आज, यानि नौ गस्त को विश्व आदिवासी दिवस है. पूरी दुनिया में जश्न मनाया जा रहा है कि आदिवासी इस धरती के मूल निवासी हैं. इस साल की थीम भी दुनियाभर के आदिवासियों को साथ लेके चलना है (Leaving no one behind: Indigenous peoples and the call for a new social contract).
देश और दुनिया में भले ही कार्यक्रम आयोजित हो रहे हों, लेकिन अभी भी लाखों आदिवासी हर रोज़ अपने हक़ों के लिए लड़ते हैं. अन्नामलई टाइगर रिज़र्व (एटीआर) के वालपरई में ऐसे ही 23 आदिवासी परिवार हैं, जो अपने लिए स्थायी आवास की जद्दोजहद में लगे हैं.
ताइमुडी में चाय बागान में कामचलाउ घरों में रह रहे यह 23 काडर आदिवासी परिवार तेप्पकलमेडु, जो टाइगर रिज़र्व के अंदर है, में ज़मीन चाहते हैं. वन विभाग ने उन्हें कल्लारकुडी में नए घरों के लिए ज़मीन देने की पेशकश की थी, जिसे इन्होंने ठुकरा दिया.
दरअसल, 11 अगस्त, 2019 को भारी बारिश के चलते हुए लैंडस्लाइड के डर से उन्हें कल्लारकुडी से हटाकर उनकी मौजूदा बस्ती में शिफ़्ट किया गया था. इन लोगों का कहना है कि उस लैंडस्लाइड में चार घर बर्बाद हो गए थे, इसलिए वो वहां वापस नहीं जाना चाहते.
चाय बागान के क्वार्टरों में बारिश का पानी घुस जाता है, जिससे इन आदिवासियों को काफ़ी परेशानी होती है. हालांकि उन्हें शिफ़्ट करने के छह महीने के अंदर ही एक नई जगह पर बसाने का वादा किया गया था, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ वालपरई नगरपालिका ने इन घरों के लिए पानी के नल की व्यवस्था की थी, लेकिन पानी की गुणवत्ता इतनी ख़राब है कि आदिवासी बच्चे अकसर यह पानी पीने के बाद बीमार पड़ जाते हैं.
इस कॉलोनी की एक निवासी ने कि पहले वो झरने का पानी पीते थे, तब भी स्वस्थ रहते थे. ऊपर से जिस घर में वो रहते हैं, वह बहुत पुराना है और अंदर बारिश का पानी रिसता है. इससे घर के कभी भी ढह जाने का डर है. शौचालय की भी हालत खस्ता है.
इन आदिवासियों ने एटीआर वन अधिकारियों से तेप्पकलमेडु में ज़मीन देने के लिए कहा है. यहां रह रहे आदिवासी परिवार काली मिर्च, केला, कॉफी और अदरक की खेती करते हैं.
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और तमिलनाडु की एकता परिषद के राज्य समन्वयक एस धनराज के अनुसार, एटीआर अधिकारियों ने आदि द्रविड़ कल्याण विभाग के साथ आदिवासी परिवारों को स्थानांतरित करने के लिए तिमुडी के पास तेप्पकलमेडु में एक संयुक्त सर्वेक्षण किया था.
वन विभाग का कहना है कि टाइगर रिज़र्व के अंगर ज़मीन देने में कुछ व्यावहारिक दिक्कतें हैं. विभाग ने कल्लारकुडी में ज़मीन की पेशकश करते हुए, 21 लोगों के लिए पट्टा भी तैयार किया था, जिसे आदिवासियों ने ठुकरा दिया.
वन विभाग का यह भी दावा है कि आदिवासी जो लैंडस्लाइड की बात कर रहे हैं, वैसा कल्लारकुडी में कभी हुआ ही नहीं. लेकिन आदिवासियों की मांग पर विचार हो रहा है.
वन विभाग ने तेप्पकलमेडु में एक ख़ास मामले के रूप में ज़मीन आवंटित करने का प्रस्ताव भेजा है, क्योंकि वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत टाइगर रिज़र्व के अंदर जगह प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है.
(तस्वीर प्रतीकात्मक है)