स्थानीय भाषाओं में जागरुकता अभियान, प्रभावशाली ग्रामीणों और धार्मिक नेताओं के कोविड वैक्सिनेशन से इसके बारे में मिथकों को दूर कर, झारखंड सरकार विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति यानि पीवीटीजी समुदायों के बीच वैक्सीन को लेकर झिझक को दूर करने में ख़ासी सफ़ल रही है.
पिछले एक महीने में राज्य में पीवीटीजी आदिवासियों को वैक्सीन के लिए तैयार करने के लिए कई ठोस और सफ़ल क़दम उठाए गए हैं.
को-विन प्लेटफॉर्म पर पीवीटीजी के लिए कोई अलग कैटेगरी भले ही न हो, लेकिन झारखंड सरकार ने अपने स्तर पर इन समुदायों के सदस्यों के वैक्सिनेशन के लिए अलग से अभियान चलाए.
पीवीटीजी समुदाय दूरदराज़ के इलाक़ों में रहते हैं, उनमें से ज़्यादातर लोगों को दुनिया भर में होने वाली घटनाओं के बारे में पता नहीं होता.
इन हालात में पीवीटीजी समुदायों को वैक्सीन लगवाने के लिए राज़ी करना आसान भी नहीं था. अभियान में शामिल अधिकारियों का कहना है कि इन जनजाति समूहों के कई सदस्यों का मानना है कि वैक्सीन लगवाने से मौत हो सकती है.
पीवीटीजी वैक्सिनेशन अभियान
इन समुदायों में वैक्सीन को लेकर झिझक हटाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने गावं के प्रभावशाली हस्तियों और धार्मिक नेताओं की मदद ली. इन लोगों ने आदिवासियों के सामने वैक्सीन लगवाया ताकि यह साबित हो सके कि उससे कोई ख़तरा नहीं है.
स्वास्थ्य विभाग ने लगभग एक महीने पहले पीवीटीजी सदस्यों को प्राथमिकता पर वैक्सीन लगाने का अभियान शुरु किया था. शुरुआती हिचकिचाहट के बाद इन आदिवासियों की आशंकाओं को मिटाया गया.
झारखंड के पीवीटीजी समुदाय
2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में नौ पीवीटीजी हैं – असुर, बिरहोर, बिरजिया, हिलखड़िया, कोरवा, मल पहाड़िया, पढ़ैया, सौरिया पहाड़िया और सावर.
2,23,327 की कुल आबादी के साथ, यह समुदाय राज्य के अलग-अलग ज़िलों में बसे हैं. ज्यादातर संथाल परगना, पूर्वी सिंहभूम और कोडरमा के कुछ हिस्सों में बसे हैं.
यह सभी जनजातियां कुपोषण और एनीमिया से ग्रस्त हैं. इसके अलावा ज़्यादातर अनपढ़ हैं, और इनकी बुनियादी संसाधनों तक पहुंच बेहद कम है.
आदिम जनजातियों का कोविड वैक्सिनेशन
पीवीटीजी आदिवासियों को वैक्सीन लगाने में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
कोडरमा में हुई एक घटना में वैक्सिनेशन के लिए एक पीवीटीजी बस्ती में पहुंचे अधिकारियों को वहां कोई नहीं मिला, क्योंकि उनके आने की ख़बर सुनकर आदिवासी बचने के लिए या तो जंगलों में भाग गए, या पेड़ों पर चढ़ गए.
हालांकि राज्य ने अभी तक पीवीटीजी के वैक्सिनेशन से संबंधित डेटा संकलित नहीं किया है, लेकिन अभियान की अगुवाई कर रहे अधिकारियों का कहना है कि उनमें से कम से कम आधे लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ मिल गई है.