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लोहार को जनजाति घोषित करने वाली बिहार सरकार की अधिसूचना रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 की बिहार सरकार की एक अधिसूचना को रद्द कर दिया है. इस अधिसूचना में राज्य सरकार ने लोहार जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया था.

इससे पहले लोहार अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के तहत आते थे. अदालत ने फैसला सुनाया कि बिहार का लोहार समुदाय “लोहरा” जैसा नहीं है. लोहरा कई जिलों में एसटी समुदाय हैं.

अदालत ने राज्य सरकार से याचिकाकर्ता को 5 लाख रुपये देने को भी कहा, क्योंकि उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया, “हम लागू अधिसूचना को रद्द करते हैं.”

अदालत का फैसला, जो 21 फरवरी को आया था, बिहार के सुनील कुमार राय द्वारा दायर एक जनहित याचिका के जवाब में था, जिसमें लोहारों की बदली हुई स्थिति को चुनौती दी गई थी.

याचिकाकर्ता के अनुसार, पुलिस ने लोहार निवासी द्वारा दायर एक मामले के बाद उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया, और उसे उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.

बिहार में लोहार, जो राज्य की आबादी का लगभग 2 प्रतिशत हिस्सा है, को 23 अगस्त, 2016 से अपनी जाति की स्थिति बदले जाने के बाद से सरकारी नौकरियों में कई फायदे मिले हैं.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने अपने फैसले में कहा, “बिहार में लोहार समुदाय अनुसूचित जनजाति के रूप में जाना जाने का हकदार नहीं है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अपने आप में असंवैधानिक और अवैध है. यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है. अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के आधार पर ही याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम), 1989 के प्रावधानों के तहत कार्यवाही शुरू की गई है.”

कोर्ट ने यह भी कहा, “लोहरा’ या ‘लोहारा’ बिहार में ‘लोहार’ से अलग हैं, क्योंकि ‘लोहार’ को ‘कोइरी’ और ‘कुरमी’ के साथ रखा गया है, जबकि ‘लोहरा’ छोटानागपुर में मुंडाओं य या असुरों की उपजाति है, जो अनुसूचित जनजाति है.”

अदालत ने यह भी कहा है कि ‘लोहरा’ अनुसूचित जनजाति है, लेकिन ‘लोहार’ नहीं. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हालांकि उसने अधिसूचना को रद्द कर दिया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि ‘लोहरा’, जो पहले से ही अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल है, इस फैसले से प्रभावित होंगे. कोर्ट का आदेश सिर्फ लोहार समुदाय के लिए है, और लोहरा पर इसका कोई असर नहीं होगा.

सत्तारूढ़ जेडी (यू) और भाजपा नेताओं ने इस मामले पर टिप्पणी नहीं को, क्योंकि यह एक “न्यायिक प्रक्रिया” है.

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