Mainbhibharat

छत्तीसगढ़: तीन पंडो आदिवासियों की आकस्मिक मौत के बाद प्रशासन ने शुरु की समुदाय की स्वास्थ्य जांच

छत्तीसगढ़ में पंडो आदिम जनजाति के दो बच्चों समेत एक ही परिवार के तीन सदस्यों की पिछले चार दिनों में मौत हो गई है. तीनों की मौत मल्टी-ऑर्गन फ़ेल्यर की वजह से हुई है. अधिकारियों के मुताबिक़ उसी परिवार के दो और लोग बलरामपुर ज़िले के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं.

नौ साल के उपेंद्र पंडो की मौत घर पर ही हुई, जबकि परिवार के मुखिया 32 साल के रामलखन पंडो और उनके बेटे 12 साल के दिनेश पंडो की मौत पड़ोसी सरगुजा ज़िले के सरकारी अस्पताल में हुई. परिवार के दो और लोग फ़िलहाल अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन उनकी हालत ख़तरे से बाहर बताई जा रही है.

अचानक हुई इन मौतों के बाद अब ज़िला प्रशासन ने इलाक़े में पंडो समुदाय के लोगों के लिए एक स्वास्थ्य जांच अभियान शुरू किया है.

पूरा परिवार इलाक़े में मिलने वाली जड़ी-बूटियों से अपना इलाज कर रहा था, जिसके बाद उनकी हालत बिगड़ गई.

बलरामपुर जिला प्रशासन ने इलाक़े में पंडो समुदाय की मेडिकल जांच के लिए अभियान शुरू कर दिया है. इन तीन मौतों के बाद स्वास्थ्य टीम गांव में ही डेरा डाले हुए है, और कलेक्टर की देखरेख में पंडो आदिवासियों की मेडिकल जांच के लिए विशेष अभियान चला रही है.

पंडो एक आदिम जनजाति यानि पीवीटीजी समुदाय है. उनकी आबादी क़रीब 4,000 है, और वह मुख्य रूप से उत्तरी छत्तीसगढ़ के बलरामपुर और सूरजपुर ज़िलों के तकरीबन 30 गांवों में रहते हैं.

पंडो ज्यादातर छोटे किसान हैं, और छत्तीसगढ़ और झारखंड के अलग-अलग हिस्सों में काम करने वाले मजदूर हैं.

मैं भी भारत की पंडो आदिवासियों से मुलाक़ात

मैं भी भारत की टीम कुछ ही महीने पहले छत्तीसगढ़ में पंडो आदिवासी समुदाय के लोगों से मिली थी, और उनके साथ समय बिताया था. उनसे मिलने पर हमने पाया कि पंडो समुदाय में आकांक्षाएँ (aspirations) नज़र आती है. यह कहानी आप यहां पढ़ सकते हैं.

एक जगह पर बसाए जाने से पहले पंडो आदिवासी जंगल में घूमते थे. कांदा-कोसा खा कर जीते थे. थोड़ी बहुत खेती करते थे और जूम खेती होती थी. 

हमने पाया कि पंडो समुदाय अपने अधिकारों और अपनी सीमाओं को लेकर काफ़ी हद तक जागरुक है. उनमें बड़े पदों पर अपने समुदाय का प्रतिनिधित्व देखने की एक तड़प नज़र आती है. 

हमारी नज़र में पंडो समुदाय की जागरुकता और उनकी आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए उन्हें नए और अधिक अवसर दिए जाने की ज़रूरत है. 

(तस्वीर सूरजपुर के पंडोनगर गांव में बने राष्ट्रपति भवन की है.)

Exit mobile version