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बस्तर की आदिवासी महिलाओं के लिए बांस की राखी बनी मुनाफे का सौदा

राखी के अलावा इन महिलाओं को ज्वेलरी बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है और हैंडीक्राफ्ट बनाने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध बांस का उपयोग करने के क्रिएटिव आइडिया दिया जाता है.

नक्सलियों की वजह से बदनाम छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर जिले में आदिवासी महिलाएं इस बार बहुत खुश हैं. यहां की महिलाएं रक्षा बंधन का त्योहार तो नहीं मनाती हैं, लेकिन पिछले एक महीने की उनकी कड़ी मेहनत कई कलाइयों में सजने और भाइयों और बहनों के बीच प्यार का प्रतीक बना.

झारा नंद पुरिन से स्वयं सहायता समूह की अंजू ने News18 को बताया, “हमें राखी और ज्वेलरी बनाने की ट्रेनिंग दी गई है. हमें समूहों में काम करने और कुछ नया बनाना अच्छा लगता है. इसके साथ ही कमाई करके भी अच्छा लगता है.”

पिछले एक महीने से हर सुबह बस्तर जिले की आदिवासी महिलाएं घर का जरूरी काम निपटाकर अपने घरों से निकलकर दिनभर रंग-बिरंगी राखियां बनाती रही. यहां की एक स्थानीय गैर-लाभकारी संस्था इन महिलाओं को आजीविका कमाने में मदद करने के लिए ट्रेनिंग दे रही है.

अंजू ने कहा, “ये महिलाएं राखी बनाने के लिए स्थानीय बांस का इस्तेमाल करती हैं. जो पर्यावरण के अनुकूल भी हैं लेकिन आधुनिक डिजाइन वाली हैं. ताड़ के पत्तों, धान के चावल से रंग-बिरंगी राखियां बनाई जा रही हैं और दंतेश्वरी मार्ट में बिक्री के लिए उपलब्ध हैं.”

कभी खेतों में काम करने वाली महिलाएं आज उद्यमी बन गई हैं. अब इन्हें धूप में काम नहीं करना पड़ता और अपने पसंद का काम भी मिल गया है. इस पहल से दंतेवाड़ा की कम से कम 30 आदिवासी महिलाओं को लाभ हुआ है. इन इको-फ्रेंडली राखियों को बनाकर हर महिला 6,000 से 10,000 रुपये तक कमाने में कामयाब रही. हर एक महिला को एक दिन में कम से कम 20 राखी बनाने का लक्ष्य दिया गया था.

वहीं इन महिलाओं को हर दिन के टारगेट से ज्यादा काम करने पर और पैसा भी दिया. उदाहरण के लिए उन्हें एक दिन में 20 राखी बनाने के लिए 150 रुपये, अतिरिक्त 10 राखियों के लिए 75 रुपये (कुल 30) और 40 राखियों के लिए 300 रुपये मिलते हैं.

राखी बनाने वाले समूह की एक आदिवासी महिला ने News18 को बताया, “हमें बहुत खुशी होती है कि हम पर्यावरण के अनुकूल राखियां बनाकर पैसा कमाते हैं.”

झारा नंद पुरिन की सरिता ने News18 को बताया कि राखी बनाना कोई आसान काम नहीं है. उन्होंने कहा, “यह एक आसान कार्य नहीं है. महिलाओं को कच्चे बांस से महीन धागों को अलग करना पड़ता है. डिजाइन बनाने के लिए धैर्य और बहुत बढ़िया काम आना चाहिए. बांस के चारों ओर धागे लपेटने के बाद इन्हें आधुनिक डिजाइनों में रंगा, सुखाया और गूंथकर बनाया जाता है.”

ये राखियां जिले के दंतेश्वरी मार्ट के स्थानीय बाजार के स्टालों पर बेची जा रही हैं. यह जनजातीय उत्पादों जैसे हस्तशिल्प, हथकरघा और लघु वन उपज के लिए एक सामाजिक मंच जनजातीय टोकेनी द्वारा समर्थित है.

राखी के अलावा इन महिलाओं को ज्वेलरी बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है और हैंडीक्राफ्ट बनाने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध बांस का उपयोग करने के क्रिएटिव आइडिया दिया जाता है. ये आदिवासी महिलाएं बस्तर के उत्पादों और इसके हैंडीक्राफ्ट को नया आयाम दे रही हैं.

जैसा कि बताया गया इस पहल से नियमित कारीगरों को सशक्त बनाने में मदद मिल रही है, नहीं तों वो अपने परंपरिक काम को छोड़ रहे थे. इन आदिवासी महिलाओं की कोशिशें सिर्फ रक्षा बंधन से ‘बंधी’ नहीं हैं. आगे वो बांस के लैम्प और ज्वेलरी बनाने वाली हैं.

ग्रामीण आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए हाल ही में गैर-लाभकारी संस्था ने एमाज़ॉन और फ्लिपकार्ट के साथ पंजीकृत किया.

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