तेलंगाना के खम्मम ज़िले में पोडू भूमि पर खेती करने वालों और वन विभाग के अधिकारियों के बीच टकराव के मामले बढ़ रहे हैं. दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ़ पुलिस थानों में मामले दर्ज करा रहे हैं, क्योंकि झड़पें अब आम बात हो गई हैं.
भद्राद्री-कोठागुडम ज़िले में 2.24 लाख एकड़, और खम्मम ज़िले में 24,727 एकड़ ज़मीन पर 2006 से आदिवासी खेती कर रहे हैं. अब उनका पक्ष रखते हुए वामपंथी दलों की मांग है कि राज्य सरकार आदिवासियों को ज़मीन के पट्टे जारी करे, ताकि वो बिना किसी मुश्किल के ज़मीन पर खेती कर सकें.
वन अधिकारियों पर कई आदिवासियों की भूमि जबरन खाली करा, उनके ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज कराने का आरोप है. वन अधिकारियों और आदिवासियों के बीच झड़प के भी कई मामले हाल ही में सामने आए हैं.
इलाक़े के आदिवासी कहते हैं कि कई बार वन आधिकारी बड़ी क्रूरता से पेश आते हैं. इसलिए आदिवासियों के पास ज़मीन के पट्टे होने बेहद ज़रूरी है.
खम्मम ज़िला की वन अधिकारी बी प्रवीणा ने एक अखबार को बताया कि ज़िले में 24,727 एकड़ वन भूमि पर न केवल आदिवासी, बल्कि गैर-आदिवासी और गोटिकोया समुदाय के लोग भी खेती करते हैं. और इसमें से लगभग 2,000 हेक्टेयर को पिछले पांच सालों में वन विभाग ने ज़ब्त कर लिया है.
कोठागुडम में 10,50,000 लाख एकड़ की कुल वन भूमि में से लगभग 2.24 लाख एकड़ का 30,000 आदिवासी, गैर-आदिवासी और गोटिकोया उपयोग करते हैं. आदिवासियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ से आए कम से कम 10,000 गोटिकोया प्रवासियों ने तेलंगाना के जंगलों पर क़ब्ज़ा किया हुआ है, और उन्होंने खेती के लिए पेड़ काटे हैं.
आदिवासियों की मांग है कि राज्य सरकार पोडू भूमि पर एक सर्वेक्षण करे, और इन ज़मीनों पर खेती करने वाले गैर-आदिवासियों की संख्या का एक रजिस्टर बनाए. इसके अलावा उनकी मांग है कि ऐसे गैर-आदिवासियों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए जाएं, जो वन भूमि पर कब्जा करते हैं.