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आदिवासी नायक के स्मारक पर 25 करोड़ ख़र्च, परिवार को 2 कमरे का घर तक नहीं दे पाए

तेलंगाना की आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ ने बुधवार को कहा कि आदिवासी हीरो कुमरमभीम का जीवन दूसरों के लिए एक प्रेरणा है, क्योंकि उन्होंने जंगलों, आदिवासियों और दलितों के उत्थान के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया.

कुमरमभीम की 81वीं वर्षगांठ के अवसर पर उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान ऐसा कहा. मंत्री ने कुमरमभीम को याद किया करते हुए कहा कि उन्होंने आदिवासियों और ‘जंगल के बेटों’ के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी. मंत्री ने यह भी कहा कि आदिवासी नेता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकार आगे बढ़ रही है.

कुमरमभीम की याद में राज्य सरकार ने पूर्व आदिलाबाद ज़िले में उनके जन्मस्थल जोदेघाट पर एक स्मारक बनाया है. सरकार ने इसके लिए 25 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. स्मारक के अलावा इस जगह पर एक आदिवासी संग्रहालय भी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाली पीढ़ियों को कुमरमभीम की बहादुरी और बलिदान के बारे में पता चल सके.

लेकिन राज्य सरकार शायद यह भूल गई कि सिर्फ़ स्मारक और संग्रहालय बनाना ही किसी को याद करने का तरीक़ा नहीं है. किसी को भी याद करने का दूसरा तरीक़ा है उनके द्वारा किए गए कार्यों को आगे बढ़ाना. और कुमरमभीम ने आदिवासियों के हक़ों की लड़ाई लड़ने में अपना जीवन बिताया था.

राज्य सरकार द्वारा जिस गांव में स्मारक बनाया गया है, उसी गांव में कुमरमभीम के परिजन और दूसरे आदिवासी लंबे समय से सरकार द्वारा किए गए एक वादे के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं.

दो साल पहले कुमरमभीन की पुण्यतिथि पर, तेलंगाना के मंत्री ए इंद्रकरन रेड्डी ने जोदेघाट गांव के आदिवासियों को डबल बेडरूम के घर देने का वादा किया था. घोषणा के बाद, अगली कार्रवाई में अधिकारियों ने इसके लिए 30 लाभार्थियों की पहचान भी की थी. उनमें से एक कुमरमभीम की पोती कुमरा सोमबाई थीं.

अब तक, एक भी लाभार्थी का 2 बीएचके का मकान पूरा नहीं बना है. गांव के आदिवासी काम पूरा करवाने के लिए कई दरवाज़े खटखटा चुके हैं, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ है. अब आप ही तय कीजिए कि कुमरमभीम को याद करने का सरकार का तरीक़ा सही है या ग़लत.

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