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पहले CAA का विरोध करने वाली त्रिपुरा की आदिवासी पार्टियां अब बीजेपी की सहयोगी बन चुप्पी साधे खड़ी हैं

त्रिपुरा में लोकसभा की दो सीटें हैं और विधानसभा चुनाव 2028 में होना है. इसलिए ऐसा तो नहीं लगता है कि CAA एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन पाएगा. लेकिन इस मुद्दे पर टिपरा मोथा और उसके नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य की विश्वसनीयता ख़तरे में पड़ सकती है. क्योंकि ग्रेटर टिपरालैंड के मुद्दे पर वे पहले से ही सवालों के घेरे में हैं.

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) से कुछ हफ्ते पहले केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन नियम (CAA) की अधिसूचना जारी कर दी है. साल 2019 में बने इस कानून को चार साल बाद मोदी सरकार ने लागू करने का फैसला किया है.

जब ये कानून बना था तो देश के कई हिस्सों में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ था. वहीं अब जब इसे लागू किया जा रहा है तो पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इसे लेकर विरोध हो रहा है. त्रिपुरा में भी इस कानून का विरोध हो रहा है. त्रिपुरा की 80 फीसदी से अधिक सीमा बांग्लादेश के साथ लगती है.

लेकिन इस सब के बीच बड़ी बात है ये है कि राज्य की दो आदिवासी पार्टियां पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) और टिपरा मोथा (Tipra Motha) इस मुद्दे पर चुप हैं. इन दलों की चुप्पी इसलिए मायने रखती है क्योंकि इन्होंने इन कानूनों का ज़बरदस्त विरोध किया था. ख़ासतौर से टिपरा मोथा चीफ़ प्रद्योत किशोर माणिक्य इस कानून के खिलाफ़ काफी मुखर रहे हैं.

दरअसल अब टिपरा मोथा त्रिपुरा की सरकार में शामिल है. इसके अलावा प्रद्योत किशोर माणिक्य की बहन कृति सिंह देबबर्मा बीजेपी की टिकट पर त्रिपुरा में लोकसभा की उम्मीदवार हैं.

देबबर्मा ने इस मुद्दे पर कहा, “मेरा केस NRC को लेकर है और मेरा विश्वास है कि जब त्रिपुरा की बात आएगी तो सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगा. मैं आपको बोलना चाहता हूं कि जब मैं CAA को लेकर प्रोटेस्ट कर रहा था तब माणिक सरकार और कांग्रेस पार्टी कहां थे.”

त्रिपुरा में लंबे समय तक सत्ता में रही सीपीआई (एम) के नेता जितेंद्र चौधरी ने टिपरा मोथा के चीफ़ के बयान पर प्रतिक्रिया में कहा, “यह बात सही है कि उन्होंने CAA के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी और वे सुप्रीम कोर्ट भी गए. लेकिन क्या वे यह भूल गए कि जब वे आंदोलन कर रहे थे तो उनके समर्थकों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री विप्लब देब ने गोली चलवा दी थी. इस गोलीबारी में तीन लोग घायल हो गए थे. आज वे उसी विप्लब देव के साथ खड़े हैं.”

दूसरी ओर भाजपा ने पहले से ही लोगों तक पहुंचना शुरू कर दिया है. बीजेपी उन्हें बता रही है कि सीएए “घुसपैठियों और भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ एक मजबूत कदम है.”

वहीं पिछले हफ्ते मंगलवार को ट्विप्रा स्टूडेंट्स फेडरेशन (TSF) के सदस्यों ने अगरतला में सीएए की प्रतियां जलाईं और इस अधिनियम को “कठोर, देश के मूल्यों और मुसलमानों और ईसाइयों के हित के खिलाफ” बताया.

टीएसएफ नेता मनीष देबबर्मा ने कहा, “हम इस अधिनियम का विरोध करते हैं और राज्य में इसे लागू नहीं करना चाहते हैं. हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं. हम केंद्र से त्रिपुरा को कानून से छूट देने की अपील करते हैं. अगर वे सहमत नहीं हैं तो हम लोकतांत्रिक आंदोलन करेंगे.”

वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीब भट्टाचार्य ने कहा कि भारत के नागरिक के रूप में सभी को सीएए पर गर्व होना चाहिए.

उन्होंने कहा, “कानून को लेकर अटकलें हैं लेकिन यह सिर्फ देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करेगा और उन लोगों के खिलाफ है जो देश को विभाजित करना चाहते हैं. भारतीयों की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है और हर किसी को देश में सुरक्षित महसूस करने की जरूरत है.”

यह पूछे जाने पर कि क्या सीएए त्रिपुरा में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित करेगा, भट्टाचार्जी ने कहा, “मेरे ख्याल से नहीं होगा.”

जब टिपरा मोथा विपक्ष में था तो सीएए का विरोध कर रहा था और कानून लाने के भाजपा सरकार के कदम के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा था.

प्रद्योत किशोर देबबर्मा के नेतृत्व वाले संगठन का मुख्य मुद्दा त्रिपुरा के आदिवासियों के लिए अलग राज्य है. जो वर्षों से बांग्लादेश से लोगों के आने के खिलाफ नाराजगी से उभरा है.

बांग्लादेश से आए शर्णार्थियों की वजह से आदिवासी उस राज्य में अल्पसंख्यक बन गये हैं जहां वे एक बार प्रमुख समूह थे. इस अर्थ में सीएए बांग्लादेश से आए प्रवासियों की नागरिकता का रास्ता आसान करके उस भावना के विपरीत है.

वास्तव में टिपरा मोथा की “ग्रेटर टिपरालैंड” की मूल मांग में असम, मिज़ोरम और बांग्लादेश के क्षेत्र शामिल थे जहां त्रिपुरी आदिवासी केंद्रित हैं.

हालांकि, प्रद्योत किशोर अब धीरे धीरे ग्रेटर टिपरालैंड की मांग से पीछ हटते दिखाई दे रहे हैं. 2 मार्च के समझौते पर टिपरा ने केंद्र और भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के साथ हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में ग्रेटर टिपरालैंड का कोई उल्लेख नहीं था. समझौते पर हस्ताक्षर के बाद टिपरा एनडीए गठबंधन और राज्य में भाजपा सरकार में शामिल हो गया.

सीएए के बारे में पूछे जाने पर आईपीएफटी के प्रवक्ता स्वपन देबबर्मा ने कहा कि वह अधिसूचना पढ़ने से पहले इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. टिपरा मोथा चीफ़ प्रद्योत किशोर का कहना है कि वे कानून का विरोध करना जारी रखेंगे.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा, “जब तक पूरा कानून सार्वजनिक नहीं हो जाता, हमें पता नहीं चलेगा कि पूर्वोत्तर के आदिवासियों को क्या सुरक्षा दी गई है. हम चाहते हैं कि 125वां संशोधन पारित किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोग सुरक्षित हैं क्योंकि हम बांग्लादेश के साथ एक लंबी सीमा साझा करते हैं.”

संशोधन संविधान की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करता है, जो असम, मिज़ोरम, मेघालय और त्रिपुरा में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है.

ऐसे में ऐसा लगता है कि टिपरा इस पर निर्भर है कि सीएए ने संविधान की छठी अनुसूची और इनर लाइन परमिट (ILP) क्षेत्र के तहत आने वाले सभी क्षेत्रों को छूट दे दी है. जिसमें त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTADC) के तहत आने वाले क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां राज्य में सर्वाधिक आदिवासी निवास करते हैं.

आईपीएफटी ने भी 2018 का विधानसभा चुनाव राज्य के मुद्दे पर लड़ा और आठ सीटें जीतीं. हालांकि, जब से उसने भाजपा के साथ गठबंधन किया उसका प्रभाव कम हो गया और 2023 के राज्य चुनावों में उसके समर्थन आधार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा टिपरा मोथा में स्थानांतरित हो गया.

हालांकि, इस सबके बीच विपक्षी कांग्रेस और सीपीआई (एम) त्रिपुरा में सीएए पर गर्मी बढ़ा रहे हैं और केंद्र पर चुनाव से ठीक पहले “सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और अनुचित चुनावी लाभ हासिल करने” के लिए अधिनियम को अधिसूचित करने का आरोप लगा रहे हैं.

सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने कहा, “सीएए संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है. इसे एक विशेष समुदाय (मुसलमानों) को अलग-थलग करने के लिए धार्मिक आधार पर अधिनियमित किया गया था. यह कानून सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ़ नहीं है बल्कि यह संविधान के खिलाफ़ है.”

वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष आशीष कुमार साहा ने कहा कि भाजपा सीएए को चुनावी बांड के ज्वलंत मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है. आगामी चुनाव में पश्चिम त्रिपुरा लोकसभा सीट से पूर्व सीएम बिप्लब कुमार देब के खिलाफ खड़े होने वाले साहा ने केंद्र पर चुनाव से ठीक पहले देश में अशांति पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया.

उन्होंने टिपरा मोथा की भी आलोचना की और इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है.

क्या है CAA

सीएए – नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019, नागरिकता कानून (1955) का संशोधित रूप है. यह कानून तीन पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिमों, जो भारत में शरण लिए हुए है, उनको भारत की नागरिकता देता है. इस संशोधन में भारत में रहने की आवश्यक अवधि को भी 7 वर्ष से 5 वर्ष कर दिया गया है.

यह नागरिकता संशोधन बिल 10 दिसंबर 2019 को लोकसभा, 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में पारित हुआ और 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद यह एक अधिनियम बन गया. लेकिन उस समय इसके भारी विरोध के चलते मोदी सरकार ने इसे लागू करने पर रोक लगा दी.

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