अडिचिल तोट्टी कॉलोनी में बनी एक छोटी सी लाइब्रेरी है जो मलयाट्टूर वन प्रभाग के तहत एडमलयार रेंज के जंगलों के अंदर है. मुट्ठी भर किताबें एक कोने में रखी गई टेबल पर फैली हुई हैं. जबकि छात्र टेलीविजन सेट से चिपके हुए हैं जो शिक्षकों को कक्षाएं लेते हुए देख रहे हैं. जैसे ही वो क्लास लेने के बाद घर के लिए निकलते हैं उनमें से कुछ छात्र टेबल पर रखी किताबों को देखते हैं, और किताबें घर ले जाने के लिए ‘लाइब्रेरियन’ विष्णु के पास जाते हैं.
उनके नाम और इसे वापस करने की तारीख लिखने के बाद विष्णु छात्रों को किताबें सौंपते हैं अदिरपल्ली पंचायत में चालकुडी – वालपराई रोड से चार किमी दूर स्थित इस लाइब्रेरी की स्थापना वन संरक्षण समिति द्वारा की गई थी और विष्णु इसके प्रभारी हैं.
‘अरिवु’ नाम की इस लाइब्रेरी को एक सामुदायिक हॉल में स्थापित किया गया है. लेकिन इस कॉलोनी में रहने वाले 94 आदिवासी परिवारों के छात्रों के बीच पढ़ने की आदत को विकसित करने के लिए और किताबों की जरूरत है जिसके लिए बाहरी दुनिया की मदद चाहिए.
इसके अलावा ये लाइब्रेरी यहां के आदिवासी युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग देने की भी योजना बना रहा है. क्योंकि राज्य सरकार आदिवासी समुदायों के बीच अधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार है.
लाइब्रेरी का इस्तेमाल कक्षा एक से कक्षा बारह तक पढ़ने वाले 38 छात्रों द्वारा ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए किया जाता है. क्योंकि एडमलयार जलाशय के पास स्थित कॉलोनी में कोई मोबाइल रेंज ही नहीं है.
जफर वी आई, जो बीट वन अधिकारी हैं, उन्होंने कहा, “हम अभी तक लाइब्रेरी के लिए करीब 140 किताबें प्राप्त करने में सफल रहे. जिनमें उपन्यास, लघु कथाएँ और प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें शामिल हैं. मलप्पुरम की एक टीम ने 40 किताबें देने की पेशकश की है. वहीं PSC आदिवासी समुदायों के 500 बीट अधिकारियों की पोस्टिंग के लिए एक परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार है. हम यहां के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना चाहते हैं. इसलिए हम हमारे शुभचिंतकों से ज्यादा से ज्यादा किताबें इकट्ठा करना चाह रहे हैं.”
अधिकारी ने खुद पीएससी की किताबें देकर सहयोग किया है जो वो खुद प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पढ़ते थे. सामुदायिक हॉल में सोलर पैनल लगाए गए हैं ताकि बिजली न आने पर छात्र कम से कम कक्षाएं मिस न करें.
कोविड महामारी ने शिक्षा के क्षेत्र में हर वर्ग और क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती पेश की है. लेकिन ग्रामीण भारत के दूरदराज के इलाक़ों में शिक्षा पूरी तरह से ठप्प हो गई है. इससे पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े आदिवासियों के बच्चे स्कूल छोड़ने पर मजबूर हुए हैं. जंगलों में आदिवासी बस्तियों में से ज्यादातर में मोबाइल रेंज ही नहीं होती है. इसलिए यहां के बच्चे ऑनलाइन क्लास नहीं कर पाते हैं.
अभी तक राज्य सरकारों या केन्द्र सरकार ने कोई नीतिगत निर्णय इस दिशा में नहीं किया है. सरकार ने आदिवासी बच्चों को हालात के हवाले कर दिया है. इसका परिणाम बेहद घातक हो सकता है. क्योंकि आदिवासी आबादी में पहले ही स्कूल ड्रॉप-आउट रेट बहुत अधिक है.
बेशक कुछ व्यक्तियों या संगठनों के प्रयासों से कुछ बच्चे इस महामारी में भी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रयासरत हैं. लेकिन जब तक बड़े स्तर पर निर्णय ले कर सुविधाएं नहीं दी जाएंगी, ऐसे प्रयास मामूली फ़र्क भी पैदा नहीं कर सकते हैं.