पार्टी के 300 से ज़्यादा सांसद है, इसलिए आदिवासी सांसद नहीं बोल पाते हैं – कुनार हेम्ब्रम, बीजेपी सांसद

दिवासियों की धार्मिक पहचान के मसले पर भी कुनार हेम्ब्रम से बातचीत हुई. कुनार हेम्ब्रम का मत है कि भारत के 99 प्रतिशत आदिवासी हिंदू धर्म को मान चुके हैं. इसलिए आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की कोई ज़रूरत नहीं है.

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“बीजेपी के साथ एक समस्या ये है कि हमारे मेम्बर बहुत हैं. जब संसद में बोलने की बारी आती है तो यह देखा जाता है कौन कितनी बार सांसद बना है. यह भी देखा जाता है कि कौन सदस्य अच्छा बोलता है. हम तो उतना अच्छा नहीं बोल पाते हैं. इसके अलावा हम पहली बार ही सांसद बने हैं.” बीजेपी के सांसद कुनार हेम्ब्रम ने यह बात मैं भी भारत से बातचीत के दौरान कही.

उनसे पूछा गया था कि क्या वो ये मानते हैं कि राष्ट्रीय दलों में आदिवासी नेताओं को महत्व नहीं मिलता है. इसके साथ ही आदिवासी सांसदों या विधायकों को सदन में बोलने का मौक़ा कम ही मिलता है. इस बात से वो सहमत होते हैं. 

लेकिन कहते हैं, “बीजेपी में सांसदों की संख्या 300 से ज़्यादा है, जबकि दूसरे दलों की संख्या बहुत कम है. इसलिए शायद हमारे दल में आदिवासी सांसदों को बोलने का मौक़ा कम ही मिलता है.”

कुनार हेम्ब्रम संथाल आदिवासी समुदाय से हैं और फ़िलहाल पश्चिम बंगाल के झारग्राम से लोक सभा सांसद हैं. कुनार हेम्ब्रम आईआईटी खड़गपुर से सिविल इंजिनियर की डिग्री लेने के बाद कई बरस तक नेशनल बिल्डिंग कॉरपोरेशन में काम कर चुके हैं. 

कुनार हेम्ब्रम ने संथाल भाषा के विकास से जुड़े कई अहम काम में योगदान किया है. अभी भी वो संथाली भाषा में पढ़ाई-लिखाई पर काम कर रहे हैं. इस मसले पर भी उनसे लंबी बातचीत हुई है. 

आदिवासियों की धार्मिक पहचान के मसले पर भी कुनार हेम्ब्रम से बातचीत हुई. कुनार हेम्ब्रम का मत है कि भारत के 99 प्रतिशत आदिवासी हिंदू धर्म को मान चुके हैं. इसलिए आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की कोई ज़रूरत नहीं है.

वो कहते हैं, “ भारत का संविधान सभी को अपनी धार्मिक आस्थाओं को मानने और उनके पालन का अधिकार देता है. संथाल आदिवासी सारी धर्म को मानते हैं. हमें कोई रोक तो नहीं रहा है, कम से कम अभी तो नहीं रोक रहा है. इसलिए अलग धर्म कोड की क्या ज़रूरत है. उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है. यह तो घर की बात है.”

कुनार हेम्ब्रम यह भी मानते हैं कि जनगणना में आदिवासियों की अलग से धार्मिक पहचान की कोई ज़रूरत नहीं है. वो कहते हैं कि वैसे भी अगली जनगणना में धार्मिक पहचान दर्ज ही नहीं की जाएगी. 

संथाली मीडियम में पढ़ाई के सवाल पर उन्होंने विस्तार से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि पश्चिम बंगाल में संथाली माध्यम में पढ़ाई लिखाई हो रही है. लेकिन इसमें एक गंभीर मसला है, मसला ये है कि संथाली स्कूलों में टीचर्स की भारी कमी है.

संथाली भाषा पढ़ाने वाला टीचर ही गणित, इतिहास, विज्ञान और भूगोल सब कुछ पढ़ा रहा है. पश्चिम बंगाल सरकार इन स्कूलों के लिए एक भी टीचर भर्ती नहीं कर सकी है. वो दावा करते हैं कि इन स्कूलों में जो टीचर हैं भी वो सर्व शिक्षा अभियान के तहत भर्ती किए गए हैं. यानि केंद्र सरकार से इसके लिए पैसा मिलता है. 

कुनार हेम्ब्रम ने कहा कि संथाली भाषा में लिखी गई टेक्सट बुक्स शुरूआती दौर की हैं. उनमें कई त्रुटियां हैं. इन्हें दूर करने की ज़रूरत है, लेकिन इस पर कोई काम नहीं हो रहा है. 

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