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किराया बढ़ा, सुविधाएं नहीं – आदिवासी यात्रियों की रेलवे से क्या है शिकायत

महामारी से पहले, ये ट्रेनें झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों के छोटे स्टेशनों पर रुकती थीं, और इनकी औसत गति लगभग 38 किमी प्रति घंटा थी. अपग्रेड होने के बाद, इन मेल एक्सप्रेस ट्रेनों को 50.8 किमी प्रति घंटा की औसत गति से चलाया जाना था, लेकिन यह सभी अभी भी पुरानी औसत गति से चलती हैं.

कोविड लॉकडाउन के बाद ट्रेन सेवाओं को फिर से पूरी तरह से शुरू हो जाने के बाद, भारतीय रेलवे पर बिना सुविधाएं दिए आदिवासी और गरीब यात्रियों से ज़्यादा किराया वसूलने का आरोप लगाया जा रहा है. भारतीय रेलवे ने कई यात्री (पैसेंजर) ट्रेनों को एक्सप्रेस ट्रेनों में बदल दिया है, लेकिन न तो इनकी औसत गति बढ़ी है, न ही एक्सप्रेस ट्रेनों के बराबर दूसरी कोई सुविधाएं इसमें यात्रियों को दी जा रही हैं.

पैसेंजर ट्रेनों को एक्सप्रेस ट्रेनों में बदले जाने का सबसे ज़्यादा असर आदिवासी और दूसरे गरीब तबकों पर पड़ रहा है, क्योंकि यही ज़्यादातर इन ट्रेनों का इस्तेमाल करते हैं.

दरअसल, यात्री ट्रेनों को मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में बदलने के लिए सिर्फ़ उनकी तकनीकी परिभाषा बदली गई है, और इस कदम को यात्री रेवेन्यू बढ़ाने के लिए किया जा गया है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ अकेले दक्षिण पूर्व रेलवे (SER) के तहत कुल 36 यात्री ट्रेनों (18 जोड़े) को मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में अपग्रेड किया गया था, जिसमें चार राउरकेला से शुरु होने वाली या गुज़रने वाली ट्रेनें शामिल थीं.

इनमें राउरकेला-पुरी एक्सप्रेस, राउरकेला के रास्ते हटिया-झारसुगुड़ा एक्सप्रेस, राउरकेला के रास्ते बिलासपुर-टाटा एक्सप्रेस और राउरकेला के रास्ते टाटा-इतवारी एक्सप्रेस शामिल हैं. महामारी से पहले, ये सभी ट्रेनें झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों के छोटे स्टेशनों पर रुकती थीं, और इनकी औसत गति लगभग 38 किमी प्रति घंटा थी.

अपग्रेड होने के बाद, इन मेल एक्सप्रेस ट्रेनों को 50.8 किमी प्रति घंटा की औसत गति से चलाया जाना था, लेकिन यह सभी अभी भी पुरानी औसत गति से चलती हैं.

एकीकृत विकास और जन जागरुकता मंच, UDBHAV के महासचिव, वेद प्रकाश तिवारी का कहना है कि रेलवे बोर्ड ने अक्टूबर 2020 में एक सर्कुलर जारी कर एसईआर समेत सभी 16 रेलवे क्षेत्रों के 358 यात्री ट्रेनों (179 जोड़े) का विवरण दिया था.

तिवारी का दावा है कि डेढ़ महीने पहले, उन्होंने इन यात्री ट्रेनों की औसत गति में बढ़ोत्तरी सुनिश्चित करने और मेल एक्सप्रेस ट्रेनों जैसी सुविधाएं देने के लिए एसईआर महाप्रबंधक को एक खत लिखा था, क्योंकि गरीब यात्री अगर ज़्यादा किराया देने को मजबूर हैं, तो वो बेहतर गति और सेवाओं के हक़दार भी हैं.

मसलन, पुरानी राउरकेला-पुरी पैसेंजर ट्रेन अब मेल एक्सप्रेस के रूप में चल रही है जिसमें कुछ सेकंड क्लास के बैठने वाले कोच हैं, और कुछ सामान्य कोच हैं. तिवारी का कहना है कि लगभग 38 किमी/घंटा की औसत गति के साथ 528 किमी की दूरी तय करने में 14 घंटे 50 मिनट लगते हैं.

राउरकेला के रास्ते हटिया-झारसुगुड़ा एक्सप्रेस में सिर्फ़ कुछ सामान्य डिब्बे हैं, और वो अपनी पुरानी गति से ही चलती है. इसका सीधा मतलब यह है कि एक तरह से रेलवे आदिवासी और दूसरे गरीब यात्रियों को लूट रहा है.

राउरकेला-पुरी पैसेंजर ट्रेन का पुरी तक का पुराना किराया 160 रुपये था, और एक्सप्रेस ट्रेन बनने के बाद उसका किराया बढ़कर 185 रुपये हो गया है.

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