HomeAdivasi Dailyकेरल: मकान हासिल करने के लिए भटके आदिवासी

केरल: मकान हासिल करने के लिए भटके आदिवासी

2015-2016 में ऐडिशन ट्राइबल सब प्लान योजना के तहत अगाली के प्रत्येक आदिवासी परिवारों को मकान बनाने के लिए 1.28 लाख आवंटित किए गए थे. कॉन्ट्रेक्टर मिलने के बावजूद भी इन्हें मकान के नाम पर एक कमरा बनाकर दे दिया गया है. जिससे अब पानी टपकने लगा है.

आठ सालों से केरल (Tribes of Kerala) के अट्टापडी में रहने वाले आदिवासी परिवार न्याय की गुहार लगा रहे हैं. इन आदिवासी परिवारों की बस एक ही इच्छा थी की इनके पास खुद का एक पक्का मकान (Pacca House) हो.

85 वर्षीय आदिवासी रांगी के आंखों में एक उदासीनता से झलकती है. उन्होंने अपनी भाषा इरूला में कहा, “ ईमुकू नीथि वेनू”. इसका अर्थ है की हमें न्याय चाहिए.

न्याय की मांग में अगाली के सात आदिवासी परिवार सालों से इंतज़ार कर रहे है.

रांगी की बस अब एक ही इच्छा है की इस वृद्धा अवस्था में उनका जितना भी जीवन बचा है. वह अपने पक्के मकान में बिताएं.

2015-2016 में ऐडिशनल ट्राइबल सब प्लान योजना (Additional Tribal Sub Plan Scheme) के तहत प्रत्येक आदिवासी परिवार को मकान बनाने के लिए 1.28 लाख आवंटित किए गए थे और मकान निर्माण के लिए बशहीर और गाफूर को कॉन्ट्रेक्ट दिया गया था. जिसके बाद पंचायत के सदस्य ज़ाखिर भी इस कॉन्ट्रेकटर में शामिल हो गए.

आदिवासियों का आरोप है की कॉन्ट्रेक्टर ने मकान बनाने का झांसा देकर प्रत्येक परिवार से 3.82 लाख तक लूट लिए है.

लेकिन मकान के नाम पर महज़ के एक कमरा बनाकर दिया है. इस घर में ना तो कोई खिड़की है और ना ही रोशनदान है. इस कमरे में शौचालय भी नहीं बनाया गया है और ना ही कोई रसोईघर.

अब तो हालत ये है की इस कमरे से भी पानी टपकने लगा है.

आदिवासियों का आरोप है की उनके लाख कहने पर भी कॉन्ट्रेक्टर ने अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं किया. जिसके कारण हालत इतनी बुरी हो गई है की मकान से पानी तक टपकने लगा है.

8 साल पहले सरकार द्वारा प्रत्येक आदिवासी परिवार के बैंक खाते में 1.28 लाख आवंटित किए थे. इन पैसों की भनक बशीर को लगी और वे आदिवासी परिवारों से मिलने आया. अपनी इस मुलाकत में बशीर ने आदिवासियों को मजबूत मकान के सपने दिखाए.

बशीर सभी आदिवासी परिवार को अगली के एसबीआई बैंक शाखा में ले गया और आदिवासियों के खाते से पैसे अपने खाते में ट्रांसफर करे.

जिसके बाद उसने सभी परिवार को महज़ 500 रूपये पकड़ाए और घर की ओर रवाना कर दिया.

जब आदिवासी परिवार को यह अहसास हुआ की उनके साथ धोखा हुआ है. तब उन्होंने पुलिस थाने में बशीर और गफूर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई.

लेकिन पुलिस अधिकारियों ने मामले की छानबीन की जगह, उन्हें समझौता करने की सलाह दी. जिसके बाद किसी तरह ये केस क्राइम ब्रांच के पास पहुंचा और कोर्ट में बशीर और अन्य आरोपियों की पेशी हुई.

राजनीतिक दबाव कह लीजिए या फिर कानूनी तकनीक, मामले को रोक दिया गया और न्याय फिर दाँव पर लग गया.

हाई कोर्ट में इन्हीं परिवारों में से एक आदिवासी मामले पर रोक हटावाने के लिए कोर्ट पहुंचा है.

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