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त्रिपुरा शिक्षा मंत्री: सरकारी अधिकारियों को हो आदिवासी भाषाओं का ज्ञान, कोकबोरोक पर ख़ास ज़ोर

त्रिपुरा के शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने सोमवार को कहा कि राज्य के सरकारी अधिकारियों को आदिवासी भाषाओं, खासकर कोकबोरोक का अच्छा ज्ञान होना चाहिए, ताकि आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लोग बिना किसी परेशानी के अपनी शिकायतों और मुद्दों के बारे में उनसे खुलकर संवाद कर सकें.

राज्य सरकार के ग्रुप ए, ग्रुप बी और ग्रुप सी कर्मचारियों के एक प्रमाणपत्र-वितरण कार्यक्रम में उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कोकबोरोक भाषा को बढ़ावा देने, और इसको संरक्षित करना चाहती है, ताकि यह सरकारी कार्यालयों में बातचीत के लिए एक वैकल्पिक भाषा बन सके.

“राज्य सरकार ने कोकबोरोक भाषा समृद्ध बनाने के लिए स्कूल स्तर पर इसे पढ़ाना शुरू किया है, हायर सेकेंडरी स्तर के लिए पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को नियुक्त किया है. इसके अलावा दूसरे कई कदम भी उठाए गए हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम कॉलेज स्तर पर त्रिपुरा लोक सेवा आयोग के माध्यम से प्रोफेसरों की नियुक्ति कर रहे हैं,” उन्होंने कहा.

राज्य सरकार के कोकबोरोक विभाग ने ग्रुप ए, ग्रुप बी और ग्रुप सी कर्मचारियों के लिए एक ख़ास कोकबोरोक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू किया है. इसका मकसद यह है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लोगों को अपनी समस्याओं को अधिकारियों के सामने रखने में संकोच न हो.

नाथ ने कहा कि भाषा एक मजबूत माध्यम है और यह समझ का एक मजबूत बंधन बनाती है, जिसे कोई दूसरा माध्यम नहीं बना सकता.

नाथ ने यह भी बताया कि प्रशिक्षण के पहले बैच में कुल सौ अधिकारियों को पाठ्यक्रम के लिए नामांकित किया गया है.

“सभी अधिकारियों ने 40-दिवसीय प्रशिक्षण मॉड्यूल को ऑनलाइन किया है. पाठ छुट्टी वाले दिनों में भी पढ़ाया गया था. पूरा होने पर, एक परीक्षा आयोजित की गई जिसमें सौ में से 35 अधिकारी अच्छे नंबरों से पास हुए. यह एक सतत प्रक्रिया होगी. आने वाले दिनों में और ज़्यादा अधिकारियों को योजना के दायरे में लाया जाएगा,” नाथ ने कहा.

इसके अलावा त्रिपुरा सरकार ने स्कूलों के लिए 14 पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों के साथ कुल 22 वरिष्ठ कोकबोरोक प्रोफेसरों की नियुक्ति की है.

कोकबोरोक पर राजनीति

कोकबोरोक त्रिपुरा के आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली सबसे बड़ी भाषा मानी जाती है. इस भाषा को बचाने के प्रयास लंबे समय से चल रहे हैं.

इस सिलसिले में सबसे ज़रूरी काम हुआ है इस भाषा कि लिपी तैयार करना, लेकिन अफ़सोस की यह काम एक बड़ा राजनीतिक मसला बन गया है. 

पिछले क़रीब 40 सालों में लगभग एक दर्जन से ज़्यादा बार इस भाषा की लिपि को लेकर फ़ैसले बदले हैं. त्रिपुरा में लंबे समय तक सत्ता में रही वामपंथी मोर्चा की सरकार इस भाषा की बांग्ला लिपि के पक्ष में थी. लेकिन यहाँ के आदिवासी संगठन और राजनीतिक दल रोमन स्क्रिप्ट चाहते हैं. 

अब राज्य में बीजेपी की सरकार है और कोकबोरोक के लिए देवनागरी स्क्रिप्ट की वकालत की जा रही है. इस भाषा की स्क्रिप्ट के मसले पर हो रही राजनीति का सबसे बड़ा ख़ामियाज़ा वो छात्र भुगत रहे हैं जो इस भाषा में पढ़ाई करते हैं.

कोकबोरोक भाषा पर चल रही राजनीति पर हमारी यह रिपोर्ट ज़रूर पढ़ें.

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