महाराष्ट्र के नाशिक ज़िले में स्थित खेरेवाड़ी गाँव में रहने वाले 1300 लोगों ने वोट नहीं देने का फ़ैसला किया है.
यह गाँव इगतपुरी तालुक (Igatpuri taluka) के पठार के ऊपर बसा है. खेरेवाड़ी गांव के अलावा इगतपुरी तालुक में बसे 10 अन्य आदिवासी गाँव ने भी चुनाव बहिष्कार का फैसला किया है.
2019 में इन सभी से जल जीवन मिशन के तहत यह वादा किया गया था कि 2024 तक हर घर में पानी का कनेक्शन पहुंचा जाएगा.
लेकिन पांच साल बीत गए, यह वादा पूरा ना हो सका और इन सभी के लिए पानी कनेक्शन महज़ सपना बनकर रह गया.
यहां रहने वाले सभी आदिवासी ज़्यादातर मराठी बोलते हैं.
इनमें से कुछ किसान है और बाकी के लोग तालुक के पास बसे रिसॉर्टस में साफ-सफाई और देखभाल का काम करते हैं.
नाशिक ज़िले के ग्रामीण अपने रोज़मर्रा के पानी उपयोग के लिए ज्यादातर बावड़ी पर निर्भर है. बावड़ी तक पहुंचने के लिए इन्हें पठार से नीचे की ओर 2 से 3 किलोमीटर ट्रेकिंग करनी पड़ती है.
यह बावड़ी 20 से 25 फीट गहरी है. मार्च आने तक बावड़ी में पानी का स्तर कम होने लगता है और अप्रैल तक तो पूरी तरह से सुख जाती है.
जिसके बाद गाँव में रहने वाले लोगों को मज़बूरन 4 किलोमीटर दूर वैतरणा नदी से पानी लाना पड़ता है.
यह तब तक नदीं से पानी लाते हैं, जब तक फिर से मानसून आने पर बावड़ी भर ना जाए.
इस ज़िले में स्थित खेरेवाड़ी गाँव में स्थानीय आधिकारियों द्वारा ठेकेदारों ने पहाड़ी की चोट पर एक टैंक स्थापित किया था.
यह टैंक 10,000 लीटर तक पानी स्टोर कर सकता है. इस पहाड़ी के नीचे मीटर रूम भी बनाया गया था.
प्लान यह बनाया गया था की एक पंप के माध्यम से पानी टैंक तक पहुंचेगा और फिर पाइपों के माध्यम से यह पानी खैरेवाड़ी और अन्य गाँव तक पहुंचाया जाएगा.
लेकिन मीटर कमरे के अंदर ना कोई पाइपलाइन मौजूद है और ना ही कोई पंप लगाए गए हैं.
इसके अलावा टैंक में भी अब दरारे पड़ने लगी है. यहां रहने वाले आदिवासी और अन्य लोगों ने बताया कि यह टैंक और मीटर रूम मार्च 2023 में बनाया गया था. इससे बनाने के बाद ठेकेदार काम पूरा करने के लिए नहीं आए.
इसके अलावा यहां रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया की टैंक बनाने के लिए गाँव के लोगों ने खाई खोदना और चिनाई जैसे काम किए हैं.
इन सभी से ठेकेदार ने यह वादा किया था कि इन्हे 25 रूपये प्रति फुट के हिसाब से पैसे दिए जाएंगे. लेकिन यह पैसा इन्हें अभी तक नहीं मिला है.
इस ज़िले में रहने वाली गाँव की महिलाओं को पानी के लिए हर दिन तीन से चार बार तक पहाड़ से उपर नीचे आना जाना पड़ता है. पानी लेने की भागदौड़ सुबह चार बजे से शुरू हो जाती है.
नाशिक ज़िले के इन गाँवों में पानी का टैंक पहुंचाना मुश्किल है. क्योंकि गाँव तक जाने वाली सड़कों की स्थिति बेहद ख़राब है.
इस ज़िले में रहने वाले ज्यादातर आदिवासी और ग्रामीण लोग पशुपालन और खेती पर निर्भर है. लेकिन पानी के भीषण किल्लत के कारण गाँव में रहने वाले ग्रामीण अपने पशुओं (गाय और बैल) को बेचने पर मज़बूर हो गए हैं. क्योंकि पशुओं के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं है.
जल जीवन मिशन साइट से मिली जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र को इस मिशन के तहत 7,444 करोड़ रुपये दिए हैं, जो उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है.
वेबसाइट में सरकार ने यह दावा किया है कि अब तक महाराष्ट्र के 17,143 गांवों को 100% नल कनेक्शन मिल गया है.