अगस्त में लोकसभा में केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु में 2017 से एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में दाखिला लेने वाले आदिवासी बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है. दरअसल पिछले कुछ सालों की तुलना में और कोरोना महामारी – शैक्षणिक वर्ष 2020-21 और 2021-22 के दौरान नामांकन ज्यादा थे.
हालाँकि आंकड़ों से पता चलता है कि इसी दौरान केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इस तरह के नामांकन में गिरावट देखी गई.
सूत्रों के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान आदिवासी समुदायों की देखभाल करने वाले सरकारी अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क को नामांकन में वृद्धि का कारण कहा जा सकता है. सूत्रों ने कहा कि आदिवासी माता-पिता को ऐसे स्कूलों के अस्तित्व के बारे में पता चला और उन्होंने अपने बच्चों का नामांकन शुरू कर दिया.
EMRS एक आवासीय स्कूल प्रणाली है जो केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा खासतौर पर कक्षा 6-12 आदिवासी बच्चों के लिए चलाई जाती है. तमिलनाडु में ऐसे आठ स्कूल हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में और ऐसे स्कूल होने चाहिए.
जनजातीय मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक देश में ऐसे 632 स्कूलों में से तमिलनाडु में सिर्फ आठ हैं. जबकि कम से कम 18 अन्य राज्यों में तमिलनाडु से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं.
आदिम जाति कल्याण निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वो राज्य के लिए ऐसे और स्कूलों के लिए अनुरोध करते रहेंगे. उन्होंने कहा, “सलेम और नमक्कल जिलों में नामांकन आमतौर पर ज्यादा होता है.”
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि ऐसे स्कूलों को अधिक जिलों को कवर करना चाहिए और आदिवासियों के लिए सुलभ इलाकों में खोला जाना चाहिए. आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता केसी मुरुगेसन ने कहा कि राज्य में स्कूलों की संख्या छात्रों की आबादी के अनुपात में बढ़ाई जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि हालांकि यह सराहनीय है कि मामूली वृद्धि हुई है. इन स्कूलों को उन इलाकों में विस्तारित किया जाना चाहिए जहां आदिवासी वास्तव में रहते हैं.
उन्होंने कहा कि राज्य के अधिकांश हिस्सों में आदिवासी आवासीय विद्यालयों की अवधारणा को नहीं समझते हैं और वो अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला नहीं दिलाएंगे जहां वो उन्हें लंबे समय तक नहीं देख पाएंगे.
मुरुगेसन ने कहा, “ऐसे में वे अपने बच्चों को पास के सरकारी स्कूलों में भेजते हैं, जहाँ से वे अक्सर बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. ऐसे आवासीय विद्यालयों से इसे रोका जा सकता है. ”
कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकार को आदिवासी बस्तियों में एकलव्य स्कूलों में मुफ्त चिकित्सा, भोजन और छात्रावास जैसी सुविधाओं के बारे में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.
मुरुगेसन ने कहा, “सरकार को आदिवासी माता-पिता को समझाना चाहिए कि उनके बच्चों की देखभाल की जाएगी.”
इस बीच केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि उसने तमिलनाडु में प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 2.4 करोड़ रुपये और एसटी छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 5.5 करोड़ रुपये जारी किए है.