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सिक्किम में जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध, 325 से ज़्यादा आदिवासी परिवार होंगे प्रभावित

जब भी किसी जल विद्युत परियोजना की बात होती है तो समझ जाना चाहिए कि उस परियोजना के आसपास बसे लोगों का विस्थापन ज़रूर हुआ होगा. सिक्किम में नैशनल हाइड्रो पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) की 520 मेगावॉट की जल विद्युत परियोजना के ख़िलाफ़ लेप्चा आदिवासी समुदाय के लोगों का संघर्ष चल रहा है. लेप्चा समुदाय के लोगों का कहना है कि तीस्ता नदी पर इस परियोजना का पूरा होना उनकी संस्कृति के लिए ही ख़तरा है.

ज़ोंगू की जनजातियाँ अपनी पैतृक भूमि की रक्षा करने के लिए सालों से विरोध कर रही हैं. वैसे तो मौजूदा विरोध काफ़ी समय से चल रहा है, लेकिन इस साल इसने तेज़ी तब पकड़ी जब तीस्ता स्टेज चार मूल्यांकन विशेषज्ञ समिति की एसआईए यानि सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट सिक्किम सरकार ने नोटिफ़ाई कर साझा कर दी.

दरअसल, तीस्ता चार, जिसके ख़िलाफ़ यह विरोध हो रहा है, नदी के अंतिम खंड पर बांध बनाकर इसे रोकने की कोशिश है. अपने 175 किलोमीटर की छोटी सी यात्रा में तीस्ता पर कई जल विद्युत परियोजनाएं हैं. विरोध के बावजूद विशेषज्ञ समिति ने मूल्यांकन कर एसआईए रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंप दी. लेकिन लेप्चा समुदाय को उम्मीद है कि उनकी गुहार सुनी जाएगी, और सरकार इस परियोजना को ख़ारिज कर देगी, क्योंकि ज़ोंगू में बसे लेप्चा समुदाय और चुनी हुई ग्राम सभाओं ने इसे अस्वीकार कर दिया है. साथ ही स्टेज 2 फ़ॉरेस्ट क्लीयरेंस मिलना अभी बाक़ि है, और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अभी भी केस चल रहे हैं.

स्थानीय समुदाय की चिंताओं को समझा जा सकता है. एनएचपीसी द्वारा निर्मित तीस्ता स्टेज पांच बांध को जून 2020 में भूस्खलन के कारण व्यापक क्षति हुई थी. यह पूरा क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र चार के रूप में वर्गीकृत है. ऊपर से सिक्किम सरकार पहले से ही पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) से फटकार खा चुकी है. सिक्किम सरकार ने निर्माण के विभिन्न चरणों के तहत कई जल विद्युत परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट के स्थायी आदेश का भी उल्लंघन किया है.

खांचेनज़ोंगा नैशनल पार्क

परियोजनाओं का विरोध क्यों?

तीस्ता IV परियोजना से पैदा होने वाली 12% बिजली सिक्किम को मिलेगी, जबकि बाक़ी उत्तरपूर्व के राज्यों को छह बिजली खरीद समझौतों के माध्यम से बेची जानी है. इनमें से तीन पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं, जबकि बाक़ी पर चर्चा चल रही है. परियोजना के लिए कुल 324.07 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है, जिसमें से 180.58 हेक्टेयर निजी भूमि है, और 143.49 हेक्टेयर वन भूमि है. इस परियोजना से कुल 256 परिवार प्रभावित होंगे.

ज़ोगू इलाक़े में एक और परियोजना है जिससे इन आदिवासियों का विस्थापन होगा. पानन पनबिजली परियोजना से 77 परिवार प्रभावित होंगे. इसके लिए 35.933 हेक्टेयर निजी भूमि और लगभग 5 हेक्टेयर वन भूमि का अधिग्रहण किया गया है.

ज़ोगू का आधे से ज़्यादा हिस्सा खांचेनज़ोंगा नैशनल पार्क (केएनपी) और बायोस्फीयर रिज़र्व के अंदर है. पानन परियोजना का बांध स्थल केएनपी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है. बायोस्फीयर रिज़र्व की चार हज़ार से ज़्यादा हेक्टेयर भूमि कैचमेंट एरिया के रूप में दी जा रही है.

ज़ोंगू क्षेत्र का महत्व

सिक्किम का ज़ोंगू क्षेत्र लेप्चा भाषा में मायल लयांग या स्वर्ग के नाम से जाना जाता है. इसे भूटिया भाषा में बियुल डेमाज़ोंग कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘पवित्र और गुप्त ख़ज़ाने की भूमि’. लेप्चा समुदाय पीवीटीजी की श्रेणी में आता है, और ज़ोंगू कम्युनिटी रिज़र्व के अंदर संरक्षित है. सिक्किम के दूसरे हिस्सों के लोगों को भी ज़ोंगू घाटी में प्रवेश के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती है. खांचेनज़ोंगा नैशनल पार्क (केएनपी) और बायोस्फीयर रिज़र्व यूनेस्को का विश्व-धरोहर स्थल है, और ज़ोंगू से 10 कि.मी. के दायरे में आता है.

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