HomeAdivasi Dailyअमित शाह से माँगा गोरखा ने जनजाति का दर्जा

अमित शाह से माँगा गोरखा ने जनजाति का दर्जा

बीजेपी ने 2009 और 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव मेंं अपने घोषणापत्र में कहा था कि "वह सहानुभूतिपूर्वक जांच करेगी और गोरखा, आदिवासी और दार्जिलिंग जिले और डुआर्स क्षेत्र के अन्य लोगों की लंबे समय से लंबित मांगों पर विचार करेगी."

एक लंबे वक्त के बाद लंबित 11 गोरखा उप-जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का मुद्दा उठा है. दरअसल केंद्र सरकार ने दार्जिलिंग हिल्स, तराई और डुआर्स क्षेत्र के गोरखा प्रतिनिधियों और पश्चिम बंगाल सरकार के साथ त्रिपक्षीय वार्ता की ताकि गोरखाओं से जुड़ी समस्याओं का समाधान निकाला जा सके. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक की अध्यक्षता की.

वहीं गोरखा प्रतिनिधिमंडल में दार्जिलिंग विधायक नीरज जिम्बा, कुर्सेओंग विधायक बीपी बजगैन, कालचीनी विधायक विशाल लामा, जीएनएलएफ प्रमुख मान घीसिंग, सीपीआरएम प्रमुख आरबी राय, बीजेपी जिलाध्यक्ष डॉ. कल्याण दीवान, गोरानिमो प्रमुख दावा पखरीन, एबीजीएल प्रमुख प्रताप खाती और सुमुमो प्रमुख बिकाश शामिल थे.

जबकि केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जॉन बारला शामिल थे. पश्चिम बंगाल सरकार के प्रतिनिधि भी मौजूद थे.

2019 के संसदीय चुनावों के दौरान भाजपा ने अपने ‘संकल्प पत्र’ (चुनाव घोषणापत्र) के तहत गोरखाओं के मुद्दे को हल करने का आश्वासन दिया था. दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र से एक सीट पर कब्जा करने वाले भाजपा नेता राजू बिस्ता ने बैठक के बाद कहा कि हमने गोरखाओं और क्षेत्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. जिसमें क्षेत्र में लोकतंत्र का अभाव और जमीनी स्तर के शासन निकायों की अनुपस्थिति का मुद्दा शामिल था.

दार्जिलिंग के सांसद कार्यालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में राजू बिस्ता  ने कहा है, “आजादी के बाद ‘पहाड़ी जनजातियों’ की स्थिति को समुदाय के साथ किसी भी परामर्श के बिना गोरखाओं को हटा दिया गया था. जिसने गोरखाओं को उनके पारंपरिक अधिकारों से वंचित कर दिया था और छोड़ दिया था.”

बिस्ता ने कहा, “गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (GTA) जैसे निकायों के रूप में स्टॉप-गैप अर्ध-स्वायत्त शासन व्यवस्था क्षेत्र के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रही थी. इस क्षेत्र में 2001 से पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं और जीटीए 2017 से टीएमसी कैडरों का इस्तेमाल कर प्रशासकों के बोर्ड के रूप में चलाया जा रहा था. इस प्रकार हमने जल्द से जल्द एक स्थायी राजनीतिक समाधान निकालने का आह्वान किया.”

वहीं गोरखा प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सरकारों ने पहले ही इन छूटी हुई उप-जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने का समर्थन किया था. भारत सरकार ने इस मांग की जांच के लिए केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री के नेतृत्व में तीन समितियों का गठन किया था.

गृह मंत्री अमित शाह ने सभी संबंधित पक्षों की बात सुनी और नवंबर में दिवाली के बाद दूसरे दौर की वार्ता बुलाने का फैसला किया है. पश्चिम बंगाल सरकार को विशेष रूप से उन वरिष्ठ अधिकारियों को भेजने के लिए कहा गया है जिन्हें अगले दौर की बातचीत के लिए अधिकार दिया गया है.

दरअसल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस साल अप्रैल में बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले कहा था कि भाजपा बंगाल में सत्ता में आते ही दार्जिलिंग पहाड़ियों में गोरखाओं के लिए एक “स्थायी राजनीतिक समाधान” प्राप्त करने का प्रयास करेगी.

बीजेपी ने 2009 के बाद से जीजेएम (गोरखा जनमुक्ति मोर्चा) के साथ गठबंधन करके दार्जिलिंग लोकसभा सीट तीन बार जीती है. 2019 में, बीजेपी ने दार्जिलिंग पहाड़ियों में जीजेएम (गुरुंग गुट), गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) और अन्य छोटे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन किया था.

बीजेपी ने दार्जिलिंग की पहाड़ियों और उससे सटे सिलीगुड़ी, तराई और उत्तर बंगाल के डुआर्स क्षेत्र में रहने वाले नेपाली भाषी गोरखाओं द्वारा उठाई गई गोरखालैंड की मांग का स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने का वादा किया है.

इससे पहले 2014 और 2019 में अपने चुनावी घोषणापत्र में बीजेपी ने वादा किया था कि वह गोरखालैंड की मांग का स्थायी समाधान निकालेगी.

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