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ओडिशा की आदिवासी लड़की ने कुआं खोदकर परिवार और गांव वालों की बुझाई प्यास

मालती ने बचपन से ही अपने परिवार के साथ-साथ साथी ग्रामीणों की कठिनाइयों का अनुभव किया है. मालती ने हर रोज की चुनौतियों और अभावों का सामना करते हुए उन्होंने शहर में एमए की पढ़ाई की.

‘जहां चाह है वहां राह है’ ये कहावत ओडिशा के मलकानगिरी जिले की एक आदिवासी लड़की मालती सीसा पर एकदम सटीक बैठती है. जिसने अपनी मेहनत सै असंभव को संभव कर दिया.

मलकानगिरी के बोंडाघाटी गांव की मालती उस क्षेत्र की पहली एमए ग्रेजुएट हैं जिसके लिए वह काफी लोकप्रिय हैं. हालांकि हाल ही में एक असंभव उपलब्धि के बाद मालती की लोकप्रियता इस क्षेत्र में और ज्यादा बढ़ गई है.

मालती अपने माता-पिता और तीन बहनों के साथ बोंडाघाटी के बांदीगुड़ा गांव रहती हैं. पहाड़ी इलाके में बसे बांदीगुड़ा गांव के निवासियों को पानी की लगातार कमी से मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. हालांकि ट्यूब वैल लगाए गए हैं और पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इलाके में सार्वजनिक स्टैंड-पोस्ट का निर्माण किया गया है. हालांकि ये सब सूखे पड़े हैं.

अपने परिवार की प्यास और अन्य जरूरतों को पूरा के लिए ग्रामीण एक झरने से पीने योग्य पानी लाने के लिए पैदल लंबी सड़कों को नापते हैं.

मालती ने बचपन से ही अपने परिवार के साथ-साथ साथी ग्रामीणों की कठिनाइयों का अनुभव किया है. मालती ने हर रोज की चुनौतियों और अभावों का सामना करते हुए उन्होंने शहर में एमए की पढ़ाई की.

पिछले साल कोविड-19 के चलते लॉकडाउन के दौरान जब वह अपने गांव वापस आई तो उन्होंने इन मुश्किलों से लड़ने की फैसला किया. मालती ने महसूस किया कि संकट की स्थिति के समाधान के लिए उसके लिए दृढ़ संकल्प करने का समय आ गया है.

मालती ने कहा, “हम बहनों ने एक कुआँ खोदने का निर्णय लिया. न सिर्फ मेरा परिवार, बल्कि दूसरे गांव वाले भी कुएँ के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं. हम कुएँ के पानी का इस्तेमाल पीने, नहाने और खेती के लिए कर रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि खुदाई के बाद कुआं हमने हमेशा के लिए पीने के पानी के संकट को सुलझा लिया है.”

अपने मिशन के बारे में बताते हुए मालती ने कहा कि उसने अपनी तीन बहनों के साथ मिलकर कुआं खोदने का फैसला किया और तुरंत उस पर काम किया. पूरी लगन और कड़ी मेहनत से मालती और उनकी बहनों ने वह मुकाम हासिल किया जो कि शुरुआती दिनों में असंभव लग रहा था. लगभग 10-12 दिनों में उन्होंने कुआं खोदने में कामयाबी हासिल की जो अब पानी से भर गया है.

गौरवान्वित मालती के पिता ने कहा, “उसने (मालती) कुआं खोदने का फैसला लिया और अपनी बहनों के साथ इसके बारे में चर्चा की. आखिरकार उन्होंने अपनी लगन और कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की. ​​न सिर्फ हम बल्कि कई अन्य ग्रामीण भी कुएं से लाभान्वित हो रहे हैं.”

हालांकि वित्तीय बाधाओं के चलते वे कंक्रीट के कुएं का निर्माण करने या कुएं के अंदर कंक्रीट के छल्ले लगाने में असमर्थ थे. लेकिन कुएं ने न सिर्फ उसके परिवार और ग्रामीणों की प्यास बुझाई है बल्कि उन्होंने सिंचाई के लिए पाइप और पानी के पंप को जोड़कर सब्जियां उगाना भी शुरू कर दिया है.

एक ग्रामीण ने कहा, “हम मालती और उसकी बहनों द्वारा खोदे गए कुएं के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं और सभी इससे लाभान्वित हो रहे हैं.”

बिना किसी सरकारी सहायता के मालती की सफलता से प्रेरित होकर गांव के कई अन्य युवाओं ने भी अपने प्रयासों से कुआँ खोदना शुरू कर दिया है. मालती के मिशन ने अब जन आंदोलन का रूप ले लिया है.

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