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थारू आदिवासी इलाक़ों में अभियान कमज़ोर, ना वैक्सीन और ना ही मोबाइल नेटवर्क

ग़लतफ़हमियों को जागरूकता अभियान से दूर किया जा सकता है. लेकिन मुश्किल ये है कि इन इलाक़ों में वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई नहीं है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार यहाँ की लखीमपुर खीरी की बनकती ग्राम पंचायत में अभी सिर्फ़ 350 लोगों को ही वैक्सीन लगी है. यहाँ की कुल आबादी क़रीब 4500 है.

उत्तर प्रदेश के आदिवासी इलाक़ों में कोविड की वैक्सीन की कमी, कमज़ोर मोबाइल नेटवर्क और इलाक़ों की दुर्गमता वैक्सीन अभियान में बाधा बन रहे हैं. राज्य के लखीमपुर खीरी ज़िले के आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन के प्रति जागरूकता अभियान में लगे लोगों का यह कहना है. 

अभी तक धारणा यह बनी हुई है कि वैक्सीन के प्रति उदासीनता आदिवासी इलाक़ों में इस अभियान में एक बड़ी मुश्किल‌ है. इसके अलावा की तरह का भ्रम और ग़लतफ़हमी भी कोविड वैक्सीन के बारे में पाई जा रही हैं. 

इन ग़लतफ़हमियों को जागरूकता अभियान से दूर किया जा सकता है. लेकिन मुश्किल ये है कि इन इलाक़ों में वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई नहीं है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार यहाँ की लखीमपुर खीरी की बनकती ग्राम पंचायत में अभी सिर्फ़ 350 लोगों को ही वैक्सीन लगी है. यहाँ की कुल आबादी क़रीब 4500 है. 

इसी ज़िले के पालिया ब्लॉक में भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है. यहाँ क़रीब 3.6 लाख की आबादी है. इसमें कम से कम 52 हज़ार की जनसंख्या थारू आदिवासियों की है. इन आदिवासियों के यहाँ पर 42 गाँव हैं. 

यहाँ पर काम कर रहे एक स्वास्थ्यकर्मी के अनुसार अभी तक सिर्फ़ 9 हज़ार थारू आदिवासियों को ही कोविड का टीका लग पाया है. उन्होंने बताया है कि दो सबसे बड़ी मुश्किलें आ रही है पहली है वैक्सीन की कमी और दूसरी है मोबाइल नेटवर्क कमज़ोर होना. 

इस स्वास्थ्य कर्मी का कहना है कि थारू आदिवासियों के किसी भी इलाक़े में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. इसलिए यहाँ पर कोविड ऐप (CoWin Application) पर रजिस्टर करना बेहद मुश्किल काम हो गया है. उन्होंने बताया है कि जिन लोगों को वैक्सीन लगाई भी जाती है उनके नाम और नंबर रजिस्टर करने के लिए पहले कागज़ पर नोट किए जाते हैं.

उसके बाद शहर जा कर ये नाम और नंबर ऐप पर रजिस्टर किए जाते हैं. हिमालय और शिवालिक की तराई में बसे थारू आदिवासियों में से अभी भी ज़्यादातर जंगल से अपनी रोज़ी रोटी कमाते हैं. इनमें से कुछ आबादी खेती किसानी भी करती है. 

थारू भारत और नेपाल दोनों ही देशों में बसे हैं. भारत में थारू आदिवासी उत्तर प्रदेश. उत्तराखंड और बिहार में बसे हैं. कई थारू आदिवासी इलाक़े अभी भी सड़कों से नहीं जुड़ पाए हैं. 

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