पूरे देश के सबसे ज्यादा आदिवासी मध्यप्रदेश में रहते हैं. इस राज्य में एक करोड़ से ज्यादा आदिवासी निवास कर रहें हैं. ये पूरे राज्य की जनसंख्या का 21.1 प्रतिशत है.
ये आकंड़े बताते है की मध्य प्रदेश में आदिवासियों की वोटिंग आने वाले विधानसभा चुनाव में कितनी महत्वपूर्ण है.
जहां एक तरफ नेताओं द्वारा इस चुनावी माहौल में कई वादे किए जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर आदिवासी परिवार कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.
हाल ही में राज्य के बैतूल ज़िले से राशन की आपूर्ति ना होने ही खबर सामने आई है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है की बैतूल ज़िले की आधी जनसंख्या आदिवासी परिवारों की है.
दरअसल ज़िले के घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के दानवाखेड़ा और भण्डारपानी में रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया है की 5 महीनों से इन्हें राशन नहीं मिल रहा है.
जिससे परेशान होकर आदिवासी परिवारों ने एसडीएम कार्यालय में धरना करने का फैसला किया. वैसे कई बार आदिवासियों ने अपनी मूलभूत आवश्कयताओं की आपूर्ति ना होने के कारण धरने किए है. ताकि वे केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित कर सकें.
इस बारे मिली जानकारी के मुताबिक इन दो गाँवो में 60 से ज्यादा आदिवासी परिवारों को राशन नहीं मिल रहा है. आदिवासी परिवारों ने चिंतित होते हुए कहा की इसी राशन से उनका घर चलता है.
आदिवासी धरने से पहले प्रभावित आदिवासियों ने कलेक्टर के पास भी शिकायत दर्ज करवाई है. यह बताया गया है कि कलेक्टर ने आश्वासन दिया था की आदिवासियों को राशन ना मिलने की दिक्कत दो दिन में ठीक हो जाएगी.
लेकिन इस बात को अब पांच महीने होने वाले हैं. इतने लंबे समय से परेशान होकर अब मजबूरन इन आदिवासी परिवारों ने धरना करने का फैसला किया.
धरने में अपना आक्रोश दिखाने के लिए इन आदिवासी परिवार ने कार्यालय के बाहर खिचड़ी बनाई.
जहां मुख्यधारा इलाकों में खिचड़ी को पोषक आहार मानते हुए बीमारी में खाया जाता है. वहीं गरीब आदिवासियों के घर में खाद्य वस्तु की कमी के चलते सभी आनाजों मिलाकर इसे बनाया जाता है.
इस पूरे मामले में जिला आपूर्ति आधिकारी ने अपनी बात रखते हुए आश्वासन दिया की 50 परिवारों की जल्द से जल्द राशन की आपूर्ति पूरी करेंगे.
बैतूल की यह ख़बर चुनाव के शोर-शराबे में शायद ही कोई सुन रहा है. लेकिन यह एक गंभीर मामला है. क्योंकि ज़िला आपूर्ति विभाग ने अभी भी सिर्फ़ 50 परिवारों को ही राशन सप्लाई करने का आश्वासन दिया है.
10 परिवारों को अभी भी राशन मिलने का आश्वासन नहीं मिला है. ज़िला आपूर्ति विभाग ने बताया है कि इन आदिवासी परिवारों के पास ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं हैं. इसलिए इन्हें राशन नहीं दिया जा सकता है.
यानि तकनीकि कारणों से कई आदिवासी परिवार आधे पेट खा कर ही जीने को मजबूर हैं.