HomeAdivasi Daily15 अप्रैल को मनाया जाएगा सरहुल, कोरोना के साये में घर पर...

15 अप्रैल को मनाया जाएगा सरहुल, कोरोना के साये में घर पर ही होगा उत्सव

आमतौर पर सरहुल के दिन झारखंड की राजधानी राँची और दूसरे शहरों में आदिवासी नाचते गाते जुलूस निकालते हैं. लेकिन इस बार कोरोनावायरस महामारी की वजह से ये जुलूस नहीं निकाले जाएँगे.

प्रकृति के पर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. केद्रीय सरना समिति ने इस वर्ष झारखंड में सरहूल का त्योहार 15 अप्रैल को मनाने का फ़ैसला किया है. 

आमतौर पर सरहुल के दिन झारखंड की राजधानी राँची और दूसरे शहरों में आदिवासी नाचते गाते जुलूस निकालते हैं. लेकिन इस बार कोरोनावायरस महामारी की वजह से ये जुलूस नहीं निकाले जाएँगे. 

प्रकृति पूजक आदिवासी सरहुल को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. सुखवा वृक्ष में फूल लगते ही आदिवासी समाज सरहुल मनाने की तैयारी में जुट जाता है.  इस बीच आदिवासी जंगल से मिलने वाले नए पत्ते और फल फूल का सेवन नहीं करते हैं. 

सरहुल पर्व में आमतौर पर गांव के युवक जंगल में सखुआ फुल लाने जंगल जाते हैं एवं नदी तालाबों में मछली केकड़ा पकड़ते है. घर की महिलाएं घर आंगन की साफ सफाई करते हैं. 

पहान सरना स्थलों की साफ-सफाई कर ग्रामीणों के साथ सरना स्थल में रूढ़िवादी परंपरा के अनुसार पूजा पाठ करते हैं. इस बीच ग्रामीण पहान को अपने कंधे पर उठाकर ढोल नगाड़े के साथ नाचते गाते सरना स्थल जाते हैं जिसमें पहान सखुआ पेड़ की पूजा करते हैं.

मुर्गा मुर्गी की बलि  देकर एवं हडिया का तपावन देकर गांव घर में महामारी, रोग दूख न हो एवं गांव मौजा के सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

जब पहान सरना स्थल में पूजा पूरी कर लेते हैं उसके बाद करने के गांव के लोग अपने अपने घरों में पूजा पाठ करते हैं.

इस मौक़े पर आदिवासी कम से कम 9 प्रकार की सब्जियां बनाते हैं. इस पर्व पर आदिवासी अपने इष्ट देव के अलावा अपने पुरखों को भी प्रसाद चढ़ाते हैं. 

शाम को पहान सरना स्थल में दो घड़े में पानी रखते हैं एवं दुसरे दिन सुबह घड़े में पानी देखकर पहान मौसम की भविष्यवाणी करते है.

इस पर्व में नए शादीशुदा बेटी दामाद भी ससुराल आते हैं एवं हर्षोल्लास के साथ में अपने गांव परिवार के साथ नाचते गाते सरहुल उत्सव मनाते हैं. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments