सहरिया शब्द की उत्पति सहर से हुई है, जिसका अर्थ है जंगल. यह आदिवासी मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान में रहते हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 7 लाख 26 हज़ार है.
सहरिया आदिवासी को सरकार द्वारा विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है.
सहरिया आदिवासियों की बस्तियां समतल और पहाड़ी दोनों इलाकों में है. इनके घरों में कोई समान्यता मौजूद नहीं होती है.
सहरिया आदिवासी जिन गाँवो में बसे होते हैं, उन्हें सहराना कहा जाता है. सहराना का अर्थ है वे स्थान जहां सहरिया आदिवासी रहते हो.
हर सहराना के बीचों-बीच बंगला होता है. यह एक तरह की झोपड़ी होती है, जो चारों ओर से खुली हुई होती है.
इस बंगला पर सहरिया आदिवासी गाँव की समस्याओं के बारे चर्चा करते हैं. इसी झोपड़ी पर गाँव में आने वाले अतिथियों को भी रोका जाता है. इस झोपड़ी 30 से 40 लोगों की सोने की व्यवस्था होती है.
सहरिया आदिवासी घर बनाने के स्थान को चुनने से पहले पुजारी को बुलाते है. पुजारी यह बताता है कि घर बनाने के लिए चुना गया स्थान शुभ है या नहीं.
सहरिया आदिवासी जब खंबा गाड़ने के लिए गड्डा खोदते हैं, तब उसे गड्डे में तांबे का सिक्का, हल्दी गाड़ी जाती है.
सहरिया आदिवासी ज्यादातर ज्वार की खेती करते हैं. इसके अलावा ये अपने जीवनयापन के लिए वन उपज पर ही निर्भर रहते हैं.
बारिश के समय यह आदिवासी मछली का शिकार करते हैं. इनका यह शिकार शौक के तौर पर किया जाता है.
मछली का शिकार करने के लिए वह किसी भी तरह का जाल का इस्तेमाल नहीं करते. बल्कि मछली पकड़ने के लिए पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं.
इस पारंपरिक तकनीक के अनुसार नदियों में रेत डालने के बाद उसमे चेल्हा, गोलहर या बेल का चूर्ण डालते है, जो मछलियों के लिए जहर का काम करता है.
सहरिया आदिवासियों में ज्वार की रोटी लगभग हर घर में खाई जाती है. ये आदिवासी गेहूं की रोटी कम ही खाते हैं.
सहरिया आदिवासियों में ज्यादातर महिलाएं घाघरा, लूगरा और चोली पहनती हैं. महिलाओं का पहनावा कुछ हद तक राजस्थानी महिलाओं के पंरपारिक पहनावे से मेल खाता है.
सहरिया महिलाएं अपने शरीर में अलग-अलग आकृतियों के गोदना भी गोदवाती हैं.
ऐसा कहा जाता है कि सहरिया आदिवासी जंगली जानवरों के शिकार में इतने माहिर नहीं होते. यह आदिवासी शिकार के लिए ज्यादातर कुल्हाड़ी का उपयोग करते हैं.
इनके घरों में आपको तीर-कामान जैसे औज़ार कम ही देखने को मिलेंगे.
सहरिया आदिवासियों के प्रमुख नृत्यों में लहकी, दुलदुल घोड़ी, सरहुल, नृत्यरागनि एवं तेजाजी की लोक कथा शामिल हैं.
सहरिया आदिवासियों में आज भी फैलता कुपोषण और टीबी बड़ी चुनौती हैं.