HomeAdivasi Dailyगुजरात के आदिवासी मतदाताओं के लिए पानी और नौकरियां सबसे ऊपर

गुजरात के आदिवासी मतदाताओं के लिए पानी और नौकरियां सबसे ऊपर

आदिवासी बहुल वलसाड सीट पर भाजपा ने अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय सोशल मीडिया प्रभारी धवल पटेल को उतारा जो नवसारी के धोडिया आदिवासी समुदाय से हैं. वहीं कांग्रेस ने इस बार वलसाड लोकसभा के अंतर्गत आने वाली बंस्दा विधानसभा सीट से विधायक और गुजरात कांग्रेस अनुसूचित जनजाति सेल के अध्यक्ष अनंत पटेल को मैदान में उतारा है.

गुजरात के आदिवासी बहुल छोटा उदेपुर जिले के भरकुवा गांव के लोग पानी लाने के लिए दिन में लगभग एक दर्जन बार अपने घर से एक किलोमीटर दूर एक कुएं तक जाते हैं. इन आदिवासियों के घरों में केंद्र की महत्वाकांक्षी ‘नल से जल’ योजना के हिस्से के रूप में एक साल पहले पानी के नल लगे हुए हैं लेकिन उसमें से पानी नहीं आता है.

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासियों के घरों में नल लगा दिया गया है और गांव में एक मिनी टैंक स्थापित किया गया है लेकिन कनेक्टिंग पाइप का कोई नेटवर्क नहीं है. जिसकी वजह से नलों में पानी नहीं आता है.

एक आदिवासी शख्स का कहना है कि जब हमारे आंगनों में नल लगाए गए थे तो बड़े-बड़े वादे किए गए थे. लेकिन तब हमें नहीं पता था कि वे हमें याद दिलाने के लिए केवल शोपीस थे कि हम ऐसी आबादी नहीं हैं जो अपने घरों में नल से पानी पाने के लायक है.

उत्तर में बनासकांठा जिले से लेकर दक्षिण में वलसाड तक फैला गुजरात का आदिवासी क्षेत्र, जहां मंगलवार को मतदान होना है, नौ लोकसभा क्षेत्रों को कवर करता है. इन बेल्टों में कई आदिवासी महिलाओं का कहना है कि नल से जल योजना की सफलता पर भाजपा अभियान का जोर “वास्तविकता से बहुत दूर” है.

दाहोद जिले के गरबाडा के स्वतंत्र सरपंच अशोक पटेलिया का कहना है कि योजना विफल हो गई है. उन्होंने कहा, “यह मध्य गुजरात के आदिवासी इलाकों के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक है, जहां जल योजनाएं शुरू की गई हैं लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें केवल कागजों पर ही लागू किया गया है.”

पिछले साल मई में गुजरात विधानसभा के उपाध्यक्ष जेठा अहीर ने मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल को लिखे एक पत्र में कहा था कि यह योजना उनके निर्वाचन क्षेत्र में विफल रही है और कथित “भ्रष्टाचार” की जांच की मांग की थी.

पीने के पानी तक पहुंच एक बारहमासी समस्या है. लेकिन इसके अलावा आदिवासी क्षेत्र में एक और प्रमुख मुद्दा बेरोजगारी है.

छोटा उदेपुर के देवलिया गांव के 25 वर्षीय घनश्याम राठवा के पास इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री है लेकिन अभी तक उन्हें नौकरी नहीं मिली है. अब वह गुजरात राज्य पुलिस सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं.

घनश्याम ने कहा, “शिक्षित युवा केवल सरकारी परीक्षाओं को पास करने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि आदिवासी क्षेत्रों में निजी कंपनियों में कोई अवसर नहीं हैं. कोई औद्योगिक विकास नहीं है जिसके चलते पलायन मजबूरी बन जाती है.”

राज्य की 26 में से सिर्फ चार लोकसभा सीटें – छोटा उदेपुर, दाहोद, बारडोली और वलसाड अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा साबरकांठा, भरूच, पंचमहल, नवसारी और बनासकांठा निर्वाचन क्षेत्रों में भी आदिवासी मतदाता बड़ी संख्या में हैं.

हालांकि आदिवासी, जो राज्य की 6.5 करोड़ आबादी में से 80 लाख हैं. वो पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट देते रहे हैं लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों में पलड़ा भाजपा के पक्ष में झुक गया. जब पार्टी ने 27 एसटी सीटों में से 23 पर जीत हासिल की जबकि कांग्रेस की तीन सीटें और उसकी सहयोगी भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) की दो सीटें हैं.

भाजपा का अभियान ‘मोदी की गारंटी’ पर केंद्रित है और कांग्रेस और उसकी सहयोगी आम आदमी पार्टी (आप) का अभियान जल, जंगल और जमीन और बेरोजगार युवाओं के लिए प्रशिक्षुता पर केंद्रित है.

लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उनके चुनावी वादों ने आदिवासी मतदाताओं के बीच कोई ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ा है.

भीलपुर गांव में छोटा उदेपुर से स्नातक, 28 वर्षीय ईश्वर राठवा कहते हैं, “दोनों पार्टियों (भाजपा और कांग्रेस) ने अतीत में सरकारें बनाई हैं. उन्होंने कई वादे किये लेकिन पूरा नहीं किया. हम 1 लाख रुपये प्रति वर्ष प्रशिक्षुता के वादे पर विश्वास नहीं करते हैं और न ही हम यह विश्वास करेंगे कि दूसरी पार्टी हमें 2 लाख रुपये देगी. फैक्ट यह है कि प्राइवेट नौकरियां प्राप्त करना एक संघर्ष है और यह शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी संघर्ष करने के बाद आता है.”

दाहोद और छोटा उदेपुर जैसे जिलों से आदिवासी काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं. इसलिए भाजपा नेता स्वीकार करते हैं कि ग्रेजुएट छात्रों की बढ़ती संख्या का मतलब नौकरी चाहने वालों की संख्या में भी वृद्धि है.

राज्य भाजपा के एसटी मोर्चा के प्रमुख अर्जुन चौधरी कहते हैं, ”इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज आदिवासी क्षेत्रों में हर दूसरे घर में एक साइंस स्टूडेंट है और कई बच्चे आदिवासी क्षेत्रों से मेडिकल और इंजीनियरिंग कर रहे हैं लेकिन आदिवासी जिलों के भीतर रोजगार के अवसर सीमित हैं क्योंकि वर्तमान टॉपोग्राफी में उद्योग स्थापित नहीं किए जा सकते हैं.”

भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य में जीत हासिल की थी. लेकिन कांग्रेस और आप ने वोट मजबूत होने की उम्मीद के साथ 2022 के विधानसभा चुनावों के नतीजों की ओर इशारा किया है.

पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कांग्रेस के वंसदा विधायक और वलसाड उम्मीदवार अनंत पटेल को लगता है कि 2022 में आदिवासी मतदाता आप के वादों से “मुग्ध” थे लेकिन जो वोट आप को मिले बीजेपी विरोधी वोट थे.

पटेल ने कहा, “2022 का विधानसभा चुनाव सिर्फ भाजपा-कांग्रेस लड़ाई नहीं थी, जैसा कि इस बार है. आप ने वोट शेयर में सेंध लगाई थी लेकिन यह भाजपा विरोधी वोट था जो आप को मिला. आप ने आदिवासी इलाकों की नब्ज पकड़ी क्योंकि उन्हें लगा कि शहरी इलाकों में उन्हें सफलता नहीं मिलेगी. इस बार कांग्रेस गुजरात में अपनी खोई हुई सीटें वापस हासिल करेगी.”

हालांकि, आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस अपने नेताओं के भाजपा में शामिल होने से कमजोर हो गई है. जिनमें 10 बार के छोटा उदेपुर विधायक मोहनसिंह राठवा, पूर्व सांसद नारण राठवा और चार बार के विधायक धीरू भील सहित अन्य शामिल हैं.

वहीं भले ही भाजपा ने आदिवासी क्षेत्र में पैठ बना ली है लेकिन आप के युवा आदिवासी नेता चैतर वसावा के खिलाफ भरूच से छह बार के सांसद मनसुख वसावा का फिर से नामांकन आदिवासी चेहरों को खोजने के लिए उसके संघर्ष को दर्शाता है.

लेकिन भाजपा के अर्जुन चौधरी को लगता है कि चैतर की डेडियापाड़ा विधानसभा सीट से आगे कोई पकड़ नहीं है और वह 2022 में जीत गए क्योंकि भाजपा ने एक कमजोर उम्मीदवार खड़ा किया था.

उन्होंने कहा, “अभी वलसाड में हमने एक युवा नेता धवल पटेल को (अनंत पटेल को टक्कर देने के लिए) मैदान में उतारा है. भले ही वह सूरत के निवासी हैं और वलसाड में उतने लोकप्रिय नहीं हो सकते हैं. फिर भी हमें विश्वास है कि हम सीट जीतेंगे क्योंकि लोग लोकसभा में मोदी जी को वोट दे रहे हैं. ऐसा कोई दूसरा नेता नहीं है जिस पर वे विकास के लिए भरोसा करते हों.”

लेकिन अनंत पटेल ने कहा कि विपक्षी आदिवासी नेताओं की जमीनी स्तर पर मौजूदगी फर्क ला सकती है.

“चैतर और मैं दोनों जमीनी स्तर से आते हैं. हम अपने क्षेत्र के लोगों के लिए तत्परता से उपलब्ध हैं. जब भी कोई मुसीबत में होता है हम तुरंत पहुँच जाते हैं. हमारे कई पुराने नेताओं ने ऐसा नहीं किया.”

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