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तेलंगाना: एक बार फिर जंगल की ज़मीन पर पुलिस और आदिवासियों में भिड़ंत

तेलंगाना (Telangana) के खम्मम जिले (Khammam district) के सत्तुपल्ली मंडल (Sattupalli mandal) के चंद्रायपलेम गांव में उस समय तनाव पैदा हो गया जब दो आदिवासी समूहों को पुलिस ने पोडु भूमि (Podu land) पर फ़सल बोने से रोका.

पुलिस अधिकारियों के अनुसार जब पुलिस पार्टी ने आदिवासियों को खेती करने से रोका तो उन्होंने पुलिस पर हमला कर दिया.

ज़िला प्ररशासन की तरफ से बताया गया, “रविवार को जिले के सतुपल्ली मंडल के बुग्गापाडु में पोडु भूमि मुद्दे (Podu land issue) के सिलसिले में आदिवासियों का एक बड़ा समूह, जिसमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे, उग्र हो गए और पुलिस कर्मियों की पिटाई कर दी, जिससे गांव में भारी तनाव पैदा हो गया.”

इस टकराव के दौरान एक सर्कल इंस्पेक्टर किरण कुमार और चार कांस्टेबल घायल हो गए और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है.

खम्मम के पुलिस कमिशनर सुनील दत्त ने कहा कि दो गांवों के आदिवासी भूमि अधिकार के लिए झगड़ रहे थे. घटना के बाद पुलिस बल चंद्रयापलेम गांव पहुंचे और रविवार शाम तक 21 आदिवासी सदस्यों को हिरासत में ले लिया.

सूत्रों के मुताबिक, 70 एकड़ जमीन को लेकर विवाद चल रहा है. जहां आदिवासियों का दावा है कि यह उनकी जमीन है, वहीं वन विभाग स्वामित्व का दावा करता है. भूमि को सरकारी भूमि के रूप में पहचानने के आदिवासियों के कानूनी प्रयासों के बावजूद न तो राजस्व और न ही वन विभाग ने सीमाओं की पहचान करने के लिए कदम उठाए हैं.

इसके बाद जब वन अधिकारियों ने क्षेत्र में किसी गतिविधि का प्रयास किया तो आदिवासियों ने उन्हें रोक दिया, जिसके चलते टकराव हुआ. बाद में वन अधिकारियों ने आदिवासियों के खिलाफ उनके काम में बाधा डालने के लिए सत्तुपल्ली पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई.

अपने साथियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किये जाने के विरोध में 500 से 600 आदिवासी सदस्यों का एक बड़ा समूह विरोध प्रदर्शन करते हुए पुलिस स्टेशन पर इकट्ठा हुआ.

ज़िला प्रशासन ने विवादित ज़मीन किसी भी तरह की गतिविधि को अवैध घोषित किया है. लेकिन ज़िला प्रशासन की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करते हुए आदिवासी प्रदर्शन के बाद जंगल की ज़मीन पर काम करने लौट आए.

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जंगल की ज़मीन जिस पर खेती की जाती है उसे पोडू भूमि कहा जाता है. यह भूमि असिंचित होती है.

इस ज़मीन पर बारिश के भरोसे ही खेती होती है. आमतौर पर यह देखा गया है जब बारिश के मौसम की शुरुआत से पहले आदिवासी किसान ज़मीन तैयार करते हैं उस समय वन विभाग के लोग उन्हें रोकते हैं.

इस वजह से पुलिस, वन गार्ड और आदिवासियों के बीच संघर्ष होता है.

जंगल की ज़मीन और उत्पादों पर आदिवासियों के अधिकार को स्वीकार करते हुए वन अधिकार कानून 2006 बनाया गया था. लेकिन ज़्यादातर राज्यों में इस कानून के प्रावधानों को लागू करने में गंभीरता नहीं दिखाई गई है.

यह भी देखा गया है कि वन विभाग के अधिकारी आज भी वन अधिकार क़ानून 2006 के तहत आदिवासियों को दिए गए अधिकारों को नहीं मान पाए हैं.

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