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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता में आदिवासियों को छूट देने का वादा

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता

प्रस्तावित उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) जिसे अगले हफ्ते राज्य विधानसभा में पेश किया जाएगा. उसमें राज्य की आदिवासी आबादी को इसके प्रावधानों से पूरी तरह छूट देने के हिसाब से बनाया गया है.

समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड विधेयक अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों के लिए स्पष्ट अपवाद के साथ आने की संभावना है. उत्तराखंड की आबादी में लगभग 2.9 फीसदी आदिवासी हैं, जिनमें जौनसारी, भोटिया, थारू, राजी और बुक्सा प्रमुख हैं.

पहाड़ी राज्य में कुछ जनजातियों के बीच बहुपत्नी प्रथा (Polyandry) और बहुविवाह भी प्रचलित प्रथा (polygamy) है.

उत्तराखंड यूसीसी समिति ने भी इन समुदायों के साथ समान संहिता पर बातचीत की थी.

जानकारी के अनुसार वास्तव में इन चर्चाओं ने शुरू में प्रस्तावित ‘सुधारों’ के लिए उत्तराखंड की आदिवासी आबादी के बीच काफी समर्थन का संकेत दिया गया था.

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युवा आदिवासी आबादी ने भी तब प्रतिक्रिया दी थी कि जहां पहले की पीढ़ियों में बहुपति/बहुविवाह और अन्य प्रथाएं प्रचलन में थीं वे अब शायद ही प्रचलन में हैं और इसलिए सुधार का स्वागत है.

हालांकि सभी राज्यों, विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासी और जातीय समुदायों ने खुले तौर पर किसी भी नागरिक संहिता को लागू करने का विरोध व्यक्त किया है जो उनके रीति-रिवाजों और जीवन के सदियों पुराने तरीकों को प्रभावित कर सकता है.

केंद्रीय मंत्रियों ने भी पिछले साल आदिवासियों को आश्वस्त करने की कोशिश की थी कि यूसीसी का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

कानून एवं न्याय पर संसदीय पैनल के अध्यक्ष सुशील मोदी ने भी आदिवासियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखने की वकालत की थी.

इसलिए उत्तराखंड यूसीसी में इस तरह की छूट के राजनीतिक आधार महत्वपूर्ण हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव कुछ ही दिन दूर हैं और आदिवासी आबादी कई राज्यों में एक महत्वपूर्ण चुनावी निर्वाचन क्षेत्र है.

वहीं असम के मुख्यमंत्री ने हाल ही में रेखांकित किया था कि उसका यूसीसी उत्तराखंड पर आधारित होगा लेकिन आदिवासियों के लिए लागू नहीं होगा. हालांकि अन्य वर्गों या समुदायों के लिए कोई छूट की व्यवस्था नहीं है.

मुसलमानों के लिए तलाक और पुनर्विवाह पर हलाला, इद्दत और खुला विकल्प नए कोड के तहत अवैध होंगे, जिसमें केवल अदालतों में कानूनी कार्यवाही के माध्यम से तलाक और पुनर्विवाह की आवश्यकता होगी.

पहाड़ी राज्य की संहिता लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण को अनिवार्य करेगी और ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों के लिए पूर्ण उत्तराधिकार अधिकार की मांग करेगा.

सेवानिवृत्त एससी जज रंजना देसाई की अध्यक्षता वाला पांच सदस्यीय पैनल 2 फरवरी को अपनी रिपोर्ट और मसौदा विधेयक/संहिता राज्य सरकार को सौंपेगा और उम्मीद है कि वह इसे 5 फरवरी को विधानसभा में ले जाएगी.

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