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झारखंड: लोकसभा चुनाव में आदिवासियत, संविधान और हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी हार-जीत तय करेंगे

झारखंड में लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) में हेमंत सोरेन की ग़िरफ़्तारी बेशक इंडिया गठबंधन के पक्ष में साहनभूति पैदा कर रही है. इसके अलावा संविधान और आरक्षण की रक्षा का सवाल भी आदिवासी इलाकों में चर्चा में है. इस बार झारखंड में बीजेपी और इंडिया गठबंधन में बहुत ही करीब लड़ाई हो रही है.

7 मई को झारखंड के पश्चिम सिंहभूम के चाईबासा में टाटा कॉलेज का मैदान लोगों से ठसाठस भरा था. इस भीड़ में कुछ मुसलमानों को छोड़ कर सभी आदिवासी समुदायों के लोग थे. जब हम इस मैदान में पहुंचे तो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का भाषण चल रहा था. 

राहुल गांधी पूरी लय में नज़र आ रहे थे. उन्होंने अपने भाषण में एक के बाद एक इंडिया गठबंधन के वादे गिनवाए. इन वादों को गिनवाते हुए वे जब महिलाओं की बात करते हैं तो पंडाल में जय जयकार होने लगती है. वे पूरी लय में कहते हैं हर महीने साढ़े आठ हज़ार रूपये ठका ठक- ठका ठक आएंगे. यह सुनते ही पंडाल एक बार फिर तालियों से गूंज उठता है.

उनके भाषण के ख़त्म होते होते मंच पर हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन पहुंचती हैं, राहुल गांधी अपना भाषण रोक कर उनका अभिवादन करते हैं. कल्पना सोरेन जनसभा के अंत में धन्यवाद ज्ञापन के लिए माइक संभालती हैं और सबसे पहले नारा लगाती हैं जेल का ताला टूटेगा, लोग जवाब देते हैं हेमंत सोरेन छूटेगा. 

जनसभा ख़त्म होती है और राहुल गांधी, कल्पना सोरेन और झारखंड के मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अपने अपने हेलीकॉप्टर से अगली जनसभा के लिए उड़ जाते हैं.

सिंहभूम सीट 2019 की मोदी लहर में भी कांग्रेस पार्टी को हासिल हुई थी. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा यहां से सांसद चुनी गई थीं. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से तुरंत पहले उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी ने उन्हें ही सिंहभूम से उम्मीदवार बनाया है.

चाईबासा के टाटा कॉलेज मैदान में मौजूद लोगों से बातचीत में पता चलता है कि वे गीता कोड़ा के बीजेपी में शामिल होने से काफ़ी दुखी और नाराज़ हैं. इस जनसभा में मौजूद मुसलमान नौजवानों की एक टोली से बातचीत हुई तो उनका कहना था कि गीता कोड़ा ने क्षेत्र के लोगों के साथ धोखा किया है. इसलिए उन्हें सबक सिखाया जाना ज़रूरी है.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के गमछे गले में डाले कुछ लोगों की टोली से बातचीत में वे कहते हैं कि चाईबासा में ही नहीं बल्कि झारखंड में दो ही मुद्दे हैं. इन मुद्दों में पहला मुद्दा हेमंत सोरेन को जेल में डालना और दूसरा मुद्दा संविधान और आरक्षण पर ख़तरा है.

आदिवासी महिलाओं से बातचीत के दौरान अहसास होता है कि वे राहुल गांधी से काफ़ी प्रभावित हैं. जब हमने पूछा कि उन्हें राहुल गांधी की कौन सी बात सबसे अच्छी लगी तो उनका जवाब था जल-जंगल और आदिवासी पहचान के बारे में उन्होंने जो बोला, वह सबसे ज़रूरी बात लगी थी. 

यह जवाब हमारी अपेक्षा के अनुसार नहीं था. क्योंकि हमें लगा था कि महिलाएं हर साल एक लाख रूपए के वादे को महत्व देंगी. लेकिन इन महिलाओं का कहना था कि यह भी एक अच्छा वादा है, लेकिन आदिवासियत और जंगल की रक्षा ज़्यादा ज़रूरी है.

सिंहभूम से इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा की वरिष्ठ नेता जोबा मांझी उम्मीदवार हैं. वे झारखंड में कई बार विधायक चुनी गई हैं. जोबा मांझी से मुलाकात में उन्होंने कहा कि वे अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं. उनके अनुसार स्थानीय मुद्दों से ज़्यादा आदिवासी पहचान और गरिमा इस चुनाव में ज़्यादा ज़रूरी और बड़ा मुद्दा हो गया है.

इस जनसभा के बाद हम दो दिन तक पश्चिम सिंहभूम ज़िले के कई गांवों में घूमते रहे. इस दौरान हमें इस बात का अहसास हुआ कि बीजेपी की उम्मीदवार गीता कोड़ा के बारे में लोगों की राय बहुत अच्छी है. लेकिन ज़्यादातर लोगों का मानना है कि वे एक अच्छी नेता हैं लेकिन ग़लत पार्टी में चली गई हैं.

मसलन झारखंड-ओडिशा सीमा पर बसे हो आदिवासियों के गांव में लोगों से इस बारे में दिन भर बातचीत हुई. यहां के लोगों का कहना था कि गीता कोड़ा एक समझदार नेता हैं. वे यहां के हो आदिवासियों के मुद्दों को बहुत अच्छे से समझती हैं. लेकिन उन्होंने ग़लत पार्टी चुन ली है.

इस गांव में लोग कहते हैं कि गीता कोड़ा अगर इंडिया गठबंधन में ही रहती तो उन्हें बड़ी जीत हासिल होती. 

झारखंड में एक और सीट जो बहुत महत्वपूर्ण सीट खूंटी है. यहां से साल 2019 में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा चुनाव जीते थे. उनकी जीत का लगभग एक हज़ार वोट ही रहा था. उनके सामने झारखंड मुक्ति मोर्चा के कालीचरण मुंडा उम्मीदवार थे.

एक बार फिर ये दोनों ही उम्मीदवार आमने-सामने हैं. इसके अलावा भारत आदिवासी पार्टी बबीता कच्छप भी यहां से उम्मीदवार हैं. बबीता कच्छप पत्थलगड़ी आंदोरन से जुड़ी रही थीं. लेकिन वे कम संसाधनों की वजह से चुनाव में ज़्यादा कुछ कर नहीं पा रही हैं. 

खूंटी में चुनाव मुख्यत: अर्जुन मुंडा और कालीचरण मुंडा के बीच ही तय होगा. आदिवासी इलाकों में लोगों का मूड भांपने के लिए हम कई साप्ताहिक बाज़ारों में गए. खूंटी के बाज़ारों में लोगों से बातचीत में ऐसा लगा कि झारखंड में इस बार के चुनाव में दो ही नामों की चर्चा ज़्यादा है, पहला हेमंत सोरेन और दूसरा नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है. 

इसमें भी बंटवारा बिलकुल साफ़ नज़र आता है. आदिवासी मतदाता इस बात से नाराज़ है कि उनके समुदाय के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल में डाल दिया गया है. जबकि शहरी क्षेत्र में अगड़े और पिछड़े सभी समुदायों के मतदाता नरेन्द्र मोदी के बारे में ज़्यादा बात करते हैं.

झारखंड के इंडिया गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, वामपंथी दलों के अलावा राष्ट्रीय जनतादल भी शामिल है. लेकिन यहां के यादव मतदाताओं में नरेन्द्र मोदी ज़्यादा लोकप्रिय नज़र आते हैं.

सिंहभूम, चाईबासा के बाद हम दुमका पहुंचे जहां पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबु सोरेन की दो बहुओं की प्रतिष्ठा की लड़ाई चल रही है. इस सीट से यूं तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के बड़े नेता नलिन सोरेन उम्मीदवार हैं, लेकिन यह माना जा रहा है कि यह चुनाव असल में शिबु सोरेन की बड़ी बहु सीता सोरेन और छोटी बहु कल्पना सोरेन के बीच ही है.

सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. पहले यह माना जा रहा था कि दुमका सीट से हेमंत सोरेन उम्मीदवार बनेंगे क्योंकि शिबु सोरेन का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. लेकिन जब सीता सोरेन बीजेपी की उम्मीदवार बन गई तो परिवार ने सीधा टकराव टाल दिया.

दुमका सीट पर सीता सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार नलिन सोरेन ने एक ही दिन पर्चा दाखिल किया. दोनों ही उम्मीदवारों की जनसभा भी एक ही समय पर हो रही थी. बीजेपी की तरफ से यज्ञ मैदान में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जनसभा को संबोधित करने आए थे तो झारखंड मुक्ति मोर्चा की जनसभा की स्टार कल्पना सोरेन ही थीं.

दुमका में हुई बीजेपी की जनसभा में मौजूद लोगों में ग्रामीण और शहरी दोनों तरह के मतदाता मौजूद थे. इस पंडाल पर भी काफी पैसा ख़र्च किया गया था. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा की जनसभा में सिर्फ आदिवासी ही नज़र आ रहे थे.

इस जनसभा में ज़्यादातर लोग नलिन सोरेन के विधानसभा क्षेत्र शिकारीपाड़ा से ही आए थे.

सीता सोरेन से लंबी बातचीत हुई. उन्होंने इस बातचीत में इन आरोपों को ख़ारिज किया कि वे अपने ख़िलाफ़ दायर कानूनी मामलों की वजह से बीजेपी में शामिल हुई हैं. उनका कहना था कि राजनीति में मुकदमे चलते रहते हैं. उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि हेमंत सोरेन की ग़िरफ़्तारी के बाद कल्पना सोरेन को मिल रहे महत्व से वे नाराज़ थीं.

नलिन सोरेन की टीम से बातचीत में चिंता सामने आती है कि बीजेपी की टीम सोशल मीडिया पर जितनी सक्रिय है उसका सामना जेएमएम के लिए करना मुश्किल है. 

दुमका से हम लोग रांची लौट आए. रविवार के दिन यहां पर नामकुम में एक बड़ा साप्ताहिक बाज़ार लगता है. इस बाज़ार की ख़ासियत ये होती है कि यहां पर ग्रामीण और शहरी दोनों ही तरह के मतदाता होते हैं. इस बाज़ार में कम से कम 100 लोगों से हमने बात की होगी.

हमने यही पाया कि शहरी लोगों में बीजेपी के प्रति एक स्पष्ट झुकाव है जबकि आदिवासी मतदाता के लिए आदिवासी पहचान, संविधान और हेमंत सोरेन की ग़िरफ़्तारी मुद्दा है.

अपनी झारखंड चुनाव यात्रा के इस चरण को समटते हुए हम यह कह सकते हैं कि झारखंड में इस बार बीजेपी के लिए मुश्किल स्थिति है. हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी से आदिवासी नाराज़ है. इस बार झारखंड में बीजेपी और इंडिया गठबंधन में सीटें आधी आधी बंट सकती हैं.

2019 में बीजेपी गठबंधन ने झारखंड की कुल 14 में से 12 सीटें जीत ली थीं. 

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