्पेसिफ़ाई करते हैं, जिन्हें संविधान के तहत अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जनजाति माना जाता है.

संविधान अनुसूचित जनजातियों की सूची तैयार करने के लिए कोई सिद्धांत या नीति स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं करता है. लेकिन संविधान में यह कहा गया है कि सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन इन्हें सूचियों में शामिल करने के योग्य बनाएगा.

मानदंडों के अनुसार किसी राज्य सरकार को एसटी सूची में जनजातियों के मौजूदा नामों को जोड़ना, हटाना या किसी भी तरह के संशोधन के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजना होता है.

इसके बाद मंत्रालय आगे की जांच के लिए रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया (Registrar General of India – RGI) को प्रस्ताव भेजता है.

अगर आरजीआई की अनुमति हो तो एक प्रस्ताव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission of Scheduled Tribe – NCST) को भेजा जाता है.

जनजातीय कार्य मंत्रालय तब एसटी सूची में बदलाव को शामिल करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन विधेयक तैयार करता है और कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे संसद में लाया जाता है.

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