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पेसा के भरोसे बीजेपी आदिवासी इलाक़ों में कांग्रेस की ज़मीन हिलाना चाहती है

मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने अभी से ही तैयारियां शुरू कर दी है. कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने दांव चलने लगे हैं.

इसी क्रम में बढ़त बनाते हुए बीजेपी ने बुधवार को राज्य में पेसा के नियम लागू कर दिए हैं. यह कानून जनजातीय समुदाय को अधिक अधिकार और सुरक्षा प्रदान करती है.

पंचायत विस्तार अनुसूचित क्षेत्र (PESA) अधिनियम का उद्देश्य ग्राम सभाओं या ग्राम सभाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ जनजातीय आबादी को शोषण से बचाना है.

मध्य प्रदेश में पेसा लागू होने के बाद 89 ब्लॉक के 2350 गाँवों की 5212 पंचायतों को अपने संसाधनों के प्रबंधन का हक़ मिल सकेगा.

पेसा लागू होने से पहले आदिवासी आबादी को खुश करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले सितंबर में जबलपुर का दौरा किया था और गोंड स्वतंत्रता सेनानी रघुनाथ शाह और उनके बेटे शंकर शाह को समर्पित एक संग्रहालय बनाने की घोषणा की थी.

फिर इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस नामक जनजातीय संस्कृति का जश्न मनाने के लिए पिछले नवंबर में भोपाल का दौरा किया. इस अवसर पर पीएम मोदी ने पुनर्निर्मित हबीबगंज रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया और इसका नाम बदलकर क्षेत्र की अंतिम गोंड रानी रानी कमलापति के नाम पर रख दिया.

अब पेसा एक्ट का कार्यान्वयन देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में कर बीजेपी आदिवासी समुदाय में अपनी पैंठ को मजबूत कर रही है. हालांकि, कांग्रेस भी पीछे न छूटने की पुरजोर कोशिश कर रही है. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी आदिवासी आइकन टंट्या भील के जन्मस्थान का दौरा करेंगे और एक सभा को संबोधित करेंगे.

इसके लिए पार्टी निमाड़ की तीन आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों से 50 हज़ार लोगों को जुटाने की कोशिश करेगी. बीजेपी और कांग्रेस एक-दूसरे पर आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप लगा रही हैं.

मध्य प्रदेश के गृहमंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने कहा, ”कांग्रेसी भस्मासुर की तरह होते हैं. वे जिसकी भी प्रशंसा करते हैं उसे नुकसान पहुंचाने के लिए ही करते हैं. जब कांग्रेसी आदिवासी गौरव दिवस की आलोचना कर सकते हैं तो उनसे किसी भी चीज़ की प्रशंसा करने की अपेक्षा करना व्यर्थ है.”

वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पलटवार करते हुए कहा, “18 साल हो गए. सरकार क्यों सो रही थी? यह सिर्फ एक नौटंकी है. इसकी मूल भावना से छेड़छाड़ करके पेसा के महत्व को नष्ट कर दिया गया है.”

दरअसल, 2023 के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस और बीजेपी आदिवासियों के समर्थन पर नजर गड़ाए हुए हैं.

राज्य की आबादी का 21.1 प्रतिशत आदिवासी हैं. मध्य प्रदेश में 230 में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं.

2018 में बीजेपी ने इनमें से सिर्फ 16 सीट जीती थी. वहीं 2013 में 31 सीटें जीती थी. कांग्रेस ने 2013 में 15 तो 2018 में 30 सीटें जीती थीं.

पेसा अधिनियम क्या वादा करता है:

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