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आदिवासियों के बीच टीबी का बोझ – झारखंड सबसे आगे, मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर

पिछले साल किए गए एक शोध में शोधकर्ताओं ने 74,532 लोगों की जांच की, और पाया कि आदिवासियों में टीबी का कुल प्रसार प्रति एक लाख लोगों में 432 था, जबकि बाकि आबादी में यह 350 प्रति एक लाख था. 2025 तक देश से टीबी को मिटाने के भारत सरकार के लक्ष्य के लिए इस तरह के शोध बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनसे आदिवासी आबादी में टीबी नियंत्रण के लिए जरूरत-आधारित रणनीतियों की योजना बनाने में मदद मिलती है.

टीबी यानि तपेदिक के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है. पूरी दुनिया में 10 मिलियन संक्रमण के कुल आंकड़े में भारत का योगदान 2 मिलियन संक्रमण का है. विश्व स्तर पर सबसे बड़े संक्रामक रोग हत्यारे इस बीमारी ने 2020 में 1.5 मिलियन लोगों की जान ली, जिनमें से 85,000 भारत में थे.

आदिवासियों में टीबी का बोझ

इन आंकड़ों में एक और चिंता की बात यह है कि भारत में लगभग 10.4 प्रतिशत टीबी संक्रमण आदिवासियों के बीच है. 2011 की जनगणना के हिसाब से आदिवासी देश की आबादी का 8.6 प्रतिशत हिस्सा हैं.

नैशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 4 के आंकड़ों से पता चलता है कि 70 प्रतिशत आदिवासी जिलों में गैर-आदिवासी लोगों की तुलना में आदिवासी लोगों में टीबी का 1.5 गुना ज़्यादा संक्रमण है.

देश के आदिवासी समुदाय ख़ासतौर से टीबी के प्रति संवेदनशील हैं. यह समुदाय पहले से ही पीढ़ीगत गरीबी और स्वास्थ्य देखभाल तक खराब पहुंच की वजह से पहले से ही वंचित हैं.

टीबी को खत्म करने के लिए उसकी वजहों और उसके परिणामों के एक पेचीदा जाल को संबोधित करना ज़रूरी है. इसमें कुपोषण, बहुआयामी गरीबी, तंबाकू का सेवन, हाशिए पर रहने वाले समुदाय, बाधित आजीविका, बच्चों का अनाथ होना, दूसरी बीमारियां जैसे एचआईवी, डायबिटीज़ और कोविड, काम के लिए प्रवास, बीमारी की रोकथाम तक पहुंच की कमी, खराब आवास, भीड़भाड़, इनडोर वायु प्रदूषण, और शराब की खपत के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल  का अलग-अलग स्तर शामिल हैं. इन मुद्दों से कैसे निपटा जाता है, यह सरकार के 2025 तक देश में टीबी को समाप्त करने के लक्ष्य को निर्धारित करेगा.

टीबी को खत्म करने के लिए उसकी वजहों और उसके परिणामों के एक पेचीदा जाल को संबोधित करना ज़रूरी है

भारत टीबी रिपोर्ट 2022

भारत टीबी रिपोर्ट 2022 के मुताबिक़ देश की आदिवासी आबादी के बीच टीबी के संक्रमण के मामले में झारखंड सबसे आगे है. इसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है, जहां पिछले साल आदिवासियों के बीच 24,000 से ज़्यादा टीबी के मामले दर्ज किए गए.

मध्य प्रदेश ने 2021 में आंशिक या पूर्ण आदिवासी आबादी वाले 20 जिलों से 24,325 टीबी के मामले दर्ज किए, जबकि झारखंड में आंशिक या पूर्ण आदिवासी आबादी वाले 15 ज़िलों में  28,100 टीबी मामले सामने आए.

मध्य प्रदेश सरकार ने ऐसे 89 ब्लॉकों की पहचान की है जिनमें आदिवासी आबादी ज्यादा है. इन क्षेत्रों में जांच के माध्यम से बीमारी की जल्द पहचान के लिए एक समर्पित अभियान चलाया जा रहा है.

राज्य के ग्वालियर जिले में सहरिया जनजाति को टीबी के प्रति ज़्यादा संवेदनशीलता पाया गया है. इसपर ICMR का शोध भी चल रहा है.

इंडिया टीबी रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि एमपी ने 2019 में 40,929 मामलों से 2020 में 24,325 और 2021 में 24,680 मामलों की भारी गिरावट दर्ज की है.

भारत के आदिवासी, जो देश की आबादी का 8.6 प्रतिशत हिस्सा हैं, हाशिए पर हैं और कई असमानताओं का शिकार हैं, जिनमें स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सबसे बड़ी है.

पिछले साल किए गए एक शोध में शोधकर्ताओं ने 74,532 लोगों की जांच की, और पाया कि आदिवासियों में टीबी का कुल प्रसार प्रति एक लाख लोगों में 432 था, जबकि बाकि आबादी में यह 350 प्रति एक लाख था.

हालांकि, आदिवासी आबादी में टीबी के प्रसार में राज्यवार अंतर था, लेकिन 2020-21 में ओडिशा में सबसे ज़्यादा प्रसार (803 प्रति 100,000) और जम्मू और कश्मीर में सबसे कम (127 प्रति 100,000) दिखा.

2025 तक देश से टीबी को मिटाने के भारत सरकार के लक्ष्य के लिए इस तरह के शोध बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनसे आदिवासी आबादी में टीबी नियंत्रण के लिए जरूरत-आधारित रणनीतियों की योजना बनाने में मदद मिलती है.

Tribal TB Initiative

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने सरकार के 2025 तक ‘टीबी मुक्त भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक कदम के रूप में 26 मार्च, 2021 को ‘आदिवासी टीबी पहल’ (Tribal TB Initiative) की शुरुआत की थी.

इसके तहत टीबी को ख़त्म करने के लिए आदिवासी मामलों के मंत्रालय के साथ एक जॉइंट एक्शन प्लान तैयार किया गया, जिसमें लगभग 177 आदिवासी जिलों को ऊंची प्राथमिकता वाले जिलों के रूप में पहचाना गया. इन ज़िलों में रहने की खराब स्थिति, शारीरिक दूरी, कुपोषण और जागरुकता की कमी आदिवासी आबादी की टीबी के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती है.

जॉइंट एक्शन प्लान की गतिविधियां शुरू में 18 राज्यों के 161 जिलों पर केंद्रित होनी थीं. इनमें वॉलंटियर्स द्वारा आदिवासियों के बीच जागरुकता फैलाने पर ज़ोर था.

इसके अलावा पहचान की गई कमजोर आबादी के लिए समय-समय पर टीबी सक्रिय केस फाइंडिंग ड्राइव और टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (आईपीटी) का प्रावधान भी है.

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