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मध्य प्रदेश: फतेहपुर गाँव में सालों से आदिवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की भाजपा सरकार और केंद्र सरकार लगातार कई ऐसी योजनाए ला रही है, जो पिछड़ा वर्ग और सहरिया जनजाति के लोगों को सशक्त बनाने पर जोर देती है.

लेकिन इन योजनाओं का लाभ आदिवासियों तक पूरी तरीके से नहीं पहुंच रहा है. आज भी कई ऐसे आदिवासी हैं, जो मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, पानी आवास इत्यादि से वंचित हैं और कई कठनाईयों के साथ अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

मंगलवार को राज्य के शिवपुरी जिले के सैकड़ों आदिवासियों ने इन्हीं समस्याओं को लेकर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा और मूलभूत सुविधाओं (Basic facilities of tribals) और योजनाओं का लाभ दिलाने की मांग की.

इस बारे में मिली जानकारी के अनुसार आदिवासियों ने अपनी समस्याओं (Tribal issues in Madhya Pradesh) को लेकर कलेक्टर से शिकायत की है.

आदिवासियों ने बताया कि वे शिवपुरी जिले के फतेहपुर गाँव (Fatehpur village) में सालों से रह रहे हैं. लेकिन यहां किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है.

पीड़ित आदिवासियों ने बताया कि हमारे गांव में बिजली और पेयजल की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है. सिर्फ इतना ही नहीं इन आदिवासियों को रहने के लिए कोई सरकारी आवास भी नहीं मिला है. इन्हीं सभी समस्यों के कारण यहां आदिवासियों का जन-जीवन प्रभावित हो रहा है.

यहा ग्रामीणों का कहना है कि उनके इलाके में सड़कें भी काफी खराब हालात में हैं जिसके कराण रोजाना आने-जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इसके साथ ही इन आदिवासियों के पास रोजगार के भी ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं है. ऐसे में आदिवासियों की मांग है की इन्हें सरकारी योजनाओं के तहत आवास, पेयजल, बिजली उपलब्ध करवाई जाए.

मध्य प्रदेश में आदिवासियों को मूलभूत सुविधा से वंचित रखने की ये कोई पहली खबर नहीं है. मसलन कुछ महीने पहले राज्य के बैतूल ज़िले से खबर आई थी की आदिवासियों को पिछले 5 महीने से राशन वितरित नहीं किया गया है.

जिससे परेशान होकर आदिवासी परिवारों ने एसडीएम कार्यालय में धरना करने का फैसला किया था.

इस बारे मिली जानकारी के मुताबिक इन दो गाँवो में 60 से ज्यादा आदिवासी परिवारों को राशन नहीं मिल रहा था. जबकि यहां के आदिवासी परिवार इसी राशन के ज़रिए अपना पेट भर पाते हैं.

धरने के बारे में फैसला लेने से पहले इन आदिवासियों ने कलेक्टर के पास अपनी शिकायत भी दर्ज करवाई थी. जिस पर कलेक्टर ने यह आश्वासन दिया था की उनकी यह समस्या दो दिन में ही ठीक हो जाएगी.

लेकिन इस बात को पांच महीने बीत चुके थे. इतने लंबे समय से परेशान होकर मजबूरन आदिवासी परिवारों ने धरना करने का फैसला किया था.

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