बार-बार बिजली का जाना, ख़राब नेट कनेक्टिविटी, सांस्कृतिक और भाषा का डिस्कनेक्ट – देश की सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों में से एक के 15 साल के नहुल को अपने सपनों को पूरा करने के लिए ऐसी कई चुनौतियों से पार पाना पड़ा.
लेकिन वो कामयाब रहे और उन्हें सफ़लता मिली. जैसे ही केरल सरकार ने बुधवार को एसएसएलसी परीक्षा का रिज़ल्ट घोषित किया, कासरगोड ज़िले में स्थित कल्लियोट्टू आदिवासी कॉलोनी जश्न में डूब गई.
बस्ती के मुखिया एन नारायणन के बेटे नहुल ने सभी विषयों में ए प्लस हासिल किया है, जो आदिवासी समुदाय के बच्चों के लिए एक दुर्लभ उपलब्धि है. नहुल पारंपरिक रूप से शिकारियों के समुदाय मलवेट्रुवन जनजाति से आते हैं.
नहुल के पिता का कहा है कि उनकी बस्ती में दो सरकारी कर्मचारी हैं, और वो चाहते हैं कि उनके बच्चे भी सरकारी नौकरी हासिल करें. नहुल प्राइमरी क्लास से ही पढ़ाई में अच्छा रहा है, और शिक्षकों ने भी उसे यह कहकर प्रोत्साहित किया कि उसका भविष्य अच्छा है.
नहुल नारायणन के तीन बच्चों में से सबसे छोटे हैं. उनकी दोनों बेटियां बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं.
नहुल को कल्लियोट्टू के सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने काफ़ी मार्गदर्शन दिया. नहुल के पिता एक खेत मजदूर हैं जबकि उनकी मां माम्बी रोज़गार गारंटी योजना के तहत काम करती हैं. नारायणन जिस बस्ती के मुखिया हैं, उसमें 55 परिवार रहते हैं.
नहुल के लिए ऑनलाइन क्लास में सामिल होना सबसे बड़ी दिक्कत रही. बस्ती में एक सामुदायिक अध्ययन केंद्र है जहां समुदाय के ही पढ़े-लिखे युवा बच्चों की पढ़ाई में मदद करते हैं.
इसके अलावा उन्के परिवार के पास एक ही फ़ोन था, जिसे नहुल और उसकी बहन शेयर करते थे. भाषा की मुश्किल के चलते काइट विक्टर्स चैनल द्वारा स्ट्रीम की गई क्लास को नहुल ज़्यादा समझ नहीं पाए.
लेकिन उनके शिक्षकों ने व्हाट्सएप के ज़रिए उनके संदेह दूर किए, और साल के अंत में स्कूल में दो महीने का ऑफ़लाइन रिवीज़न क्रैश कोर्स करवाया.
नहुल की दोनों बहनों ने भी पढ़ाई में उनकी खूब मदद की.