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बिरुबाला राभा: डायन प्रथा पीड़ित होने से डायन प्रथा रक्षक बनने तक का सफ़र

खुद की आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद भी कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाने वाली आदिवासी महिला बिरुबाला राभा(Birubala Rabha) को सामाजिक कार्य क्षेत्र में साल 2021 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

बिरुबाला राभा(Birubala Rabha) बहुत कम पढ़ी लिखी हैं. इसके अलावा बहुत कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी.

इसके बावजूद इस आदिवासी महिला ने अपने गाँव की कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाकर उनका सहारा बनी है.

उनके घर की आर्थिक स्थिति खराब थी. लेकिन कई आदिवासी महिलाओं के लिए वे मसीहा से कम नहीं है.

बिरूबाला अभी तक 50 से भी अधिक महिलाओं को डायन प्रथा का शिकार होने से बचा चुकी हैं.

डायन प्रथा में अक्सर महिलाओं को जान से मार दिया जाता है. कई बार उन्हें सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया जाता है.

बिरुबाला राभा को इस काम के लिए साल 2021 में सामाजिक कार्य क्षेत्र में पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.

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बिरुबाला राभा

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित बिरुबाला राभा का जन्म 1954 में असम और मेघालय के सीमा से सटे गोलपारा ज़िले के ठाकुरबीला में हुआ.

एक इंटरव्यू में अपने जीवन के बारे में बताते हुए वे कहती हैं कि उन्होंने 5वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कि है. जिसके बाद उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था क्योंकि उनको अपनी माँ के साथ काम में हाथ बंटाना होता था.

बिरुबाला ने यह भी बताया कि जब वह छोटी थी तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और उनका विवाह 16 साल की उम्र में करा दिया गया था.

उनका विवाह चंद्रेश्वर राभा के साथ होने के बाद उनके तीन बेटे और एक बेटी हुई.

डायन प्रथा एक प्रकार का अंधविश्वास है जिसमें महिलाओं को दुर्भाग्य का दोषी ठहराया दिया जाता है. जिसमें कभी-कभी दोषी ठहराए गई महिला को ग्रामिणों द्वारा मार दिया जाता है.

पुरस्कार

बिरुबाला राभा को पद्म श्री पुरस्कार के अलावा भी कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.

प्रोजेक्ट 1000 वुमन के अंतर्गत उन्हें द स्विस पीस, स्विटजरलैंड द्वारा साल 2005 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नोमिनेट किया गया था.

इसके बाद साल 2011 में उन्हें मुंबई में आइबीएन-18 नेटवर्क, रिलायंस के द्वारा रियल हीरोज, एसआई फाउंडेशन, जोरहाट असम के द्वारा सरनजप्राण सरबेस्वियर दत्ता स्मृति पुरस्कार से पुरस्कृत किया जा चुका है.

उसी साल यानी 2011 में बिरुबाला को उर्मिला दास मेमोरियल अवार्ड मिला था.

फिर 2012 दो पुरस्कार मिले, एक सिग्नेचर अवार्ड (सर्वगुण सम्पन्न नारी) पुरस्कार और दूसरा सिबसागर में बिरोनगोना मुलागभरु पुरस्कार मिला.

इसके अलावा भी उन्हें 30 मार्च 2015 को गुवाहाटी विश्वविद्यालय के द्वारा मानद डॉक्टरेट (पीएचडी)(Honorary Doctorate (PhD)), 2015 में आसू यानी ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के द्वारा सुधाकोंठो डॉ. भूपेन हजारिका संघटी पुरस्कार, 2015 में यूएन ब्रह्मा सोल्जर ऑफ ह्यूमेनिटी अवार्ड, 2015 में टू लीजेंड अवार्ड और साल 2016 में स्त्री उद्यमिता सम्मान प्रदान किया गया था.

फिर साल 2018 में वीमेन वर्ल्ड समिट फाउंडेशन, जिनेवा द्वारा ग्राम्य जीवन में महिलाओं की रचनात्मकता के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

संगठन

बिरुबाला राभा ने साल 2012 में मिशन बिरुबाला का गठन किया और वह संगठन की मुख्य सलाहकार बनी.

इस संगठन के लोग डायन प्रथा और अंधविश्वास के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं. इसके अलावा यह संगठन पीड़ितों को पुनर्वास प्रदान करता है.

यह संगठन महिला शिक्षा और वैज्ञानिक नजरिए को बढ़ावा देने का काम करता है.

इस संगठन ने अब तक माजुली, कोकराझाड़, गोआलपाड़ा और तिनसुकिया ज़िलों में 55 पीड़ितों को बचाने में सफलता पाई है.

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